रायपुर: हमारे देश में ये परंपरा आदि काल से चली आ रही है कि जब कोई शिशु का जन्म होता है तो जितना उसके पिता के घर में खुशियां मनाई जाती है, उतना ही उल्लास उसके ननिहाल में भी देखने को मिलता है. मिठाई बांटना और सोहर घर से सुनाई देने लगता है. कौशल प्रदेश यानि छत्तीसगढ़ की धरती को भगवान राम के ननिहाल यानि माता कौशल्या की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है. जाहिर सी बात है कि राम के जन्म की खबर मिलते ही कौशल प्रदेश में बड़ा उल्लास मनाया गया होगा और उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी लोग राम नवमी के पर्व को छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना कर भगवान राघवेन्द्र सरकार के जन्म की बधाई दी जाती. लेकिन इस साल कोरोना महामारी के चलते इस उत्सव घर पर ही मनाया गया.
यहां के कण-कण में हैं राम रायपुर के नजदीक चंद्रखुरी नाम के गांव में माता कौशल्या का एक मंदिर है, बताया जाता है कि ये मां कौशल्या का एक मात्र मंदिर है. यहां विराजित प्रतिमा की छटा मां की ममता और वात्सल्या का जीता जागता नमूना है. मां कौशल्या की गोद में राम लला की प्रतिमा मंदिर में विराजित है. बताया जाता है कि इस स्थान पर मां कौशल्या ने राम के वनवास से लौटने के बाद कई साल तक वास किया था. जानकारों का मानना है कि इसी दौरान अयोध्या के राजा राम अपनी मां से मिलने यहां आते होंगे इसी की याद में इस तरह की मूर्ति या प्राचिन काल से विराजित है.
वन गमन का लंबा वक्त इस प्रदेश में गुजरा-
भगवान राम-सीता और लक्ष्मण ने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में काफी लंबी यात्रा की है. उनके कई निशान आज भी प्रदेश में बिखरे हुए हैं. उत्तर में सरगुजा संभाग में कई स्थान हैं जो राम के वहा आने की गवाही देते हैं. इसी तरह मध्य यानि बिलासपुर संभाग में शिवरीनारायण में भगवान के आने के भी प्रमाण मिलते हैं. बताया जाता है कि यही वो स्थान है जहां भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. फिर राजिम में मां सीता द्वारा स्थापित कुलेश्वर महादेव आज भी छत्तीसगढ़ वासियों के लिए आराध्य हैं.
इसके बाद वनवास का सबसे कठिन दौर दंडकारण्य का बड़ा भूभाग छत्तीसगढ़ दक्षिण क्षेत्र यानि बस्तर में समाहित है. बस्तर का गीदम वही क्षेत्र है, जहां गिद्धराज बजटायु वास करते थे. जिन्हें भगवान राम ने पितृ तुल्य सम्मान दिया था. इस तरह प्रदेश के ज्यादातर जिलों में भगवान राम से जुड़ी कई कथाएं सुनने को मिलती है. छत्तीसगढ़ सरकार इसे राम गमन कॉरीडोर के तौर पर डेवलप करने की योजना भी बना रही है. इस पर काम भी शुरू हो गया है.
जनमानस और परंपरा में गहरी पैठ-
राम को पूजने के चलते या इसी परंपरा को मानते हुए छत्तीसगढ़ में भानजों को सबसे पूज्य माना जाता है. किसान जब अपनी फसल काट कर लाता है और उसकी मिसाई के बाद अनाज को तौलता है तो पहली ईकाई को राम कहा जाता है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि राम यहां के जनमानस में कितने गहरे तक बैठे हुए हैं. हम उम्मीद करते हैं इस आदर्शवान राजा के आदर्शों को हम अपने जीवन में उतारकर एक न्यायप्रिय समाज की स्थापना करेंगे और हमारे सारे दुख दूर करेंगे.