रायपुर : श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (naagpanchami 2022) को नाग पंचमी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता(Shivling is made from the soil of two hundred years old arena in raipur naagpanchmi) है. इस दिन नागों की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इससे नाग देवता की कृपा बनी रहती है. वह घर की सुरक्षा करते हैं. दूसरी ओर इस त्यौहार का गहरा कनेक्शन कुश्ती से भी है. इस खास दिन अखाड़े को सजाया जाता है और वहां पहलवान वर्जिश करते (naagpanchami date 2022) हैं. साथ ही अपना दमखम भी दिखाते हैं. इस विशेष दिन राजधानी रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़ा में अनोखी परंपरा भी देखने को मिलती है. यहां के अखाड़े के मैदान की मिट्टी से शिवलिंग बनाया जाता है. जिसकी पूजा अर्चना की जाती है. आइए जानने की कोशिश करते हैं. आखिर यहां की मिट्टी से शिवलिंग क्यों बनाया जाता है और इसकी खासियत क्या (Nagpanchami 2022 Date) है?
अखाड़े की मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण ! अखाड़े की मिट्टी की खासियत :राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित मां दंतेश्वरी अखाड़ा (Raipur Maa Danteshwari Akhara) के निर्माण से लेकर अब तक अखाड़े में उसी मिट्टी में कुश्ती लड़ी जा रही है. जिस मिट्टी से पहली बार अखाड़े को तैयार किया गया था. मिट्टी में हर साल दही, मठा, घी, सरसों तेल, सिंदूर, गेरू, हल्दी, आमी हल्दी का मिश्रण किया जाता है. इन तरल पदार्थों का मिश्रण खासकर गर्मी के दिनों में ही किया जाता है. कुश्ती लड़ते हुए किसी पहलवान को यदि चोट लग जाए तो खून निकलने लगे तो चोट वाली जगह पर वही मिट्टी लगा दी जाती है. 90 साल पुरानी इस मिट्टी की खासियत यह है कि मिट्टी में मिलाए जाने वाले द्रव्यों और हल्दी के औषधीय गुणों के चलते घाव तुरंत ठीक हो जाता है.
मैदान की मिट्टी से बनते हैं शिवलिंग : अखाड़े के उस्ताद दिलीप यदु बताते हैं "अखाड़े में पहलवान जिस मिट्टी पर साल भर कुश्ती बाजी करके अपने आप को निखारते हैं. नाग पंचमी के दिन उसी मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की जाती है. एक सप्ताह पहले शिवलिंग बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं. पहले मिट्टी को स्टोर करते हैं. मिट्टी को पहाड़ीनुमा बनाते है. फिर हमारे पहलवान धीरे-धीरे उसमें पानी डालते हैं. उसमें दूध, दही समेत अनेक पदार्थ डालकर शिवलिंग का आकार देते हैं. इसके बाद विधिवत पूजा पश्चात उसी मिट्टी को पुनः कुश्ती करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह राजधानी रायपुर के मां दंतेश्वरी अखाड़ा में ही देखने को मिलता है. "
कुश्ती की पुरानी परंपरा :अखाड़े के उस्ताद दिलीप बताते हैं "रामायण, महाभारत काल से ही कुश्ती का महत्व है. भगवान कृष्ण बहुत अच्छे कुश्ती के योद्धा थे. हनुमान जी चूंकि बल के ज्ञानी है. उनको हम लोग परंपरा मान करके निभा रहे हैं. चार प्रकार की कुश्ती लड़ी जाती है, लेकिन वर्तमान में हम हनुमान पद्धति से कुश्ती करते हैं. हमारे यहां से हर साल कुश्ती के खिलाड़ी निकलते हैं. दूर दूर से खिलाड़ी कुश्ती के लिए आते हैं. नागपंचनी के दिन हमारे यहां अखाड़ा का आयोजन किया जाता है. इस बार भी आयोजन होगा. बड़ी संख्या में खिलाड़ी शामिल होंगे और अपना दमखम दिखाएंगे."