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Published : Feb 13, 2021, 5:26 PM IST

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SPECIAL: क्या है बोधघाट परियोजना, क्यों फिर शुरू हुई रार ?

छत्तीसगढ़ के बस्तर में जीवनदायिनी इंद्रावती नदी पर सालों से प्रस्तावित बोधघाट परियोजना को लेकर अब एक बार फिर से बयानबाजी शुरू हो गई है. राज्यपाल ने आदिवासियों को आश्वासन दिया है कि उनके साथ नाइंसाफी नहीं होगी. वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी राज्यपाल के इस बयान का सर्मथन किया है. उन्होंने भी माना है कि आदिवासियों की चिंता जायज है. लेकिन जो विरोध कर रहे हैं, उनके पास विकल्प हो तो बताएं.

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बोधघाट परियोजना पर सरकार विपक्ष में रार

रायपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में जीवनदायिनी इंद्रावती नदी पर सालों से प्रस्तावित बोधघाट परियोजना के खिलाफ एक बार फिर आदिवासी मुखर होने लगे हैं. सियासी बयानबाजियों ने फिर जोर पकड़ लिया है. दंतेवाड़ा के 56 गांवों के आदिवासी और ग्रामीण इसके खिलाफ एकजुट हो गए हैं. आदिवासियों का कहना है कि हम प्राण दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे. राज्यपाल ने भी आदिवासियों को आश्वासन दिया है कि उनके साथ नाइंसाफी नहीं होगी. सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि जो विरोध कर रहे हैं, वो विकल्प बताएं.

बोधघाट परियोजना पर सरकार विपक्ष में रार, अधर में लटकी योजना

राज्यपाल ने आदिवासियों को दिया आश्वासन

राज्यपाल ने साफ कर दिया है कि अभी बोधघाट परियोजना शुरू होने में काफी समय है क्योंकि इसकी प्रक्रिया काफी लंबी है. अनुसुइया उइके ने 1979 के समय बोधघाट परियोजना पर किए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि तब इसे थर्मल पावर स्टेशन के तौर पर शुरू करने की योजना थी, जिसे बंद कर दिया गया था. अब सरकार ने इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखते हुए सिंचाई परियोजना के रूप में शुरू करने का फैसला किया है. इससे पहले की विस्थापन की योजना को देखते हुए आदिवासियों का डर स्वाभाविक है.

'ग्राम सभा की इजाजत के बाद ही शुरू होगी बोधघाट परियोजना, नहीं होगी नाइंसाफी'

वैकल्पिक व्यवस्था बताएं: सीएम

वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी राज्यपाल के इस बयान का सर्मथन किया है. उन्होंने भी माना है कि आदिवासियों की चिंता जायज है. सीएम ने कहा कि जो विरोध कर रहे हैं, उनके पास विकल्प हो तो बताएं. सीएम ने ये भी कहा कि विरोध करने वाले आदिवासियों के हितैषी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि इस योजना का विरोध करने वाले लोग नहीं चाहते कि आदिवासी अपने पैरों पर खड़े हों. सीएम ने नक्सली नेताओं से सवाल भी किया है कि क्या आदिवासियों की स्थिति सुधरनी नहीं चाहिए ? उनके खेतों में पानी नहीं पहुंचना चाहिए? इस बहुद्देश्यीय परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार कह रहे हैं कि यह योजना आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए बेहद कारगर साबित होगी.

बोधघाट परियोजना: 'विरोध करने वाले नहीं हैं आदिवासियों के हितैषी'

कवासी लखमा ने दिया था बयान

बीते दिनों एक दिवसीय प्रवास पर किरंदुल पहुंचे कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने भी बोधघाट परियोजना पर अपना बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि 'बोधघाट परियोजना आदिवासियों के हितों को ध्यान में रखकर शुरू की जाएगी'.

'आदिवासियों के हितों में ध्यान रखकर बोधघाट परियोजना होगी शुरू'

विपक्ष ने सरकार पर कसा तंज

इधर, विपक्ष की ओर से इस परियोजना को लेकर लगातार विरोध किया जा रहा है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भूपेश सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि वास्तविक में इस सरकार की बोधघाट परियोजना बनाने की नीयत नहीं है. ये सरकार केवल आंकड़ों का जाल फेंकना जानती है. बस्तर के आदिवासी और नेता इनके झांसे में नहीं आएंगे.

