रायपुर:छत्तीसगढ़ में आजशरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. इस पर्व के पीछे एक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा पर ही देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थी. इसलिए इसे लक्ष्मी जी के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. इस बार शुक्रवार को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि 7 साल बाद यह संयोग बना है. इसके पहले 18 अक्टूबर 2013 में शुक्रवार को पूर्णिमा पर्व मनाया गया था. अब 13 साल बाद 7 अक्टूबर 2033 को पूर्णिमा के दिन यह संयोग बनेगा. शुक्रवार को पूर्णिमा के होने से इसका फल और बढ़ जाता है. साथ ही इस बार शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय सर्वार्थ सिद्धि और लक्ष्मी योग में हो रहा है.
शरद पूर्णिमा पर बना खास संयोग अश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि आज यानी 30 अक्टूबर की शाम 6 बजे से शुरू हो जाएगी और रात भर पूर्णिमा तिथि रहेगी. इसलिए शुक्रवार की रात को शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को भी पूरे दिन रहेगी और रात 8 बजे पूर्णिमा तिथि खत्म हो जाएगी. इसलिए शनिवार को पूर्णिमा व्रत, पूजा, तीर्थ, स्नान और दान किया जाएगा.
मां महालक्ष्मी की उत्पत्ति
मान्यता के मुताबिकशरद पूर्णिमा कोमां लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस भी कहा जाता है. जब समुद्र मंथन हो रहा था तब अश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि थी. मंथन के दौरान महालक्ष्मी प्रकट हुई. देवी लक्ष्मी के प्रकट होने से इस दिन को पर्व कहा गया है. इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है और कौमुदी व्रत रखा जाता है.
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चंद्रमा की रौशनी के जरिए फैलती है ऊर्जा
दूसरी मान्याता ये भी है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं. यह एक यौगिक क्रिया है. इसमें भगवान कृष्ण, शक्ति के अंश यानी गोपियों के रूप में घूमते हुए एक जगह इकट्ठा होते हैं. चंद्रमा की रौशनी के जरिए प्रकृति में ऊर्जा फैलाने के लिए ऐसा होता है. देवी भागवत महापुराण में महारास के बारे में बताया गया है.
चंद्रमा का उदय 5 शुभ योगों में होगा
इस साल शरद पूर्णिमा में चंद्रमा का उदय 5 शुभ योगों में होगा. जिसके प्रभाव से अच्छी सेहत और धन लाभ की प्राप्ति होगी. पूर्णिमा पर तिथि वार और नक्षत्र से मिलकर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस योग में किए गए सभी काम पूरे होते हैं. साथ ही मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके अलावा लक्ष्मी, शंख, महाभाग्य, और शश नाम के 4 राजयोग बनने से यह दिन और भी खास रहेगा. इस पर्व पर बृहस्पति और शनि का अपनी-अपनी राशियों में होना भी शुभ संयोग है.
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16 कलाओं से युक्त होता है चंद्रमा
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर अमृत बरसाता है. इस रात में औषधियां चंद्रमा की रोशनी के जरिए तेजी से खुद में अमृत सोखती हैं. इसलिए इस दिन चंद्रमा के प्रभाव वाली चीज यानी दूध से खीर बनाई जाती है और चांदी के बर्तन में चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है. ऐसा करने से उसमें औषधि गुण आ जाते हैं. माना जाता है उस खीर को खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. जिससे कई तरह की बीमारियों से भी राहत मिलती है. ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद को खाने से लोग स्वस्थ रहते हैं.
ये हैं चंद्रमा की सोलह कलाएं
अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत. इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है. ये सारी तिथियां हैं. ये सभी चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं. उसी तरह इंसान के मन में भी एक प्रकाश होता है. मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है. जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है. चंद्र की इन सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ.
आपने कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्च्छित, जागृत, चैतन्य, अचेत आदि शब्द तो सुने ही होंगे. इन सारे शब्दों का संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है. जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रहकर बोध करने लगता है वही 16 कलाओं में गति कर सकता है.