रायपुर: reservation issue in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में लगातार आरक्षण का मुद्दा गरमाता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर जहां एक ओर राजनीतिक दल आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. वहीं आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार सहित विपक्ष में बैठी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. भानूप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में यह देखा जा सकता है. लेकिन इस बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसे कौन से राज्य हैं, जहां 50% से अधिक आरक्षण की व्यवस्था है. वह किन परिस्थितियों में है. क्या वह लागू किया गया या फिर उसे भी कोर्ट के द्वारा खारिज किया गया. इन तमाम सवालों के जवाब के लिए ही भारत ने संविधान के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा से बात की है.
50% से ज्यादा आरक्षण संभव नहीं : 50% से ज्यादा आरक्षण वाले राज्यों को लेकर जब शशांक शर्मा से सवाल किया गया तब उन्होंने बताया कि "संविधान की व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट ने जो 1992 में इंदिरा साहनी के केस में जो अपना फैसला सुनाया था. उसके बाद महाराष्ट्र राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण देने का प्रयास किया. हालिया उदाहरण मराठा आरक्षण महाराष्ट्र में किया गया था. उस समय 68% आरक्षण महाराष्ट्र में दिया गया था. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2021 में उसे खारिज कर दिया है. एक बार पुनः स्थापित किया किसी भी राज्य में, किसी भी स्थिति में 50% से ज्यादा आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता. छत्तीसगढ़ में भी हाईकोर्ट ने 2012 में पारित अधिनियम पर जब फैसला सुनाया है. उस पर भी कहा कि 50% के भीतर ही आरक्षण लागू किया जाएगा. भले ही आरक्षण अनुपात ऊपर नीचे किया जा सकता है. लेकिन यह 50% से ज्यादा नहीं हो सकता ऐसे में आप केवल इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर सकते. प्रस्ताव पारित कर सकते हैं. विधानसभा में विधेयक पारित कर सकते हैं, क्वांटिफाइबल आयोग लगा सकते हैं. उसकी छूट है. लेकिन संविधान के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप यह आज नहीं तो कल न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."
जब साल 2012 में यह आरक्षण लाया गया था तो क्या तत्कालीन सरकार को नहीं पता था कि आने वाले समय में इसकी क्या स्थिति होगी. इस पर शशांक शर्मा ने कहा "उनको भी यह बात पता थी. लेकिन उस समय सरकार की जिम्मेदारी है. अनुसूचित जनजाति वर्ग की संख्या 32% है. उनको इसकी ज्यादा जरूरत है तो संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है. वह मूलतः दो वर्गों के लिए लागू की गई थी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति इनको आरक्षण देना सरकार की प्राथमिकता थी. उनकी आबादी के हिसाब से लाया गया. जानकार उस समय भी जानते थे कि यह संविधान की दृष्टि से सही नहीं है. इसलिए केस लंबा खींचता रहा और आखिरकार पिछले 2 महीने पहले इसका निर्णय आया तो यह खारिज हो गया."
झारखंड में 77% आरक्षण: शशांक ने कहा "झारखंड में 77% किया गया था आप कुछ भी कर लीजिए तमिलनाडु का उदाहरण देकर आप कुछ नहीं कर सकते, तमिलनाड एक बहुत ही अपवाद स्वरूप है. वहां आरक्षण स्वतंत्रता के पूर्व से चला रहा है इसलिए भारत का संविधान लागू होने के बाद उसका प्रभाव नहीं पड़ा. वहां 69% आरक्षण कब से है. यदि तमिलनाडु को छोड़ दिया जाए तो आप कहीं भी किसी प्रदेश में आरक्षण को 50% से ज्यादा करेंगे तो न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."
वहीं कुछ जगहों पर 50% से कम आरक्षण को लेकर शशांक शर्मा ने कहा "पश्चिम बंगाल में कम आरक्षण है. हरियाणा में 70% आरक्षण किया गया था. लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है और यह मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट में जिस दिन निर्णय आएगा उस दिन वह खारिज हो जाएगा."