रायपुर : ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए. तो उनकी कोई संतान नहीं थी. बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं मेरी बेटी शांता आपको संतान के रूप में दूंगा. रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुए. उन्हें शांता के रूप में संतान मिल गई. उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाएं
रोमपद से हुई एक भूल :एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे. तब द्वार पर एक ब्राह्मण आया और उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में शासन की ओर से मदद प्रदान करें। राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वे पुत्री के साथ बातचीत करते रहे. द्वार पर आए नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वे राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए. वे इंद्र के भक्त थे. अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की.अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई. इससे खेतों में खड़ी फसल मुर्झाने लगी. इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद श्रृंगी ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा. ऋषि ने बताया कि वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करेंगे. ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए. इसके बाद श्रृंगी ऋषि का विवाह शांता से हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे.
राजा दशरथ पुत्र को लेकर थे चिंतित :राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा. इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं. इससे पुत्र की प्राप्ति होगी. दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया. इस यज्ञ में दशरथ ने श्रृंगी ऋषि को भी बुलाया. श्रृंगी ऋषि एक पुण्य आत्मा थे . जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था. सुमंत ने श्रृंगी को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा. दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया.
शांता और श्रृंगी ने करवाया यज्ञ : पहले तो श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया. लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही श्रृंगी ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे. लेकिन दशरथ ने केवल श्रृंगी ऋषि को ही आमंत्रित किया. लेकिन श्रृंगी ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता.मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा. श्रृंगी ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से अकाल ना पड़ जाए. तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए. शांता और श्रृंगी ऋषि अयोध्या पहुंचे. शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे. शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए. दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है.' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए.क्योंकि वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था.इसके बाद श्रृंगी ऋषि शांता के साथ वन में वापस चले आएं. इस दंडकारण्य को लोग आज सिहावा के नाम से जानते हैं. जहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम भी है.
छत्तीसगढ़ में कहां है श्रृंगी का आश्रम :श्रृंगी ऋषि सप्तऋषियों में से एक हैं. शृंगी ऋषि ही थे जिनके आशीर्वाद से राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति हुई. यह मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित है. यहां पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गई. लम्बी चढ़ाई करने के बाद सबसे ऊपर मंदिर स्थित है. यहां प्रतिवर्ष भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. यहां पहाड़ी पर भी एक छोटा सा कुंड है, लोग कहते हैं कि महानदी का एक उद्गम यह है. इसका सीधा सम्बन्ध नीचे बह रही महानदी से है. इस सूखे पथरीली पहाड़ी के शीर्ष पर पानी का कुण्ड होना एक अजूबा ही है.पहाड़ी से नीचे उतरने पर फिर एक आश्रम मिलता है. महर्षि श्रृंगी ऋषि के आश्रम की यात्रा का यही अंतिम पड़ाव होता है. यदि पास में बस्तर जैसा प्राकृतिक सौन्दर्य निहारना है. तो सिहावा-नगरी एक आदर्श पर्यटन स्थल के रुप में दिखाई देता है.
क्या है आश्रम की मान्यता :मान्यताओं के अनुसार सप्त ऋषियों में सबसे वरिष्ठ अंगिरा ऋषि को माना गया है. सिहावा में महर्षि श्रृंगी ऋषि के आश्रम के दक्षिण दिशा में ग्राम पंचायत रतवा के समीप स्थीत नवखंड पर्वत में उन्होंने तप किया था. यहां एक छोटी सी गुफा में अंगिरा ऋषि की मूर्ति विराजित हैं. श्रद्धालुओं में उनके प्रति अटूट आस्था है. जो भी दर्शन करने आते हैं, उनकी मनोकामना अवश्यपूर्ण होती है. पर्यटन के साथ-साथ इस आश्रम से लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है.पर्वत शिखर पर अंगिरा ऋषि के अलावा अलावा भगवान शिव, गणेश, हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं. पर्वत के नीचे एक यज्ञ शाला भी है. सात से अधिक गुफाएं हैं.पर्वत शिखर पर एक शीला में भगवान श्रीराम का पद चिन्ह भी है. जब श्रीराम वनवास के लिए निकले थे, तब उनका आगमन अंगिरा आश्रम में हुआ था.उनके पद चिन्ह उसी समय का है.