ज्योतिष महेंद्र कुमार ठाकुर रायपुर: किसी भी जातक की कुंडली में पहला, पांचवा और नवां भाव काफी खास होता है. पहले भाव से जन्म का, पंचम भाव से पिछले जन्म का और नवें भाव से अगले जन्म की गतिविधियों की जानकारी मिलती है. पहले भाव से व्यक्ति के वर्तमान जीवन में उसके काम और उपलब्धियों के साथ राजयोग के बारे में जानकारी मिलती है. पंचम भाव से व्यक्ति के पिछले जन्मों के कर्म देखे जाते हैं.
नवम भाव से पिता संबंधी जानकारी: नवम भाव आगामी जीवन का द्योतक है. नवम भाव से भाग्य का भी अध्ययन किया जाता है. यही भाव अध्यात्म का भी भाव है. पिता के आंकलन का संबंध भी नवम भाव से किया जाता है. नवम भाव से पिता का अध्ययन होता है.
शनि व्यक्ति को तपा कर निखारता है: "बढ़े पूत पिताके धरमे" यानी कि पिता के कर्म का फल बेटे को मिलता है. इसी आधार पर पिछले जन्मों में हमारे पूर्वजों के कर्मों का फल हमको और हमारे कर्मों का फल हमारी आने वाली पीढ़ी को मिलती है. जब 12वें भाव का संबंध केतु, नवम भाव के स्वामी गुरु और शनि से होता है. तो यह व्यक्ति आध्यात्मिक ऊंचाई की ओर जाता है. शनि न्याय का ग्रह है. शनि सोने की तरह पहले व्यक्ति को तपाता है. फिर उसके जीवन में निखार ले आता है. जैसे सोना आग में तप कर चमकने लगता है.
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ऐसे में रहती है शनि की दृष्टि:यदि कुंडली के आठवें भाव का संबंध शनि से हो जाए तो अच्छा रहता है. आठवें और बारहवें भाव का संबंध गुरु और केतु से भी हो जाए तो ऐसे व्यक्ति में यह ग्रह उसके लिए शुभ फलदायक है. उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. अगले जन्म में उसकी आध्यात्मिक ऊंचाई और तेजी से बढ़ती है. व्यक्ति की उपलब्धि के लिए ग्यारहवें भाव को देखा जाता है. 11वें भाव में शनि स्थित होकर जहां पंचम भाव को देखता है. वहीं ये अष्टम भाव को भी देखता है और लग्न को भी देखता है. ऐसे में इस जन्म, अगले और पिछले जन्म पर शनि की दृष्टि रहती है. आने वाले जन्म में व्यक्ति का आधार क्या होगा? कहां होगा? और कैसा होगा? इसका निर्धारण शनि करते हैं. यहीं से खाका तैयार होता है.