रायपुर: राजधानी की सड़कों पर धूल और धुआं उड़ाते वाहन, चिमनियों से निकलता धुआं, गाड़ियों का शोर, पानी में इंडस्ट्रीज का कचरा ये नजारा आम है. यहां प्रदूषण ने न केवल इंसानों की जान ली है, उन्हें बीमार किया है, बल्कि जीव-जंतुओं चाहे वे नभ के हों, जल के हों या फिर थल के सभी के जीवन को संकट में डाला है. यहां प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. शहर के आसपास इंडस्ट्रियल एरिया होने के कारण पॉल्यूशन काफी ज्यादा होता है, जो लोगों को परेशान और बीमार दोनों कर रहा है. वायु, जल, ध्वनि, थल प्रदूषण ने इंसानों और जीव-जंतुओं का जीना मुहाल कर दिया है और उन्हें असमय ही काल का ग्रास बना रहा है. इंसानों को तरह-तरह की बीमारियां जकड़ रही हैं, वो बेवक्त ही बूढ़ा हो रहा है, चिड़चिड़ापन और थकान उसके जीवन का आज हिस्सा हैं.
कोरोना ने मानव जीवन को डाला संकट में, लेकिन पर्यावरण के लिए साबित हुआ वरदान
वैसे तो कोरोना वायरस पूरी मानव जाति के लिए अभिशाप है, लेकिन दूसरी तरह इसकी वजह से लगे लॉकडाउन ने पर्यावरण और प्रकृति को नया जीवन भी दिया. नदियां साफ हो गईं, आसमान साफ हो गया, धरती फिर से सांस लेने लगी, जीव-जंतु बेफिक्र होकर बाहर निकलने लगे, आसमान में पंछी चहचहाने लगे. गगन साफ दिखाई देने लगा. लॉकडाउन में वातावरण को शुद्ध होने का मौका मिला, क्योंकि उस वक्त सड़कों, आकाश और पटरियों पर यातायात बिल्कुल थम गया था, वहीं इंडस्ट्रीज भी बंद थीं, लेकिन देश के अनलॉक होने के साथ से ही थमे हुए लोग दोगुनी रफ्तार से चलने लगे और प्रदूषण एक बार फिर बढ़ गया है. फिलहाल गाड़ियां फर्राटे से सड़क पर धुआं उड़ाती हुई दौड़ रही हैं, ट्रेनों की संख्या बढ़ा दी गई है. अर्थव्यवस्था को कोरोना ने काफी नुकसान पहुंचाया, ऐसे में एक बार फिर मजदूर और बाकी लोग अपने-अपने काम पर लौट गए हैं. वहीं हड़ताल, विरोध-प्रदर्शनों ने एक बार फिर प्रदूषण को बढ़ने का मौका दे दिया है.
दिवाली में हुए थे खतरनाक हालात
दिवाली में प्रदूषण का स्तर 200 माइक्रोग्राम से 400 माइक्रोग्राम/मीटर पहुंच गया, जबकि केंद्र सरकार ने सांस लेने लायक हवा का पैमाना 60 माइक्रोग्राम/मीटर ही बताया है. लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण 80 माइक्रोग्राम/मीटर के आसपास थी, वहीं अनलॉक में 200 माइक्रोग्राम/मीटर पहुंच गई. पटाखों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण खूब बढ़ा.
रायपुर और भिलाई में कार्बन का स्तर सबसे ज्यादा
देशभर में सबसे ज्यादा कार्बन की मात्रा रायपुर और भिलाई के वायुमंडल में है. छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा लोहे और कार्बन की फैक्ट्री रायपुर और भिलाई में स्थित है. इस वजह से जो प्रदूषण उससे निकल रहा है, वह इंसानों के लिए खतरनाक है. ये इंसानों के गले और लंग्स को हार्म करती है. केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर डॉ शम्स परवेज ने बताया कि प्रदेश में दिसंबर और जनवरी में हवा में प्रदूषण का स्तर और बढ़ने की आशंका है, क्योंकि इस समय शादियां, क्रिसमस और न्यू ईयर होता है और इस दौरान काफी पटाखे फोड़े जाते हैं. इस समय वायु और ध्वनि प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है. पटाखों के हार्मफुल केमिकल्स हवा में आसानी से घुल जाते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर दिसंबर-जनवरी में काफी बढ़ जाता है.
पॉल्यूशन से होने वाली बीमारियां
पॉल्यूशन का शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ये कई अंगों को जानलेवा नुकसान पहुंचाता है.
पढ़ें:SPECIAL: रियल एस्टेट मार्केट में रॉ मटेरियल के बेकाबू हुए दाम, मकान बनाना हुआ और महंगा
बीमारियों की वजह प्रदूषण
- अस्थमा
- अलग-अलग तरह के कैंसर
- ब्रीदिंग प्रॉब्लम, सांस संबंधी बीमारियां
- थकान, सिरदर्द
- एलर्जी
- फेफड़ों की बीमारियां, फेफड़ों का कैंसर
- आंख, कान, नाक की बीमारियां
- डायरिया, मल या थूक में खून आना
- बच्चों का दिव्यांग पैदा होना भी प्रदूषण के कारण होता है.
- स्किन डिजीज
- स्किन कैंसर
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 70 लाख लोगों की मृत्यु प्रदूषित हवा के कारण होती है. सर्दियों का मौसम चल रहा है, ऐसे में आने वाले दिनों में हवा में नमी कम हो जाएगी, खेतों में पराली और भूसा जलाया जाएगा, जिससे प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा.
चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर रोशन सिंह राठौर ने बताया कि जो प्रदूषण के कारण खतरनाक पार्टिकल्स हवा और जल में होते हैं, जो शरीर के अलग-अलग अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं.