रायपुर: कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण एजुकेशन सेक्टर भी प्रभावित हो रहा है. स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ बंद हैं, जिसके चलते बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी प्रभावित हो रही है. इस दौरान 'स्पेशल चाइल्ड' के लिए संचालित स्कूल भी बंद हैं और पढ़ाई के साथ-साथ उनकी एक्टिविटी भी बाधित हो रही है.
कोरोना संक्रमण से पहले इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी के बच्चे स्पेशल स्कूल में पढ़ाई करते थे, लेकिन कोरोना काल के दौरान अब यह एक्टिविटीज प्रभावित हो गई है. ETV भारत ने शहर के इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटीज स्कूलों के संचालकों से बातचीत की है.
स्पेशल चाइल्ड स्कूल भी बंद कोपल वाणी श्रवण बाधित आवासीय विद्यालय की प्राचार्य पदमा शर्मा ने बताया कि उनके स्कूल में हियरिंग चैलेंज बच्चे पढ़ाई करते हैं, वहीं स्कूल बंद होने के चलते ऑनलाइन क्लासेज़ शुरू की गई हैं, लेकिन अब बहुत सारे बच्चों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं होने के कारण वे एजुकेशन से वंचित हो रहे हैं. वहीं छोटे बच्चों का प्रूफ भी मेंटेन नहीं हो पा रहा है. छोटे बच्चे कक्षा में ही प्रॉपर नहीं बैठते हैं, उन्हें वीडियो कॉल के माध्यम से पढ़ाई के लिए जोड़ा जा रहा है, तो वे आधे घंटे भी मुश्किल से नहीं बैठ पाते हैं. कई बार तो बच्चे मोबाइल छोड़कर भी चले जाते हैं. इस तरह से पढ़ाई की समस्याएं सामने आ रही हैं.
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इन बच्चों का टीचर लर्निंग मटेरियल रहता है. एक क्लास में ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल किया जाता है, ओवरऑल बॉडी लैंग्वेज के जरिए बच्चों को पढ़ाई कराई जाती है. तब जाकर बच्चों को कंटेंट समझ में आता है, लेकिन ऑनलाइन माध्यम से वे 100 फीसदी देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बच्चे 25 से 30 प्रतिशत ही समझ पा रहे हैं.
थेरेपी हुई प्रभावित
आकांक्षा स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. सिमी श्रीवास्तव ने बताया कि कोरोना संक्रमण के दौरान सभी परेशानियों से गुजर रहे हैं, लेकिन खासतौर पर दिव्यांगता से ग्रसित बच्चों को परेशानी ज्यादा हो रही है. उनको फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी दी जाती थी, वह प्रभावित हुई है. अब बच्चे घर में हैं, ऐसे में परिजनों को भी शुरुआती दिनों में बहुत तकलीफ हुई.
परिजनों को दिया गया प्रशिक्षण
इस दौरान बच्चों की गतिविधियां प्रभावित ना हो और बच्चों का सीखना लगातार जारी रखने के लिए उनके परिजनों को वीडियो कॉन्फ्रेंस और टेलिफोनिक माध्यम से ट्रेनिंग दी गई. शुरुआती दिनों में बच्चे और परिजन दोनों ने बेहद अच्छे से सीखा, लेकिन स्कूल नहीं खुलने के कारण बच्चे और परिजन दोनों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बच्चों की थेरेपी प्रभावित हो रही है.
डॉ. सिमी श्रीवास्तव ने बताया कि अभी ऑनलाइन माध्यम से बच्चों को सिखाया जा रहा है और उनके परिजन भी सीखकर बच्चों को सिखा रहे हैं. लेकिन अगर जल्द ही कुछ नया विकल्प नहीं निकाला गया, तो बच्चे बहुत पीछे चले जाएंगे और उन्हें अच्छी परिस्थिति में लाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.
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डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि फिलहाल पैरंट्स इन बच्चों को सिखा रहे हैं और जो भी ऑनलाइन क्लासेज होती हैं, उनसे बच्चे कभी सीखते हैं, कभी नहीं सीखते हैं. ऐसे में घर में बच्चों के लिए अलग से कमरा निर्धारित करने के लिए कहा जाता है. ताकि बच्चों को ऐसा न लगे कि उनका घर ही स्कूल बन गया है. बच्चों को एक अलग कमरे में पढ़ाने से उसे यह महसूस होना चाहिए कि वह स्कूल में है.
प्रशिक्षण का अलग मॉडल तैयार करने की जरूरत
कोरोना संक्रमण के दौरान एक अच्छी चीज हुई है. जो माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते थे, वह अपने बच्चों को अच्छे से समय दे पा रहे हैं. पूरा परिवार भी बच्चों को समझकर उनको अच्छे से सहयोग प्रदान कर रहा है, लेकिन कब तक ऐसा चलता रहेगा. शहरी क्षेत्रों में तो सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चीजें कैसे दी जाएंगी और बच्चों की थेरेपी कैसे होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है. परिजनों के लिए भी प्रशिक्षण का एक अलग मॉडल तैयार करना पड़ेगा, जिसके लिए सरकार की सहायता की आवश्यकता होगी.
बच्चे झेल रहे परेशानी
कोपल वाणी चाइल्ड वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन की डायरेक्टर सीमा छाबड़ा बताती है कि कोरोना संक्रमण के दौरान स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. स्पेशल चाइल्ड नए टीचर से नहीं पढ़ना चाहते. एक समय के बाद उनकी पढ़ाई नहीं हो पाती है. स्कूल बंद होने के कारण बच्चे बेहद प्रभावित हुए हैं और ऐसे में ऑनलाइन माध्यमों के जरिए बच्चों के परिजनों को एक्टिविटीज भेजी जा रही है. लेकिन ज्यादातर बच्चे लगातार उस क्लास में नहीं बैठ पाते. नॉर्मल बच्चों से ज्यादा इन स्पेशल बच्चों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.