रायपुर:मोतीलाल वोरा का सियासी सफर बेहद ही खास रहा. चाहे पत्रकार की भूमिका हो या राजनेता की. इन दोनों से मिलकर मोती लाल वोरा बेहद खास हो जाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैय्यर मोती लाल वोरा के राजनीतिक सफर से लेकर पत्रकारिता जगत तक किस्से सुनाए. भले ही आज मोती लाल वोरा हमारे बीत नहीं है लेकिन उनके मिलनसार और अध्ययन शील शख्सियत आज भी लोगों के बीच जिंदा है. रमेश नैय्यर कहते हैं कि वोरा राजनेता होने से पहले पत्रकार थे. इसलिए वे कई पदों पर रहने के बाद भी पत्रकारों को खास महत्व देते थे.
रमेश नैय्यर से खास बातचीत रमेश नैय्यर बताते हैं कि, प्रकाश चंद सेठी सरकार में मोती लाल को परिवहन निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया था. इस दौरान मोतीलाल वोरा ने पत्रकारों के लिए स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस में फ्री पास जारी करवाया था. उस जमाने में राज्य परिवहन की बसें दिल्ली तक जाया करती थी. इससे पत्रकारों के बीच वोरा की खासी लोकप्रियता बनी थी.
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बुनियादी रूप से समाजवादी थे वोरा
वे बताते हैं कि मोतीलाल वोरा बुनियादी रूप से समाजवादी थे. राम मनोहर लोहिया से प्रभावित थे. एक बार कांग्रेस में आने के बाद ता उम्र उनकी निष्ठा कांग्रेस में ही बनी रही. संगठन से लेकर सत्ता तक वे विभिन्न पदों पर अंतिम समय तक अपनी भूमिका निभाते रहे.
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बेदाग छवि के लिए याद किए जाएंगे
मोतीलाल वोरा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी फिर सोनिया और राहुल गांधी के बेहद करीबी रहे. कांग्रेस के अच्छे दौर हो या खराब दौर वे हमेशा साथ खड़े रहे. उनकी राय की पार्टी में खास अहमियत थी. इतने शक्तिशाली पदों पर रहने वाले मोतीलाल वोरा की छवि हमेशा बेदाग रही. वह इतने ईमानदार थे कि उनके कुर्ते में जेब भी ही नहीं थे. इसके अलावा कठोर परिश्रम ने उन्हें बुलंदी पर ला खड़ा किया.
दिल से भी थे इमोश्नल
रमेश नैय्यर ने खुद से जुड़ा एक वाक्या याद करते हुए बताया कि, वे जब चंडीगढ़ में पदस्थ थे. उनकी पत्नी रायपुर बीटीआई में जॉब करती थी. एक दिन पंजाब के गवर्नर अर्जुन सिंह उनके यहां खाने पर आने वाले थे. तब उन्होंंने बताया कि वह अकेले रहते हैं और खाना भी बाहर खाते हैं. क्योंकि उनकी पत्नी साथ नहीं रहती. उस वक्त अर्जुन सिंह ने तत्काल मोतीलाल वोरा जो कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उनसे कहक नैय्यर की पत्नी को तत्काल डेपुटेशन में चंडीगढ़ भेज दिये.
स्कूटर और मेटाडोर से नापा था पूरा मध्य प्रदेश
मोतीलाल वोरा कांग्रेस संगठन के कामकाज को लेकर 1985 में पूरा मध्य प्रदेश स्कूटर और मेटाडोर पर छान मारा था. वह स्कूटर पर सार्वजनिक बसों पर यात्रा करते थे. सत्ता के इतने करीब रहकर भी जमीन से जुड़े रहने की खासियत ने उन्हें मोती का दर्जा दिलाया.