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राज्यपाल के वीटो पावर पर SC की टिप्पणी, जानिए छत्तीसगढ़ में कितना होगा असर ?

SC comment on Governor veto power छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण को लेकर एक बार फिर से सरगर्मी तेज हो गई है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के वीटो पावर और अन्य अधिकारों को लेकर टिप्पणी की है.जिसमें किसी भी बिल को लेकर राज्यपाल की असहमति होने पर उसे वापस विधायिका को भेजने को कहा गया है.जिसके बाद अब छत्तीसगढ़ के जातिगत आरक्षण को लेकर सियासत गर्म होने लगी है.

How many bills are pending in Chhattisgarh
राज्यपाल के वीटो पावर पर SC की टिप्पणी

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 27, 2023, 5:36 PM IST

राज्यपाल के वीटो पावर पर SC की टिप्पणी

रायपुर : छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण को लेकर संशोधन विधेयक अब भी राज्यपाल के पास लंबित है.लेकिन ऐसे ही जुड़े मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है.जिसमें राज्यपाल के अधिकारों के बारे में कहा गया है.सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि राज्यपाल किसी बिल को सहमति नहीं देते तो उसे पुनर्विचार के लिए विधायिका को भेजा जाना चाहिए. राज्यपाल यदि ऐसा नहीं करते हैं तो ये एक तरीके से विधायी प्रक्रिया को पटरी से उतारने जैसा है.आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वीटो पावर क्या है. राज्यपाल के पास यदि कोई बिल हस्ताक्षर के लिए जाता है, तो वह उस मामले में क्या कदम उठा सकते हैं. यदि राज्यपाल बिल को लेकर सहमत नहीं है तो क्या उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाया जा सकता है.

क्या है राज्यपाल का वीटो पावर ? :इस मामले को लेकर कानून की जानकार और हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिंह का कहना है कि वीटो पावर के तहत कुछ विशेष अधिकार दिए जाते हैं. यह अधिकार राज्यपाल को भी दिए गए हैं .कई बार देखा गया है कि अलग-अलग देश का कोई संगठन होता है. उसमें किसी एक देश को भी वीटो का पावर दिया जाता है .जिससे वह इस पावर का उपयोग कर कोई अनैतिक या असंवैधानिक कार्य होने से रोकता है.

'' छत्तीसगढ़ में वीटो पावर का दुरुपयोग किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर यदि कोई विधेयक पारित होता है,ओर उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. राज्यपाल के पास तीन ऑप्शन होते हैं, पहला उस पर हस्ताक्षर कर दे. दूसरा उसे वापस विधानसभा को लौटा दे. तीसरा यदि वह इससे सहमत नहीं है तो विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दे. लेकिन वीटो पावर का इस्तेमाल करके इस विधेयक को लंबे समय तक नहीं रोक सकता है.'' दिवाकर सिन्हा, सीनियर एडवोकेट हाईकोर्ट

राज्य सरकार जा सकती है सुप्रीम कोर्ट :दिवाकर सिन्हा ने कहा कि छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो आरक्षण बिल सहित कई अन्य विधयेक लगभग 1 साल से ज्यादा समय से राज्यपाल के पास लंबित हैं. देश के कई राज्यों से इस तरह के मामले अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ऐसा ना हो कि हमें मजबूरन राज्यपाल के खिलाफ कोई कदम उठाना पड़े. छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो आरक्षण बिल सहित अन्य लंबित विधायक को लेकर राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है.


कांग्रेस जाएगी सुप्रीम कोर्ट :वही कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा का कहना है कि कांग्रेस अब राज्यपाल के पास लंबित मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं.इसमें आरक्षण बिल सहित अन्य विधेयक शामिल हैं. जो लगभग एक साल से ज्यादा समय से राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए लंबित हैं. इन बिल पर ना तो राज्यपाल ने हस्ताक्षर किए हैं, ना ही पुनर्विचार के लौटाया है और ना ही राष्ट्रपति को भेजा है.

''केंद्र की बीजेपी सरकार जिन राज्यों में बीजेपी विपक्ष में हैं.वहां राज्यपाल के जरिए चुनी हुई सरकार के अधिकारों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है.यह आपत्तिजनक है.पूर्व में भी तेलंगाना, झारखंड, पंजाब, राजस्थान के संदर्भ में भी सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा कि वीटो पावर का उपयोग करना निंदनीय और लोकतंत्र के खिलाफ है.सरकार बनने के बाद कांग्रेस सरकार भी इन सभी मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी.'' सुरेंद्र वर्मा, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस

सुप्रीम कोर्ट की दखलांदाजी से जल्द हो सकता है फैसला :वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा कहना है कि कई राज्यों के राज्यपाल केंद्र सरकार के टूल्स के रूप में काम कर रहे हैं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की दखलंदाजी के बाद इसका कुछ हल निकलता दिख रहा है. लेकिन यह काफी दुखद पहलू है कि उन्हें राज्यपाल के मामले को लेकर हस्तक्षेप करना पड़ रहा है.ऐसे भी बिल को रोक के रखने का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है यह देखने वाली बात है.अब जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों पर दखलंदाजी की है उससे आने वाले समय में सुधार होगा.

राज्यपाल के पास लंबित प्रमुख विधेयक

• 76 प्रतिशत नवीन आरक्षण विधेयक,
• बिजली शुल्क विधेयक
• भूजल प्रबंधन विधेयक
• सहकारी समिति का संशोधन विधेयक
• भू राजस्व का विधेयक
• तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल बढ़ाने संबंधी विधेयक
• पत्रकारिता विश्वविद्यालय विधेयक
• मंडी संशोधन विधेयक जिसमें किसानों के हितों के सरंक्षण के लिए डिम्ड मंडी का प्रावधान है.


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