रायपुर:कहा जाता है कि आरएसएस राजनीतिक दल नहीं है. इसका चुनाव से कोई लेना देना नहीं होता है. बावजूद इसके आरएसएस चुनाव को काफी हद तक प्रभावित करता है. ऐसे में आरएसएस का राजनीतिक दल ना होने का दावा कितना सही है. छत्तीसगढ़ में आरएसएस की क्या स्थिति है. अपने आप को एक सामाजिक संगठन के रूप में बताता है. भाजपा भी RSS को सामाजिक संगठन कहती है लेकिन जिस तरह से छत्तीसगढ़ में RSS की गतिविधियां पिछले कुछ दिनों में देखने को मिली है. इससे तो यही लगता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में RSS की महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है. भले ही RSS सामाजिक संगठन हो लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में इसका अहम रोल हो सकता है. यही वजह है कि चुनाव लड़ते हुए भी चुनाव पर खासा प्रभाव रखता है.
जनता का सामना करने से बचती है आरएसएस:कांग्रेस का भी यही मानना है कि RSS भले ही सामाजिक संगठन हो लेकिन उसका चुनाव में खासा प्रभाव होता है और वह भाजपा के लिए काम करती है. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि "RSS लोकतंत्र में सीधा जनता का सामना करने से बचती है. इसलिए वह चुनाव नहीं लड़ती है बल्कि इनडायरेक्ट रूप से पर्दे के पीछे रहकर भाजपा के लिए काम करती है. आरएसएस पीछे दरवाजे से सत्ता में आना चाहती है. कांग्रेस RSS को सीधी चुनौती देती है कि देश में बहुत सारे राजनीतिक दल और संगठन जनता के लिए काम कर रहे हैं यदि आरएसएस जनता की सेवा करना चाहती है, तो लोकतंत्र का सामना क्यों नहीं करती. सीधे चुनाव में क्यों नहीं उतरती है."
भाजपा को RSS का सहारा: राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा का कहना है "वास्तव मे प्रत्यक्ष रूप से RSS कोई राजनीतिक संगठन नहीं है. वह सामाजिक संगठन के रूप में सामने आया है. उसका सामाजिक कार्यों के प्रति ज्यादा रुझान देखने को मिला है. लेकिन यह सभी जानते है कि भारतीय जनता पार्टी के पीछे निश्चित रूप से RSS का हाथ होता है. इसलिए कह सकते हैं कि भाजपा को RSS सहारा देती है. जिससे RSS का हिंदुत्व राष्ट्रवाद का एजेंडा कायम रहे. उसके लिए यह कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. लेकिन वे इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आते हैं. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी कहीं ना कहीं संघ की विचारधारा या फिर संघ के पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं."
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दो बार मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ दौरा:शर्मा ने आगे कहा "वर्तमान स्थिति को देखा जाए दो बार मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ दौरा हुआ है, ऐसा शायद ही कहीं देखने को मिला है, जहां आरएसएस के प्रमुख का दौरा इतने जल्दी दो बार हुआ हो और वे इतने दिनों तक रुके हो. लेकिन छत्तीसगढ़ में मोहन भागवत ने दो बार दौरा किया, मोहन भागवत का यह दौरा काफी महत्वपूर्ण है. इसलिए ऐसा लगता है कि जिस तरह से RSS उभरकर सामने आ रहा है इससे ऐसा लगने लगा है कि आरएसएस ने नेतृत्व को अपने हाथ में लेने का प्रयास शुरू कर दिया है. यह प्रत्यक्ष राजनीति करने की शुरुआत तो नहीं करने वाली है. मोहन भागवत का प्रत्यक्ष भाषण, किसी कार्यक्रम में जाकर उद्घाटन करना, आदिवासी समाज के बीच जाकर उनसे चर्चा करना, ऐसी स्थिति पहले कभी देखने को नहीं मिली."
बस्तर में आरएसएस सक्रिय:शर्मा बताते हैं कि "कुछ समय पहले उन्होंने दंतेवाड़ा का दौरा किया था. वहां देखा कि गांव गांव में आरएसएस के सदस्य सक्रिय हुए हैं. लोगों को भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में कन्वेंस कर रहे हैं. वर्तमान में मोहन भागवत आदिवासियों को केंद्र बिंदु बनाकर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं. आरएसएस के लोग बस्तर में सक्रिय हैं. सरगुजा बेल्ट को भी RSS साधने में लगी हुई है. खुद मोहन भागवत गए हुए थे. भारतीय जनता पार्टी ज्यादा से ज्यादा आदिवासियों को प्रभावित कर सीट हासिल करना चाहती है. जिससे प्रदेश में एक बार फिर भाजपा की सरकार स्थापित हो सके. इसके लिए आरएसएस भी खुलकर सामने आ गई."
छत्तीसगढ़ में आरएसएस की गतिविधियां तेज:हालांकि इस पूरे मामले पर जब भाजपा के पदाधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. छत्तीसगढ़ में आरएसएस की गतिविधियां तेज हो गई है. कुछ दिन पहले ही आरएसएस की बैठक सहित इनके प्रमुख पदाधिकारी छत्तीसगढ़ में डेरा डाले हुए थे. यहां तक कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहे हैं. उनका यह प्रवास इस बार काफी लंबा रहा है. लगभग एक हफ्ते तक मोहन भागवत छत्तीसगढ़ में रहते हुए विभिन्न संगठनों की बैठक ली. इतना ही नहीं आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेताओं को भी छत्तीसगढ़ भाजपा में विशेष तवज्जो दी जा रही है. पहले आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था उसके बाद ओम माथुर को भाजपा ने छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी बनाया. ओम माथुर भी आरएसएस बैकग्राउंड से आते हैं. लगातार प्रदेश में बढ़ रही आरएसएस की सक्रियता ने आम लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या इस बार आरएसएस के सहारे भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की तैयारी कर रही है.