राजिम कुंभ का इतिहास और धार्मिक मान्यता, जानिए क्यों कहा जाता है छत्तीसगढ़ का प्रयाग ?
Rajim kumbh छत्तीसगढ़ के प्रयाग के तौर पर राजिम को जाना जाता है.यहां पवित्र नदियों के किनारे लगने वाले कुंभ के जैसा ही कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.जिसे राजिम कुंभ या राजिम पुन्नी मेला के तौर पर जाना जाता है.
रायपुर :राजिम कुंभ को राजिम पुन्नी मेला के तौर पर भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ राजिम जिले के राजिम नगर में हर साल आयोजित होने वाला हिन्दू धार्मिक मेला है. जिसमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं. राजिम में भगवान विष्णु का मंदिर है.जो पैरी,सोंढूर और महानदी के संगम स्थल पर बना हुआ है.राजिम एक प्राचीन स्थल है. जो अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वपूर्णता के लिए प्रसिद्ध है. यहां कई पुरातात्विक स्थल, मंदिर और धार्मिक स्थल हैं. जो लोगों को आकर्षित करते हैं. राजिम के पास कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल हैं जैसे कि राजिम का महाकालेश्वर मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, राजिम झील प्रसिद्ध है.
राजिम की धार्मिक मान्यता : राजिम को लेकर कोई पक्का इतिहास मौजूद नहीं है,लेकिन एक कथा राजिम के कुलेश्वर मंदिर से जुड़ी हुई है.जिसमें ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय भगवान विष्णु के नाभि से कमल के पत्ते पृथ्वी पर गिरे.जहां ये पत्ते गिरे वो क्षेत्र पद्म या कमल क्षेत्र में बदल गए.राजिम का कुलेश्वर मंदिर इन सभी क्षेत्रों का केंद्र बना.जिसके चारों ओर पांच शिवलिंग स्थापित हुए.इन शिवलिंगों को क्षेत्र की सीमा को निर्धारित करके स्थापित किया गया है.
पुरी की यात्रा राजिम के बिना अधूरी :ऐसी भी मान्यता है कि जब तक पुरी की यात्रा के बाद राजिम नहीं आया जाता तब पुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है.इसके लिए राजिम के साक्षी गोपाल मंदिर में भगवान विष्णु के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होती है.
क्या है राजिम कुंभ :राजिम अपने कुंभ मेले के लिए भी जाना जाता है.जिसमें संतों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं.इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है.साथ ही साथ त्रिवेणी संगम की ही तरह यहां तीन नदियों का भी संगम है.यही वजह है कि कई लोग परिजनों की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार राजिम में ही करते हैं.
राजिम कुंभ मेले का महत्व :यह मेला भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में महत्वपूर्ण है और इसे पुन्नी यानी पवित्र और शुद्ध स्थान के रूप में माना जाता है. मेला का आयोजन विशेष धार्मिक आधार पर होता है. इसमें भगवान शिव, पार्वती, और गणेश की पूजा की जाती है. मेला के दौरान, लोग स्नान करने के लिए नदी में जाते हैं. फिर पवित्र स्थानों पर पूजा-अर्चना करते हैं. यहां भगवान शिव के मंदिरों में भी भक्ति आराधना की जाती है.मेला के दौरान स्थानीय सांस्कृतिक कला और विरासत का प्रदर्शन भी किया जाता है.