रायपुरःपूर्वाषाढ़ा नक्षत्र अतिगंड योग सुकर्मयोग और विश्कुंभ योग में बुधवार के दिन महाअष्टमी (Mahaasthmi) पर्व पर महागौरी (Mahagouri) रुप की पूजा की जाती है.यह दुर्गाष्टमी (Durgastmi) या अष्टमी (Astmi) के रूप में भी जानी जाती है. महागौरी (Mahagouri) के वर्णन में पूर्णता गौर वर्ण हैं. इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है.माता के सभी आभूषण श्वेत वर्ण के हैं.
अष्टमी को महागौरी की पूजा वहीं, माता का वाहन वृषभ माना गया है. ऊपर दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किए हुए हैं. महागौरी माता की चार भुजाएं हैं. इनकी पूरी मुद्रा शांत सौम्य और मनोरम है. आज के शुभ दिन हवन करने का विशेष विधान है. ऐसा माना गया है कि रावण (Rawan) से युद्ध के पूर्व अष्टमी तिथि को भगवान श्रीराम (Shree Ram) ने मां दुर्गा का अभीष्ट हवन किया था, जिसके परिणाम स्वरूप भगवान श्री राम (Raam) राक्षस राज रावण पर विजय प्राप्त कर पाने में सफल हुए थे.
कन्या पूजन कराने का भी महत्व
इस दिन कन्या पूजन (Kanya pujan) करने का भी महत्व है. मां गौरी को चुनरी, श्रृंगार का सामान भेंट करने का विधान है. मां गौरी के भक्त महागौरी स्रोत, महागौरी ध्यान, महागौरी कवच के पाठ से देवी की प्रसन्नता प्राप्त करते हैं. महागौरी माता को भगवान गणेश की माता भी कहा गया है.
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श्वेत रंग का है विशेष महत्व
इस दिन श्वेत वस्त्र, श्वेत साड़ी, श्वेत चावल अबीर आदि पदार्थ माता को अर्पित किए जाते हैं. दुग्ध, दही आदि माता को अर्पित किए जाते हैं. शुद्ध घी से बने हुए दीपक, धूप और अगरबत्ती भी माता को अर्पित किया जाता है, इस दिन यज्ञ अग्निहोत्र का अलग ही महत्व है. ब्राह्मणों को श्वेत वस्त्र, श्वेत धोती, रजत आदि दान करने का भी विधान है, पश्चिम बंगाल सहित पूरे भारतवर्ष में इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, पूर्वोत्तर राज्य में दुर्गा अष्टमी साल का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है, सभी लोग नये वस्त्र पहनकर इस पर्व को मनाते हैं.