रायपुर : छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर संकट गहराता जा रहा है. हाईकोर्ट के बाद अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. याचिकाकर्ता विद्या सिदार ने आरक्षण मामले पर हाईकोर्ट के फैसले पर विशेष अनुमति याचिका पर स्टे देने ुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्टे देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि '' बिलासपुर हाईकोर्ट (Bilaspur HighCourt) के फैसले पर स्टे आर्डर नहीं दिया जा सकता. हाईकोर्ट ने काफी विचार के बाद दो अधिनियमों को किया है. इस पर पर्याप्त सुनवाई होने तक सरकार को विधि सम्मत कार्रवाई करनी ही होगी. इसके बाद एक याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार को अवमानना का लीगल नोटिस भेजा है. साथ ही बताया कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो गया है.''Reservation deduction case in Chhattisgarh
Reservation deduction case in Chhattisgarh सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर स्टे देने से इनकार, याचिकाकर्ता ने सरकार को भेजा नोटिस - Bilaspur HighCourt
छत्तीसगढ़ में आरक्षण की कटौती का मामला गरमाते जा रहा है. इस मामले में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. ताकि हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे ऑर्डर लिया जा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे देने पर इनकार कर दिया है.Reservation deduction case in Chhattisgarh
आरक्षण मामले में सरकार को भेजा लीगल नोटिस :इसके बाद आदिवासी समाज के छात्र नेता योगेश ठाकुर ने राज्य सरकार को एक लीगल नोटिस भेजा है.एडवोकेट जार्ज थॉमस के जरिए यह नोटिस मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और विधि एवं विधायी कार्य विभाग के सचिव को भेजा गया है. इसमें साफ किया गया है कि बिलासपुर उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर के फैसले से फिलहाल नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो गया है. सामान्य प्रशासन विभाग और दूसरे विभागों को तत्काल बताना होगा कि राज्य सरकार की ओर से कोई नया अधिनियम, अध्यादेश अथवा सर्कुलर जारी होने तक लोक सेवाओं एवं शैक्षणिक संस्थाओं में कोई आरक्षण नहीं मिलेगा.reservation issue in chhattisgarh
न्यायालय की अवमानना का करेंगे केस दर्ज :आदिवासी समाज के छात्र नेता और याचिकाकर्ता योगेश ठाकुर के मुताबिक अगर एक सप्ताह के भीतर सरकार ने ऐसा नहीं किया तो वह न्यायालय की अवमानना का केस दायर करेंगे. योगेश ठाकुर की ही याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है. इस नोटिस की वजह से राज्य सरकार की स्थिति प्रतिवादी की हो गई है. उन्होंने कहा 29 सितम्बर को सामान्य प्रशासन विभाग ने उच्च न्यायालय के फैसले की कॉपी सभी विभागाध्यक्षों को कार्रवाई के लिए भेजी. इसके साथ विधिक स्थिति का उल्लेख नहीं किया. इसकी वजह से अलग-अल विभाग इसकी अलग-अलग व्याख्या कर रहे हैं. इससे प्रशासन में भ्रम की स्थिति बन गई है. सरकार आगे बढ़कर इसे स्पष्ट भी नहीं कर रही है.