रायपुर: राजधानी रायपुर की रहने वाली प्रेमलता पाटिल समाज के लिए मिसाल है. प्रेमलता ने लकड़ियां बेचकर अपने बेटे आतिश को वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग दी और आज आतिश छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं, जिनका सलेक्शन मर्चेंट नेवी में हुआ है. आतिश के इस संघर्ष में उसके कोच ने भी उसका पूरा साथ दिया.
लकड़ियां बेच कर मां ने बनाया वेटलिफ्टर प्रेमलता पाटिल बताती हैं कि आतिश के पिता बचपन में ही गुजर गए थे. उनके पति के गुजरने के बाद उनके लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया था. प्रेमलता न तो ज्यादा पढ़ी-लिखी है और न ही कभी काम करने के लिए घर से बाहर निकली थी. पति के गुजरने के बाद एकाएक सारी जिम्मेदारी प्रेमलता पर आ गई, लेकिन प्रेमलता ने हार नहीं मानी.
लकड़ी बेचकर किया बच्चों का पालन पोषण
प्रेमलता अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि पति की मौत के बाद वो अपने बच्चों के साथ अपने मायके चली गई. यहां वो एक छोटे से कमरे में रहती थी और लकड़ियां बेचती थी. कमरा इतना छोटा था कि यदि वहां चार लोग एक साथ खड़े होने जाए तो पैर रखने को भी जगह न मिले. प्रेमलता ने 14 साल तक लकड़ी बेचकर अपने बच्चों का पालन-पोषण किया. समय के साथ आतिश अपने मामा के साथ जिम जाने लगा और वेटलिफ्टिंग सिखा.
कोच ने की मदद
आतिश पाटिल वेटलिफ्टिंग में छह बार नेशनल खेल चुके हैं. उन्होंने 3 सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है अब उनका सिलेक्शन मर्चेंट नेवी में हो गया है. आतिश बताते हैं कि उनके कोच ने उनकी बहुत मदद की है. आतिश बताते हैं कि मेरे कोच ने मेरी डाइट, मेरे आने जाने के खर्चे का काफी ख्याल रखा. अगर वो नहीं होते तो शायद ही वो आज यहां पहुंच पाता. आतिश की नौकरी लगने से उनकी मां प्रेमलता बेहद खुश हैं वे कहती हैं कि अब मुझे लकड़ियां नहीं बेचनी पड़ेगी और मैं अपनी दोनों बेटियों की शादी भी कर सकूंगी.