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आदिवासी नेता मनीष कुंजाम ने भी जताई आपत्ति

बस्तर के आदिवासी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मनीष कुंजाम ने भी बोधघाट परियोजना को लेकर आपत्ति जताई है. मनीष कुंजाम ने भूपेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार यदि बोधघाट परियोजना को लागू करने के लिए आमादा है, तो भविष्य में वे बस्तर की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.

इस परियोजना के लिए रायशुमारी की जरूरत: आलोक शुक्ला

सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला कहते हैं कि बोधघाट के पीछे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि 50 साल पुरानी योजना को लाने की बात हो रही है. इसके पीछे न केवल अध्ययन की बल्कि रायशुमारी की भी जरूरत है. बोधघाट परियोजना को जब बंद किया गया, तो उसके तमाम कारण थे. इस प्रोजेक्ट से डुबान एरिया में आदिवासियों के विस्थापन और पर्यावरण को बड़ा नुकसान होने वाला था. अब ये सवाल उठता है कि क्या केवल सिंचाई के लिए बोधघाट परियोजना इतनी जरूरी है ?

बोधघाट परियोजना: 'भले प्राण चले जाएं लेकिन जमीन नहीं देंगे'

कब शुरू हुई थी परियोजना, कितना हुआ काम ?

राज्य की प्रमुख नदियों में से एक इंद्रावती को बस्तर की जीवनदायिनी नदी कहते हैं. यहां 40 साल पहले बोधघाट के नाम से एक परियोजना की शुरुआत की गई. लेकिन 1979 में केंद्र सरकार ने नया वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू कर दिया. इसके साथ ही नए सिरे से अनुमति की जरूरत पड़ी और 1985 में एक बार फिर से केंद्र सरकार से स्वीकृति मिली. बोधघाट परियोजना के साथ ही शुरू हुए आंध्र प्रदेश के पोलावरम परियोजना का काम लगभग खत्म हो चुका है. लेकिन छत्तीसगढ़ में वर्षों बीत जाने के बाद भी इस परियोजना को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. कांग्रेस की सरकार आने के बाद इस परियोजना को नए सिरे से शुरू किया जा रहा है.

बोधघाट परियोजना पर सरकार का दावा

छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि इंद्रावती नदी का 11 टीएमसी जल ही बस्तर के काम आ रहा है, जबकि गोदावरी जल विवाद अभिकरण के अनुसार 300 टीएमसी जल का उपयोग किया जा सकता है. शुरुआती तौर पर राज्य सरकार की ओर से किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि इस परियोजना से दंतेवाड़ा जिले में सिंचाई का रकबा 65.73 फीसदी, सुकमा जिले में सिंचाई का रकबा 60.59 फीसदी और बीजापुर जिले में सिंचाई का रकबा 68.72 फीसदी तक बढ़ेगा.

इस परियोजना से लाभान्वित जिलों के आंकड़ों पर एक नजर:

लाभान्वित जिले रकबा खरीफ रबी गर्मी की फसल योग
दंतेवाड़ा 60.075 66,075 20,000 1,52,150 1,71,075
बीजापुर 45000 45,000 24,430 1,14,430 1,31,075
सुकमा 60000 20000 20,000 1,00,000 64,430

लाभान्वित ग्राम की संख्या:

  • दंतेवाड़ा- 151 गांव
  • बीजापुर- 218 गांव
  • सुकमा- 90 गांव
  • बिजली उत्पादन- 75x4 300 मेगावॉट
  • औद्योगिक उपयोग- 500 मि.घ.मी
  • मछली उत्पादन - 4824 टन वार्षिक

डुबान का संभावित विवरण

  • वनभूमि- 5704.332 हेक्टेयर
  • निजी भूमि- 5010.287 हेक्टेयर
  • सरकारी भूमि- 3068.528 हेक्टेयर
  • कुल- 13783.147 हेक्टेयर
  • डूब के पूर्ण रूप से प्रभावित गांव - 28
  • डूब के आंशिक रूप से प्रभावित गांव- 14
  • विस्थापित किए जाने वाले परिवारों की संख्या - 2488

अब देखना होगा इस परियोजना को लेकर आदिवासियों को आश्वस्त करने के लिए सरकार की ओर से क्या पहल की जाती है और आदिवासी आश्वस्त होते हैं या नहीं.

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