मथुराः देश और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना और किसी वाद विवाद में न आने वाले साधु-संतों का अपना एक अलग ही समाज है. जिसे अखाड़ा समाज के नाम से जाना जाता है. धर्म की नगरी वृंदावन में साधु-संत अखाड़े की डोर में बंधे रहते हैं. वृंदावन गोविंद जी मंदिर के पास स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा में साधु-संत अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं.
श्री पंच निर्मोही से नौ अखाड़े जुड़े
वृंदावन में स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि इस अखाड़े के अंतर्गत नौ अखाड़े आते हैं. जिसमें श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़ियां निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच राधा बल्लवी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालधारी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच स्वामी विष्णु हरि निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा हैं. महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि हजारों वर्ष पूर्व निर्मोही अखाड़े की स्थापना हुई थी. बालानंद महाराज ने ही निर्मोही अखाड़ों की स्थापना की थी. जिनकी गद्दी जयपुर में स्थित है.
निर्मोही अखाड़े के उद्देश्य
महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि समाज और मनुष्य की रक्षा करना हमारा उद्देश है. जैसे देश की सेवा सीमा पर भारतीय फौज करती है उसी तरह निर्मोही अखाड़े के संत देश की सुरक्षा करते हैं. निर्मोही अखाड़े की स्थापना के समय शस्त्र विद्या काफी अहम मानी जाती थी. लेकिन समाज और समय में परिवर्तन हुआ तो शस्त्र विद्या में कुछ ही संत रुचि रखते हैं. निर्मोही अखाड़ा समाज के प्रति अपना काम करता आ रहा है, किसी के सामने दिखा कर काम नहीं किया जाता है. निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत साधु-संत समय जरूरत पड़ने पर देश के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं. साधु निस्वार्थ भाव रखकर हिंदुओं को ठाकुर जी के प्रति जागृत करते हैं. कुछ लोगों की समस्याओं को बिना निस्वार्थ के निवारण भी किया जाता है.
अखाड़े के संतो का समय के हिसाब से परिवर्तन
महंत सुंदर दास महाराज ने कहा कि धर्म के प्रति देश के प्रति साधु की भावना होती है. निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत जो साधु संत होते हैं, उनके साथ समय-समय पर बैठक भी की जाती है. कुंभ के समय भी सभी साधु-संत बैठक करते हैं. कुंभ से पहले साधुओं की बैठक आदि काल से चली आ रही है, जो आज परंपरा निभाई जाती है.