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SPECIAL: यहां की मिट्टी के बिन अधूरी होती हैं मां दुर्गा की प्रतिमाएं

नवरात्र में नौ दिनों देवी की आराधना बड़े ही धूम-धाम से की जाती है. इसी कड़ी में रायपुर से सटी माना नगर पंचायत में मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का एक खास ही महत्व है. यहां के मूर्तिकार वेश्यालय के आंगन से मिट्टी लाकर मूर्ति का निर्माण करते हैं.

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Published : Oct 5, 2019, 11:50 PM IST

Updated : Oct 6, 2019, 12:10 AM IST

मां दुर्गा की प्रतिमा

रायपुर: नवरात्र में नौ दिनों देवी की आराधना होती है. शारदीय नवरात्र में माता की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है. देशभर में देवी की भक्ति के ये नौ दिन धूमधाम से मनाए जाते हैं. कभी आपने सोचा है कि जिस मिट्टी से मां की मूर्ति बनाई जाती है, उसके पीछे कोई परंपरा या रिवाज होगा. ETV भारत आपको इस परंपरा से रूबरू कराएगा.

यहां की मिट्टी के बिन अधूरी होती हैं मां दुर्गा की प्रतिमाएं

उत्तर भारत में शारदीय नवरात्र के दौरान पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा प्रसिद्ध है. रायपुर से सटी माना नगर पंचायत में खासकर कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडालों जैसी भव्यता देखने को मिलती है. यहां के मूर्तिकार वेश्यालय के आंगन से मिट्टी लाकर मूर्ति का निर्माण करते हैं. वर्षों पुरानी ये परंपरा यहां ज्यों की त्यों निभाई जा रही है.

  • प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक पुरोहित साल में एक बार वेश्यालय जाते थे और उनके आंगन की मिट्टी मांगते थे.
  • धीरे-धीरे पुरोहितों द्वारा मिट्टी मांगे जाने की परंपरा खत्म हो चुकी है लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान मां की मूर्तियां बनाने वाले कारीगर आज भी ये परंपरा किसी तरह निभाते हैं.
  • दुर्गा प्रतिमा के बारे में माना जाता है कि जब तक उनकी मूर्ति में वेश्यालय की मिट्टी न मिला ली जाए वो अधूरी रहेगी.
  • ये मिट्टी भी साधारण तरीके से नहीं मिलती. जमींदारी के समय से पुजारी, कोलकाता के चर्चित कुमारटोली के मूर्तिकार वेश्यालयों के आंगन पर एक भिखारी की तरह वेश्याओं से मिट्टी मांगते थे, लेकिन मिट्टी देने वाली वेश्याएं चाहें उनका मजाक उड़ाएं या मना कर दें, ये उन पर निर्भर था, लेकिन उन्हें वैसे ही मांगते रहना पड़ता था.

क्या कहते हैं मूर्तिकार
मूर्तिकारों की मानें तो, अब ऐसा नहीं होता है. दुनिया में किसी भी मूर्तिकार को ये मिट्टी कोलकाता से ही लानी पड़ती है. फर्क सिर्फ इतना है कि मां को सजाने अन्य सामानों के साथ दुकानों में ही वेश्यालय की मिट्टी मिल जाती है.

महिला मूर्तिकार अरुण कहती हैं कि अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा. 'मनिहारी' (ऐसा दुकान जहां, मुकुट, नथ, साड़ी सहित मां के 10 हाथों में अस्त्र) मिलता है, वहीं से मिट्टी मिल जाती है.

मूर्ति निर्माण के लिए 4 चीजें बेहद जरूरी
बांग्ला संस्कृति में मां की प्रतिमा का निर्माण करने के लिए 4 चीजें बेहद जरूरी मानी जाती हैं. पहली- गंगा घाट की मिट्टी, दूसरी- गो मूत्र, तीसरी- गोबर और चौथी- वेश्या के आंगन की मिट्टी. लोकमान्यता के अनुसार इस प्रथा का चलन इसलिए शुरू किया गया, क्योंकि वेश्यालाय के आंगन की मिट्टी सबसे शुद्ध मानी गई है.

इस परंपरा के पीछे 2 कारण
इस परंपरा के पीछे दो कारण बताए जाते हैं. एक मान्यता है कि मां दुर्गा ने जब महिषासुर का वध करने के लिए अवतार लिया तो हर वर्ग की स्त्री को अपनी शक्ति का रूप माना. ऐसे में साल में एक बार समाज का सम्मानित पुरुष यानी पुरोहित, समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी वेश्यालय के दरवाजे पर जाकर भीख मांगता है.

दूसरी मान्यता इससे अलग है. इसमें माना जाता है कि आदमी जब किसी वेश्यालय जाता है तो अपना सारा रुतबा, इज्जत, मान-सम्मान, अच्छाई, अच्छे कर्म, पुण्य का नकाब चौखट पर उतारकर जाता है. कहा ये भी जाता है कि चौखट पर छोड़ें पुरुषों के उजले चरित्र को वह मिट्टी सोख लेती है. यहीं कारण है कि इस चौखट की मिट्टी को सबसे पवित्र मानी जाती है.
परंपरा को लेकर कई किस्से सुनने को मिलते हैं लेकिन इसकी सबसे खूबसूरत बात है स्त्री का सम्मान, जो ये रस्म करना सिखाती है.

Last Updated : Oct 6, 2019, 12:10 AM IST

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