Religious Leaders Are Game Changers: अपने प्रभाव वाली सीटों पर गेम चेंजर हैं धर्मगुरु, मोड़ सकते हैं चुनावी नतीजों का रुख
Religious Leaders Are Game Changers छत्तसीगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 नजदीक आते ही कई धार्मिक एवं सामाजिक गुरु राजनीतिक दलों में प्रवेश कर रहे हैं या फिर दल बदल रहे हैं. कई धर्मगुरु पहले से ही राजनीतिक दलों में हैं तो कुछ राजनेताओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं. वर्तमान में सतनामी समाज के गुरु बालदास ने भाजपा प्रवेश में प्रवेश किया. इसके पहले वह कांग्रेस में थे. अब राजनीति में धर्मगुरुओं की भूमिका को लेकर बहस छिड़ गई है, क्योंकि अपने प्रभाव वाली सीटों पर इनकी भूमिका गेम चेंजर वाली होती है. Chhattisgarh Assembly Elections 2023
रायपुर:किसी भी समाज, पंथ या धर्म में उनके गुरुओं का ऊंचा स्थान होता है. धर्म गुरु जब किसी बात को कहते हैं तो बिना कोई सवाल किए समाज उनके निर्देशों का पालन करता है. अपने समाज का भला करने के लिए कई बार धर्मगुरु राजनीतिक दलों से जुड़नें में गुरेज नहीं करते. हाल ही में सतनामी समाज के गुरु बालदास में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा की सदस्यता ली है. लेकिन गुरु बालदास धर्म गुरु से राजनीति में जाने के अकेले उदाहरण नहीं हैं. गुरु विजय कुमार और मिनी माता ने अपने समय में सियासी दखल बनाए रखी तो वहीं कांग्रेस के महंत रामसुंदर दास और गुरु रुद्र कुमार धर्म के साथ राजनीति को जोड़ने के उम्दा उदाहरण हैं. धर्मगुरुओं के राजनीतिक दलों से जुड़ने का इतिहास क्या है, मतदाताओं और चुनाव नतीजों पर इनका क्या असर पड़ता है, आईये जानने की कोशिश करते हैं.
छत्तीसगढ़ में भाजपा से जुड़ने वाले धर्मगुरु:
गुरु बालदास:हाल ही में सतनामी समाज के धर्म गुरु बालदास ने भाजपा में प्रवेश किया. गुरु बालदास सतनाम पंथ के बीच अच्छा प्रभाव रखते हैं. प्रदेश की तकरीबन 11 सीटों पर सतनामी समाज निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में उनका भाजपा में जाना भाजपा के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है. 2013 में गुरु बालदास ने सतनाम समाज के प्रभाव वाली सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिसके चलते इन 11 में से 9 सीटों पर कांग्रेस के कई दिग्गजों की हार हुई और छत्तीसगढ़ में भाजपा एक बार और सरकार बनाने में कामयाब रही. 2018 में गुरु बालदास कांग्रेस में चले गए. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस में वह राज्यसभा टिकट और बेटे गुरु खुशवंत सिंह के लिए पार्टी में पद चाहते थे. दोनों ही नहीं हो पाए तो अब उन्होंने भाजपा का रुख किया है.
राजनीति सेवा का माध्यम है और भारतीय जनता पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है, जो अपने दल का उद्देश्य राष्ट्रहित सर्वोपरि रखती है. इसलिए इसमें सभी प्रकार के लोग शामिल होते हैं. धर्मगुरु सभी के पूजनीय होते हैं. उनमें सबकी श्रद्धा होती है. वो हमारा नेतृत्व करने वाले होते हैं. निश्चित तौर पर किसी दल को उनका आशीर्वाद मिले या वो किसी दल में जाएं तो उस दल को निश्चित तौर पर बहुत लाभ मिलता है. -अमित चिमनानी, प्रदेश प्रमुख, भाजपा मीडिया विभाग
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से जुड़ने वाले धर्मगुरु:
गुरु रुद्र कुमार:सतनामी समाज के गुरु माने जाते हैं. वर्तमान सरकार में हैं मंत्री. 2018 विधानसभा चुनाव के समय बहुत से सतनामी समाज के नेताओं को लाने में अहम भूमिका रही.
मिनी माता और विजय गुरु:गुरु रुद्र कुमार के पिता विजय गुरु का सतनामी समाज में एक अलग स्थान रहा है. वह अविभाजित मध्य प्रदेश में दिग्विजय सरकार के समय विधायक रहे. वहीं विजय गुरु की मां मिनी माता का भी राजनीति में बड़ा हस्तक्षेप रहा है. वह सांसद थीं. समाज के लोग उन्हें बड़ा आदर और सम्मान देते थे.
महंत रामसुंदर दास: जेतुसाव मठ के प्रमुख महंत रामसुंदर दास के पास 2003 में भाजपा और कांग्रेस दोनों में जाने का विकल्प था. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट देकर बाजी मारी तो वहीं भाजपा से उनकी उपयोगिता समझने में बड़ी चूक हो गई.
निश्चित तौर पर कांग्रेस पार्टी की विचारधारा सभी का सम्मान, सभी धर्म और सभी गुरुओं का आदर करती है. किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है. इसलिए इन गुरुओं का रुझान कांग्रेस पार्टी की ओर होता है. उनका काम प्रेम देना है और कांग्रेस पार्टी तो मोहब्बत बंटती है. निश्चित तौर पर जो गुरु महाराज समभाव रखते हैं, कांग्रेस पार्टी में आएंगे. -धनंजय सिंह ठाकुर, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस
समाज ही नहीं राजनीति को भी प्रभावित करते हैं धर्म गुरु:बात चाहे देश की हो या छत्तीसगढ़ की, धर्मगुरु समाज के साथ साथ राजनीति को भी प्रभावित करते हैं. उनकी कही बातों और उनके निर्देशों का पालन समाज करता है. समाज के साथ ही राजनीति की दिशा भी कई बार धर्मगुरु ही तय करते हैं. यही वजह है कि जब गुरु बालदास कांग्रेस से निकलकर भाजपा से जुड़े तो सियासी गलियारे में हलचल बढ़ गई. सीधे तौर पर दखल देने के अलावा कई बार धर्मगुरु परोक्ष रूप से भी राजनेताओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं. इसके ताजा उदाहरण मंत्री रविंद्र चौबे और भाजपा के डाॅ. रमन सिंह हैं. रविंद्र चौबे जहां शंकराचार्य स्वरूपानंद से प्रभावित हैं तो वहीं रमन सिंह आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर से.
अजीत जोगी गुरु बालदास की उपयोगिता को समझते थे. जोगी और बालदास में अच्छा तालमेल था. पुराने इतिहास पर नजर डालें तो गुरु बाल दास का चुनाव में काफी प्रभाव देखने को मिला है. उनकी उपस्थिति किसी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है. यानी हरता हुआ कैंडिडेट जीत सकता है और जीता हुआ कैंडिडेट हर सकता है. यही वजह है कि भाजपा बालदास को पार्टी में प्रवेश को एक बड़ी सफलता के रूप में देख रही है. -अनिरुद्ध दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
एक बात तो तय है कि धर्मगुरुओं के प्रभाव का इस्तेमाल अब राजनीति में होने लगा है. अपने समाज और अपने लोगों की बेहतरी के लिए धर्मगुरु या समाजिक नेता राजनीति से जुड़ते हैं. समाज को फायदा हो या न हो, राजनीतिक दल जरूर फायदे में रहते हैं. यही कारण है कि धर्मगुरुओं को अपने पाले में करने के लिए चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, जी जान से लगे रहते हैं.