रायपुर : सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास ने अपने परिवार समेत बीजेपी में प्रवेश किया है.बालदास कांग्रेस के समर्थक रहे हैं.लेकिन चुनाव से पहले बालदास का बीजेपी में प्रवेश करना प्रदेश में बड़े सियासी हलचल पैदा कर सकता है. आपको बता दें कि बालदास ने पिछले चुनाव में कांग्रेस का दामन थामा था. इस दौरान उनके साथ पूरे परिवार ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी.लेकिन इस बार बालदास और उनका पूरा परिवार बीजेपी से जुड़ चुका है.
ईटीवी भारत से बातचीत में सतनाम समाज के धर्मगुरु बाल दास ने कहा कि कांग्रेस में हमें कोई सम्मान नहीं मिला. हमारे समाज को भी कोई सम्मान नहीं मिला. समाज के जो अधिकार थे वो भी नहीं दिए गए . हमेशा अपमानित किया गया और भेदभाव की राजनीति की गई.
'' हमारे धर्म स्थल में कांग्रेस की सरकार ने एक ईंट तक नहीं रखी. सिर्फ घोषणाएं की गई. लेकिन कुछ काम नहीं किया गया.हमने देखा कि कांग्रेस में रहकर हमारे समाज का विकास नहीं है. इसलिए समाज के उत्थान के लिए हमने भाजपा प्रवेश किया है.''-बालदास,धर्मगुरु सतनामी समाज
आरंग विधानसभा से दावेदारी की कही बात :भाजपा प्रवेश के दौरान कोई वादा या टिकट देने के सवाल पर सतनाम समाज के धर्मगुरु बाल दास ने कहा कि दावेदारी तो हर बार रहती है. हम आरंग विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी करेंगे. लेकिन टिकट देना या नहीं देने का निर्णय भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी करेंगे.
बालदास के बेटे ने भी दिया इस्तीफा :आपको बता दें किसतनामी समाज के धर्मगुरु बाल दास के पुत्र खुशवंत साहेब को कांग्रेस सरकार ने औषधीय पादप बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया था. ईटीवी से बातचीत में खुशवंत साहिब ने बताया कि उन्होंने औषधीय पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से सोमवार इस्तीफा दे दिया है. बीजेपी के साथ हैं और समाज के उत्थान के लिए बीजेपी के साथ जुड़कर काम करेंगे.
छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज का असर :सतनामी समाज से आने वाले गुरु बाल दास के बीजेपी प्रवेश को राजनीति के जानकार बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं. छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज के वोटरों की संख्या अधिक है. छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा में 10 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इसके साथ ही प्रदेश के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में सतनामी समाज के लोग निवास करते हैं. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में इसका असर पड़ सकता है .2013 विधानसभा चुनाव के दौरान बाल दास ने सतनामी सेना से अपने प्रत्याशियों को उतारा था. जिसके कारण नौ विधानसभा सीटों में कांग्रेस के नेताओं की हार भी हुई थी.