रायपुर: नवरात्र में नौ दिनों देवी की आराधना होती है. शारदीय नवरात्र में माता की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है. देशभर में देवी की भक्ति के ये नौ दिन धूमधाम से मनाए जाते हैं. कभी आपने सोचा है कि जिस मिट्टी से मां की मूर्ति बनाई जाती है, उसके पीछे कोई परंपरा या रिवाज होगा. ETV भारत आपको इस परंपरा से रूबरू कराएगा.
उत्तर भारत में शारदीय नवरात्र के दौरान पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा प्रसिद्ध है. रायपुर से सटी माना नगर पंचायत में खासकर कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडालों जैसी भव्यता देखने को मिलती है. यहां के मूर्तिकार वेश्यालय के आंगन से मिट्टी लाकर मूर्ति का निर्माण करते हैं. वर्षों पुरानी ये परंपरा यहां ज्यों की त्यों निभाई जा रही है.
- प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक पुरोहित साल में एक बार वेश्यालय जाते थे और उनके आंगन की मिट्टी मांगते थे.
- धीरे-धीरे पुरोहितों द्वारा मिट्टी मांगे जाने की परंपरा खत्म हो चुकी है लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान मां की मूर्तियां बनाने वाले कारीगर आज भी ये परंपरा किसी तरह निभाते हैं.
- दुर्गा प्रतिमा के बारे में माना जाता है कि जब तक उनकी मूर्ति में वेश्यालय की मिट्टी न मिला ली जाए वो अधूरी रहेगी.
- ये मिट्टी भी साधारण तरीके से नहीं मिलती. जमींदारी के समय से पुजारी, कोलकाता के चर्चित कुमारटोली के मूर्तिकार वेश्यालयों के आंगन पर एक भिखारी की तरह वेश्याओं से मिट्टी मांगते थे, लेकिन मिट्टी देने वाली वेश्याएं चाहें उनका मजाक उड़ाएं या मना कर दें, ये उन पर निर्भर था, लेकिन उन्हें वैसे ही मांगते रहना पड़ता था.
क्या कहते हैं मूर्तिकार
मूर्तिकारों की मानें तो, अब ऐसा नहीं होता है. दुनिया में किसी भी मूर्तिकार को ये मिट्टी कोलकाता से ही लानी पड़ती है. फर्क सिर्फ इतना है कि मां को सजाने अन्य सामानों के साथ दुकानों में ही वेश्यालय की मिट्टी मिल जाती है.