रायपुर :देशभर में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार कोरोना संक्रमण रफ्तार कम होने के कारण होली का उत्साह दोगुना हो गया है. रायपुर में भी लोग जमकर होली की तैयारी कर रहे हैं. होली के मौके पर ईटीवी भारत आपको 200 साल पुराने इतिहास से रू-ब-रू कराने जा रहा है. 200 साल से सेठ नाथूराम का दरबार सजता आया है. आज भी होली के मौके पर यह सजाया जाता है.
दूल्हे के तरह सजते हैं नाथूराम
रायपुर के सदर बाजार स्थित नाहटा मार्केट में विराजे सेठ नाथूराम की मूर्ति को दूल्हे की तरह सजा कर उनकी बारात निकाली जाती है. जिस तरह बाराती नाचते कूदते हैं, उसी तरह का हंगामा सेठ नाथूराम की बारात में भी होता है. हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 2 सालों से बारात का आयोजन नहीं किया गया है, लेकिन पूजा-अर्चना की परंपरा बरसों से चली आ रही है.
सेठ नाथूराम आस्था का प्रतीक
नाथूराम के प्रति लोगों की आस्था वैधानिक है. श्रद्धालुओं का कहना है कि सेठ नाथूराम भगवान शिव जी का ही एक रूप है. इसे लेकर कई किवदंतियां प्रचलित है. एक बार शिवजी होली देखने के स्वांग धरकर जमीन पर आए थे. सेठ नाथूराम वही स्वांग वाला स्वरूप है. इन्हें रायपुर, भंडारा नागपुर, इंदौर में सेठ नाथूराम के नाम पुकारा जाता है. वहीं, राजस्थान में इन्हें " इलोजी " के नाम से संबोधित किया जाता है.
होलिका से जुड़ी ये कथा
सेठ नाथूराम को लेकर ये भी कहा गया है कि राक्षस राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका का विवाह इलोजी से तय किया था, क्योंकि हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का दुश्मन था. उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. हिरण्यकश्यप को यह बात पसंद नहीं थी उसने अपनी बहन होलिका से अपने बेटे को मारने के लिए मदद मांगी. होलिका के पास एक ऐसा वस्त्र था जो आग में नहीं जल सकता था. हिरण्यकश्यप को यह उम्मीद थी कि अग्नि में उसका बेटा मर जाएगा. उसके बाद वे अपनी बहन का विवाह इलोजी से करवाएंगे. जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी उस दौरान प्रहलाद में भगवान विष्णु की प्रार्थना की और होलिका जल गई. उस दौरान इलोजो नाथूराम दूल्हे के वेश में वैसे के वैसे ही रहे और उन्होंने होलिका दहन देखा. वे आजीवन कुंवारे रहे. उन्होंने होलिका की भभूत को अपने पूरे शरीर में लगा लिया.