रायपुर: रायपुर के बारे में अगर किसी को कुछ जानना होता है तो वो गूगल का इस्तेमाल करता है. लेकिन अजय वर्मा की लिखी किताब हमर रायपुर को अगर आप पढ़ लें तो आपको गूगल की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. अजय रायपुर नगर निगम में शासकीय सेवा में कार्यरत (Municipal Corporation employee Ajay Verma wrote Humar Raipur Book) हैं. उनकी यह पहली किताब प्रकाशित हुई है.
हमर रायपुर किताब के लेखक से बातचीत इस किताब में शहर के चौक चौराहों से लेकर गली-मोहल्लों के किस्से, देव धाम से लेकर रायपुर की छात्र राजनीति के किस्से शामिल हैं. इन दिनों इस किताब को सभी वर्ग के पाठक बेहद पसंद कर रहे हैं. किताब को पढ़कर आज की नई पीढ़ी रायपुर के इतिहास से परिचित हो रही है. बड़े बुजुर्ग भी इस किताब को पढ़कर अपने बीते दिनों को याद कर रहे हैं. ईटीवी भारत ने हमर रायपुर के लेखक अजय वर्मा से खास बातचीत की.
सवाल: आप शासकीय सेवा में कार्यरत हैं. आप की पहली किताब हमर रायपुर प्रकाशित हुई है. आपको लिखने की प्रेरणा कैसे मिली?
जवाब: साल 2013 में मैं सोशल मीडिया फेसबुक से जुड़ा. उस समय सोशल मीडिया में मस्ती मजाक ज्यादा चलती थी. जबकि मैं गंभीर लेखन करता था. सोशल मीडिया में लोगों ने मेरी लेखनी को खूब पसंद किया. उसके बाद मैंने अपने लेखन को इतिहास संस्कृति और खान-पान की ओर मोड़ा. लोगों ने इसे बहुत पसंद किया. मैं लगातार लिखना जारी रखा. 5 साल तक सोशल मीडिया पर लगातार लिखने के बाद मैंने उन सभी पोस्ट को किताब का स्वरूप दे दिया.
सवाल: पहले आप पत्रकार थे फिर आप शासकीय सेवा से जुड़े.
जवाब: जी, पहले मैं पत्रकार था. बाद में मैंने नगर निगम में काम करना प्रारंभ किया. लेकिन लिखने का शौक बरकरार था. पत्रकारिता का शौक ही किताब के प्रकाशन की वजह बना. हमर रायपुर किताब बड़ी मेहनत के बाद तैयार हुई है.
सवाल: आपकी किताब को सभी वर्ग के पाठक पसंद कर रहे हैं. आपको कैसा महसूस हो रहा है ?
जवाब: मुझे बेहद गर्व महसूस हो रहा है. रायपुर मेरी जन्मभूमि है. लेखनी पर तो मुझे गर्व है ही लेकिन अपने रायपुर का निवासी होने पर मुझे अधिक गर्व है.
सवाल: इस किताब को लिखने से पहले आपको कितना रिसर्च करना पड़ा?
जवाब: इस किताब के एक-एक विषय को लेकर रिसर्च किया गया है, जिसके लिए बहुत समय लगा है. एक विषय पर सप्ताह भर रिसर्च करता था. सोशल मीडिया में संडे की चकल्लस के नाम से पोस्ट किया करता था. जिसे लोग बड़ी गंभीरता से पढ़ते थे. सोशल मीडिया ने ही मुझे इस किताब को लिखने के लिए प्रेरित किया. साथी मेरे सहकर्मी और सोशल मीडिया के दोस्तों ने भी मुझे किताब निकालने के लिए प्रेरित किया था. जब इस किताब को लिखा जा रहा था, तो मैंने इस बात पर गौर किया कि सभी चीजें फैक्टफुल हो.
सवाल: आपने अपनी किताब का नाम" हमर रायपुर "क्यों रखा?
जवाब: छत्तीसगढ़ी में हमर शब्द में अपनापन अधिक झलकता है. मोर शब्द में ज्यादा घमंड वाला लगता है, जबकि हमर शब्द में अपनापन झलकता है. इसलिए अपनी किताब का नाम मैंने हमर रायपुर लिखा है.
सवाल: अपनी किताब में आपने बहुत सी जानकारियां लिखी हैं, लेकिन आपका सबसे पंसदीदा किस्सा कौन सा है?
जवाब: मेरे दिल के करीब रायपुर की छात्र राजनीति है. छात्र राजनीति को जानने के लिए मुझे ब्राम्हणपारा में जाना पड़ा. इस किताब में ब्राह्मण पारा से जुड़ी बहुत सी कड़ियां है. रायपुर या छतीसगढ़ कहे तो छात्र राजनीति की शुरूआत ब्राह्मण पारा से ही होती थी. किताब लिखने से पहले ब्राह्मण पारा के लोगों से मुलाकात की. एक-एक गलियों को छान मारा. बहुत सारे छात्र नेताओं से मुलाकात की, इस तरह से छात्र राजनीति के किस्से मेरे दिल के करीब हैं.
सवाल: आप मूलत: कहां के रहने वाले हैं? लेखनी में आप कैसे आए ?
जवाब: मैं मूलतः छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूं. तत्कालीन संयुक्त रायपुर जिले के मोहरा गांव का निवासी हूं. मेरे पिताजी गांव से रायपुर में पढ़ने के लिए आए थे और पढ़ने के बाद वे यहीं शिक्षक बन गए. मेरा जन्म रायपुर में ही हुआ और यहीं पला-बढ़ा. लिखने के गुण की शुरुआत से ही रहा और मैं पत्रकारिता में आ गया. शुरुआत में एक सर्वेयर के रूप में मैंने अखबार ज्वािन किया था. धीरे-धीरे सरकुलेशन में काम किया उसके बाद पत्रकार के रूप में अलग-अलग अखबारों पर काम किया. उसके बाद मैंने नगर निगम ज्वाइन किया.
सवाल: क्या आप पत्रकारिता को मिस करते हैं? जब आप पत्रकार थे तो आपकी कौन सी बीट हुआ करती थी?
जवाब: पत्रकारिता के दौरान मैं क्राइम रिपोर्टर करता था. इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट भी मैं तैयार करता था. आज भी मैं पत्रकारिता को मिस करता हूं. अगर मुझे मौका मिला तो मैं फिर से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करुंगा
सवाल: इस किताब की सफलता और जिस तरह से लोग इसे पसंद करते हैं.. इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब: मैं बहुत खुश हूं और लोगों का इतना प्यार मिल रहा है मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. एक व्यक्ति जो नीदरलैंड में रहते हैं. उन्होंने अपनी मां को जन्मदिन के उपलक्ष में मेरी किताब भेंट की थी. जब उन्होंने मेरी किताब पढ़ने के बाद मुझे फोन किया तो ऐसे ही बहुत से अनजान लोग हैं जो मुझे फोन करते हैं और खुश होकर मुझे धन्यवाद देते है कि आपकी किताब ने पुराने दिनों की याद दिला दी. लोगों का इस तरह का प्यार ही इस किताब की सफलता है.
सवाल:आने वाले दिनों में आप कौन सी किताब लिखने वाले हैं?
जवाब: मैं किताब लिखना जारी रखूंगा और आने वाले दिनों में रायपुर के ऐसे बड़े व्यक्ति, जो अपने जीवन में संघर्ष करते हुए आगे बढ़े. वो एक प्रेरणा स्रोत के रूप में है उनके बारे में मैं लिखूंगा.