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SPECIAL: छत्तीसगढ़ में योजनाओं के नाम को बदलने का सिलसिला जारी, बीजेपी ने सरकार पर बोला हमला

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर योजनाओं के नाम परिवर्तन करने को लेकर सियासत तेज हो गई. विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है. कारीगरी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार योजना नियम 2012 बनाया गया था. इस योजना का नाम बदलकर अब राजराजेश्वरी करुणा माता हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार योजना नियम 2020 कर दिया गया है. जिसपर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.

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छत्तीसगढ़ में योजनाओं के नाम पर सियासत

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Published : Sep 9, 2020, 7:05 PM IST

रायपुर:प्रदेश में एक बार फिर नाम परिवर्तन को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. इस बार भूपेश सरकार ने ग्राम उद्योग विभाग के एक पुरस्कार योजना का नाम बदल दिया है. जिसे लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार को घेरा है. सत्ता पक्ष इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रहा है.

छत्तीसगढ़ में योजनाओं के नाम पर सियासत

ग्राम उद्योग विभाग की ओर से पहले सर्वश्रेष्ठ दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जाता था. कारीगरी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार योजना नियम 2012 बनाया गया था. इस योजना का नाम बदलकर अब राजराजेश्वरी करुणा माता हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार योजना नियम 2020 कर दिया गया है. इस योजना के तहत हथकरघा कारीगरों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 2 लोगों को सम्मानित किया जाएगा. इसमें एक-एक लाख रुपए नगद, प्रतीक चिन्ह, शॉल और श्रीफल देकर सम्मानित किया जाएगा.

साल 2012 में शुरू की गई थी योजना

राज्य सरकार ने 28 दिसंबर 2012 को प्रदेश के सूती हथकरघा वस्त्र उद्योग को संरक्षण देने, बढ़ावा देने और हथकरघा पर वस्त्र उत्पादन की पारंपरिक कला संस्कृति की अनुपमा को बनाए रखने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार योजना नियम 2012 को बनाया था. हालांकि विभाग इस योजना को नई योजना बता रहा है.

हथकरघा के अपर संचालक एनके चंद्राकर का कहना है कि नई सरकार बनने के बाद इस नई योजना की शुरुआत की गई है. जिसके तहत 2 बुनकरों को सम्मानित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार पहली बार दी जा रही है.

जिसकी सत्ता उसका नाम !

ऐसा नहीं है कि सत्ता परिवर्तन के बाद पहली बार किसी योजना का नाम बदला गया है. चाहे कांग्रेस की सरकार हो या पूर्वर्ती भाजपा की सरकार, सभी ने सत्ता पर काबिज होते ही विभिन्न योजनाओं सामुदायिक भवन सहित अन्य जगहों के नामों में बदलाव किया है. 15 साल पहले बीजेपी की सरकार ने सत्ता में आते ही इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सहित अन्य नेताओं के नाम से संचालित कई योजनाओं के नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के नाम पर किया था.

इतना ही नहीं 1 दिसंबर 2017 को प्रदेश की भाजपा सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी के अवसर पर एक आदेश जारी किया था. जिसमें सभी सरकारी विभागों के लेटर पैड में दीनदयाल उपाध्याय का फोटो लगाना अनिवार्य कर दिया था. लेकिन बाद में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की फोटो को हटा दिया.

वर्तमान की कांग्रेस सरकार ने इन योजनाओं के बदले नाम

  • दीनदयाल उपाध्याय स्वालंबन योजना का नाम बदलकर राजीव गांधी स्वावलंबन योजना.
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय सर्व समाज मांगलिक भवन योजना का नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सर्व समाज मांगलिक भवन योजना.
  • दीनदयाल उपाध्याय एलईडी पथ प्रकाश योजना का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी एलईडी पथ प्रकाश योजना.
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय आजीविका केंद्र योजना का नाम बदलकर राजीव गांधी आजीविका केंद्र योजना.
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय शुद्ध पेयजल योजना का नाम बदलकर इंदिरा प्रियदर्शनी शुद्ध पेयजल योजना.
  • राजमाता विजया राजे कन्या विवाह योजना का नाम बदलकर मिनीमाता कन्या विवाह योजना.
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रम सहायता योजना का नाम बदलकर शहीद वीर नारायण सिंह श्रम सहायता योजना.
  • मुख्यमंत्री तीर्थ योजना का नाम बदलकर तीरथ वरत योजना.

