रायपुर : छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण को लेकर संशोधन विधेयक अब भी राज्यपाल के पास लंबित है.लेकिन ऐसे ही जुड़े मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है.जिसमें राज्यपाल के अधिकारों के बारे में कहा गया है.सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि राज्यपाल किसी बिल को सहमति नहीं देते तो उसे पुनर्विचार के लिए विधायिका को भेजा जाना चाहिए. राज्यपाल यदि ऐसा नहीं करते हैं तो ये एक तरीके से विधायी प्रक्रिया को पटरी से उतारने जैसा है.आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वीटो पावर क्या है. राज्यपाल के पास यदि कोई बिल हस्ताक्षर के लिए जाता है, तो वह उस मामले में क्या कदम उठा सकते हैं. यदि राज्यपाल बिल को लेकर सहमत नहीं है तो क्या उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाया जा सकता है.
क्या है राज्यपाल का वीटो पावर ? :इस मामले को लेकर कानून की जानकार और हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिंह का कहना है कि वीटो पावर के तहत कुछ विशेष अधिकार दिए जाते हैं. यह अधिकार राज्यपाल को भी दिए गए हैं .कई बार देखा गया है कि अलग-अलग देश का कोई संगठन होता है. उसमें किसी एक देश को भी वीटो का पावर दिया जाता है .जिससे वह इस पावर का उपयोग कर कोई अनैतिक या असंवैधानिक कार्य होने से रोकता है.
'' छत्तीसगढ़ में वीटो पावर का दुरुपयोग किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर यदि कोई विधेयक पारित होता है,ओर उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. राज्यपाल के पास तीन ऑप्शन होते हैं, पहला उस पर हस्ताक्षर कर दे. दूसरा उसे वापस विधानसभा को लौटा दे. तीसरा यदि वह इससे सहमत नहीं है तो विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दे. लेकिन वीटो पावर का इस्तेमाल करके इस विधेयक को लंबे समय तक नहीं रोक सकता है.'' दिवाकर सिन्हा, सीनियर एडवोकेट हाईकोर्ट
राज्य सरकार जा सकती है सुप्रीम कोर्ट :दिवाकर सिन्हा ने कहा कि छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो आरक्षण बिल सहित कई अन्य विधयेक लगभग 1 साल से ज्यादा समय से राज्यपाल के पास लंबित हैं. देश के कई राज्यों से इस तरह के मामले अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ऐसा ना हो कि हमें मजबूरन राज्यपाल के खिलाफ कोई कदम उठाना पड़े. छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो आरक्षण बिल सहित अन्य लंबित विधायक को लेकर राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है.