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SPECIAL: छत्तीसगढ़ में लोक आयुक्त की भूमिका और प्रासंगिकता, क्या कहते हैं नियम?

छत्तीसगढ़ में लोकायुक्त अधिनियम 1981 लागू है. अलग राज्य बनने के बाद यहां लोकायुक्त अधिनियम 2002 बनाया गया है. पहले के कुछ नियमों को शिथिल कर नए नियम बनाए गए और लोकायुक्त नाम दिया गया है.

Chhattisgarh Public Commissioner
छत्तीसगढ़ लोक आयुक्त

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Published : Aug 29, 2020, 10:03 PM IST

Updated : Aug 29, 2020, 10:23 PM IST

रायपुर:जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था तब से ही यहां लोकायुक्त अधिनियम 1981 लागू है. अलग राज्य बनने के बाद यहां लोकायुक्त अधिनियम 2002 बनाया गया. इस दौरान पूर्व के कुछ नियमों को बदलते हुए नए नियम बनाए गए और लोकायुक्त नाम दिया गया. वर्तमान में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज टीपी शर्मा प्रमुख लोकायुक्त हैं.

लोक आयुक्त की भूमिका और प्रासंगिकता

छत्तीसगढ़ में लोक आयोग की भूमिका के संबंध में कुछ विशेषज्ञों से चर्चा की गई. बातचीत में यह बात साफ होता है कि इस आयोग को प्राप्त अधिकारों के अध्ययन से साफ होता है कि इसके फैसले अनुशंसा के रूप में होते हैं यानी आयोग किसी विषय पर अपनी विवेचना के बाद संबंधित विभाग को अनुशंसा भेजता है. अब उस अनुशंसा पर कार्रवाई करना विभाग की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में जानकर आज इस व्यवस्था को सफेद हाथी कहने से भी नहीं चूक रहे हैं, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि लोक आयोग की अनुशंसा का प्रशासनिक स्तर पर बड़ा महत्व है और इसकी जांच भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है.

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कैसे की जाती है शिकायत और अनुशंसा की प्रक्रिया
छत्तीसगढ़ लोक आयोग में शिकायत के लिए अलग-अलग प्रारूप में आवेदन तैयार किए गए हैं. इन्हें संबंधित व्यक्ति और विभाग की जानकारी देते हुए एक शपथ पत्र के साथ लोक आयोग को दी जाती है. लोक आयोग इस शिकायत का अवलोकन कर तय करता है कि संबंधित विषय जांच के लिए उपयुक्त है या नहीं. जांच के लायक पाए जाने के बाद लोक आयोग सभी दस्तावेजों की जांच कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है और अपनी अनुशंसा संबंधित विभाग या संबंधित उच्च अधिकारी को भेजता है. लोक आयोग अधिनियम 2002 में साफ कहा गया है कि मुख्यमंत्री से संबंधित अनुशंसा राज्यपाल को भेजा जाता है. वहीं सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के लिए अलग-अलग मापदंड तय किए गए हैं. इसके अलावा राज्यपाल के माध्यम से विधानसभा में अनुशंसा की जानकारी भेजी जाती है.

कई शिकायतों पर ठोस कार्रवाई नहीं !
छत्तीसगढ़ लोक आयोग के संबंध में पूर्व वित्त आयोग के अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे का कहना है कि उन्होंने अलग-अलग मुद्दों पर कई बार लोक आयोग से शिकायत की, लेकिन आजतक किसी भी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद जब 1981 के लोकायुक्त नियम में बदलाव कर 2002 में लोकायुक्त अधिनियम लाया गया, तब इसकी शक्तियां पहले से कम कर दी गई. इसलिए भी लोक आयोग बिना दांत का ही शेर बनकर रह गया है.

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ताक पर रख दिए गए अनुशंसा
पिछले 18 सालों में आयोग से करीब 6000 शिकायतें की गई. इनपर आजतक किसी मामले में बड़ी कार्रवाई नहीं हुई. आलम यह है कि कई-कई साल तक विभाग लोक आयोग की अनुशंसा पर किसी तरह का एक्शन लेने की जहमत नहीं उठा रहा है. पिछले 18 सालों में लोक आयोग ने कई सिफारिश सरकार से की, लेकिन उनपर कार्रवाई नहीं की गई. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण रिटायरमेंट के बाद संविदा नियुक्ति से जुड़ा था. आयोग ने सिफारिश की थी कि रिटायरमेंट के बाद संविदा नियुक्ति बंद की जाए, लेकिन न तो आजतक इसे बंद किया गया और न ही कोई मापदंड तय किया गया.

आयोग को सशक्त बनाने किया गया उपसमिति का गठन
2014 में राज्य सरकार ने आयोग को सशक्त बनाने के लिए मंत्रियों की एक उप समिति गठित की थी, लेकिन इस उप समिति ने अपनी रिपोर्ट नहीं दी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोक आयोग को सशक्त बनाने के लिए सरकार कितनी गंभीर है. हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कई बार कहा है कि वे मजबूत लोग आयोग के पक्षधर हैं और यह बात उनकी पार्टी ने जन घोषणा पत्र में भी शामिल है. अब देखने वाली बात होगी कि कब इस आयोग को सही मायने में अधिकार मिल सकेगा.

Last Updated : Aug 29, 2020, 10:23 PM IST

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