'नाम बदलना पार्टी की घटिया मानसिकता को दर्शाता है'

एक बार फिर नाम परिवर्तन को लेकर राज्य सरकार विपक्ष के निशाने पर है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने का कहना है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विभिन्न पुरस्कार योजना, सभी भवनों और विश्वविद्यालय का नामकरण महापुरुषों के नाम पर किया था. लेकिन नई सरकार के आते ही इन योजनाओं का नाम लगातार बदला जा रहा है, जो इनकी घटिया मानसिकता और सोच को दर्शाता है. उपासने ने कहा कि किसी योजना से महापुरुषों का नाम अलग करने से उनका कद नहीं घट जाएगा और न ही उनके मान-सम्मान में कोई कमी आएगी, बल्कि इससे उस पार्टी की मानसिकता जरूर झलकेगी.

'भूपेश सरकार सिर्फ नाम परिवर्तित कर आत्म संतुष्टि प्राप्त कर रही है'

उपासने ने तंज कसते हुए यह भी कहा कि अगर बीजेपी की मानसिकता इस तरह की होती, तो पूर्व में केंद्र में मोरार जी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी और वर्तमान में मोदी सरकार हैं. अगर ये सभी सरकार नाम परिवर्तन करते, तो आज जिन नामों पर एक परिवार का अधिकार है, वह खत्म हो जाता. उपासने ने कहा कि इस तरह प्रदेश की भूपेश सरकार सिर्फ नाम परिवर्तित कर आत्म संतुष्टि प्राप्त कर रही है. इसके अलावा और कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

'बीजेपी सरकार के दौर से चली आ रही है नाम बदलने की परंपरा'

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि नाम परिवर्तन की परंपरा तो भाजपा सरकार के दौर से चली आ रही है. पूर्व में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम से संचालित योजनाओं का नाम बदल दिया था. भाजपा ने राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, इंदिरा आवास योजना और पंडित जवाहर लाल नेहरू शहरी विकास योजना का नाम बदला था. सुशील आनंद ने कहा कि कांग्रेस नाम बदलने पर भरोसा नहीं करती है.

'लोगों की मांग के मुताबिक बदला गया योजना का नाम'

कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि लोगों की मांग थी कि हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने, खादी ग्राम उद्योग को बढ़ावा देने स्थानीय विभूति के नाम पर पुरस्कार दिया जाए. इसलिए राजराजेश्वरी करुणा माता के नाम पर इस पुरस्कार योजना की शुरुआत की गई. सुशील आनंद ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर राज्य में अनेकों योजनाएं संचालित हैं, जिसमें भूपेश सरकार ने कोई भी छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया है. सुशील आनंद ने कहा कि कांग्रेस सरकार विभूतियों के नामों को लेकर भारतीय जनता पार्टी की तर्ज पर दुर्भावना या दलगत भावना के तहत काम नहीं करती है.

'लड़ाई नाम पर ना होकर काम पर होना चाहिए'

वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर का कहना है कि कायदे से नाम परिवर्तन नहीं होना चाहिए. क्योंकि जिन के नाम पर योजना रखी गई है, उन्हें मालूम ही नहीं है कि उनके नाम को लेकर विवाद हो रहा है. लड़ाई नाम पर ना होकर काम पर होना चाहिए. अनिल पुसदकर का कहना है कि उस योजना में काम बेहतर तरीके से किया जा सकता है. जिससे लोगों का भला हो सके. उन्होंने कहा कि नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है. यह तो वही बात हुई कि आंख के अंधे और नाम नयनसुख.

'जनता को योजना के नाम से नहीं पड़ता फर्क'

पुसदकर ने कहा कि आपके काम की सराहना लोग करते हैं. जनता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि योजना किसके नाम से संचालित हो रही है. उन्हें सिर्फ योजना से मिलने वाले लाभ से ही मतलब होता है. दूसरी पार्टी के नेताओं के नाम पर योजना का नाम बदलने से लोग योजना का लाभ लेना नहीं छोड़ देते हैं. जो लोग राम के नाम पर योजना का लाभ ले रहे थे, वो रहीम के नाम पर भी लेंगे. पुसदकर ने कहा कि इस तरह से योजना के नाम परिवर्तन से राजनीतिक रोटियां भी नहीं सेंकी जा सकती है. यह एक प्रकार से हताशा और निराशा है. प्रतीकात्मक विरोध है और सत्ता का दबदबा दिखाने का जरिया है.

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बहरहाल सरकारें आती हैं, जाती हैं. राजनीति करने के अलावा फर्क इस बात का पड़ता है कि आम जनता को इन योजनाओं का कितना लाभ मिल रहा है. प्रदेश में विकास की दर क्या है? क्षेत्र के आखिरी व्यक्ति तक मदद पहुंच रही है या नहीं? प्रश्न उठता है ऐसे तमाम बिंदुओं पर, लेकिन नाम परिवर्तन को लेकर राजनीति कब तक चलती है. और क्या योजनाओं के नाम परिवर्तन से लोगों तक इनका लाभ भरपूर मिल पाता है. ये देखने वाली बात होगी.

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