रायपुर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को अब चंद महीने ही बचे हैं. चुनावी काम तेजी से पूरे किए जा रहे हैं. इलेक्शन कमीशन ने भी प्रदेश का दौरा कर चुनावों को लेकर जरूरी निर्देश दे दिए हैं. भाजपा और बसपा ने छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी पहली सूची जारी कर दी है. कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि चुनाव से कई दिन पहले उम्मीदवारों के नाम की घोषणा से उन्हें लाभ मिलता है या उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता है ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए ETV भारत ने इसका विश्लेषण किया.
समय से पहले प्रत्याशी घोषणा का फायदा और नुकसान: राजनीति के जानकारों का मानना है कि समय से काफी पहले उम्मीदवारों की घोषणा का फायदा और नुकसान दोनों होता है. इसका फायदा बताते हुए वरिष्ट पत्रकार उचित शर्मा बताते हैं कि उम्मीदवारों की घोषणा और आचार संहिता लगने के बीच के जो भी खर्च हैं वह टेक्निकल रूप से उम्मीदवारों के खर्चे में नहीं जोड़े जाते हैं जिससे प्रत्याशी अपने पक्ष में जितना भी प्रचार प्रसार करता है वह उन चुनावी खर्चों से बाहर हो जाता है. जितनी लिमिट निर्वाचन आयोग करता है. नुकसान की बात करें तो इससे उम्मीदवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. इस दौरान कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों की उम्मीदें प्रत्याशी से बढ़ जाती है. उम्मीदवार के कार्यालय के आसपास उत्सव जैसा माहौल होता है. आने जाने वालों की संख्या बढ़ जाती है. उनकी आवभगत का खर्चा बढ़ जाता है. कार्यकर्ताओं के पेट्रोल डीजल सहित अन्य चीजों का खर्चा भी प्रत्याशी को उठाना पड़ता है.
पहले नाम की घोषणा से उम्मीदवारों पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. आम लोगों की उम्मीदें भी उम्मीदवारों से ज्यादा होती है तीज त्योहार सहित अन्य कार्यक्रमों के लिए उनके पास लोग सहयोग मांगने जाते हैं और यदि ऐसे में उम्मीदवार ने सहयोग नहीं किया तो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से उनकी नाराजगी का सामना उम्मीदवारों को करना पड़ सकता है. उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
2018 में धरमलाल कौशिक ने किया सबसे ज्यादा खर्च: साल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल प्रत्याशियों के खर्च की राशि अभी तय नहीं की गई है लेकिन छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने कुल 17.27 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि कांग्रेस ने साल 2018 के चुनावों में सिर्फ 1.35 करोड़ रुपये खर्च किये थे. प्रत्याशियों की बात करें तो भाजपा से बिल्हा विधायक और पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सबसे ज्यादा पैसा बहाया था. धरमलाल कौशिक ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए कुल 2407005 रुपये खर्च किये. धरमलाल कौशिक 2018 के भाजपा उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले नेता थे. भाजपा से सबसे कम खर्च कुरुद से वर्तमान विधायक और प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने किया. उन्होंने कुल 840058 रुपये खर्च किये थे.
कांग्रेस से उत्तरी जांगड़े सबसे खर्चीली विधायक:बात करें कांग्रेस की तो 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सबसे अधिक खर्च सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े ने किया था. उन्होंने चुनाव में 2349733 रुपये खर्च किये थे.कांग्रेस पार्टी से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार पंडरिया से वर्तमान विधायक ममता चंद्राकर रही. उन्होंने कुल 982346 रुपये खर्च किया.
अजीत जोगी ने किया कम खर्च: जेसीसीजे में सबसे ज्यादा खर्च बलौदाबाजार विधानसभा से चुने गए विधायक प्रमोद कुमार शर्मा ने किया था. प्रमोद कुमार शर्मा ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए 1467367 रुपये खर्च किये थे. वहीं जेसीसीजे से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार मरवाही विधानसभा सीट पर दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने किया. उन्होंने 2018 चुनाव में 413906 खर्च किया था.