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DMF का पावर कलेक्टर को देने पर छत्तीसगढ़ में राजनीति शुरू

छत्तीसगढ़ जैसे खनिज बाहुल्य राज्य में DMF को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में फिर से कलेक्टर को DMF पावर देने के बाद सियासत तेज हो गई है. सत्ता पक्ष का कहना है कि DMF फंड पर राज्यों का अधिकार है, तो विपक्ष का कहना है कि प्रदेश में DMF का दुरुपयोग हो रहा है. सूत्रों के मुताबिक सरकार इसकी काट निकालने की तैयारी कर रही है.

Politics in Chhattisgarh on giving DMF power to collector
DMF पर राजनीति

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Published : Jun 4, 2021, 5:17 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ जैसे खनिज बाहुल्य राज्य में जिला खनिज निधि (District Mineral Fund) यानी DMF को लेकर केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन (Central government new guideline regarding DMF) जारी है. इस आदेश के बाद अब छत्तीसगढ़ में सियासत तेज हो गई है. दरअसल केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में DMF यानी जिला खनिज न्यास समिति में अब जिला कलेक्टरों को ही अध्यक्ष बनाए जाने का प्रावधान शामिल कर दिया है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से DMF के मामले में नियमों में बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने DMF के लिए प्रभारी मंत्रियों को अध्यक्ष बना दिया था. लेकिन अब केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में फिर से कलेक्टर को ही DMF का पावर दे दिया गया है. इसे लेकर प्रदेश में सियासत तेज हो चुकी है.

DMF का पावर कलेक्टर को देने पर छत्तीसगढ़ में राजनीति शुरू

DMF फंड पर केंद्र और राज्य आमने-सामने

खनिज संपदा के मामले में समृद्ध माने जाने वाले छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में DMF फंड काफी महत्वपूर्ण है. छत्तीसगढ़ में DMF को लेकर पहले से चल रही व्यवस्था को कांग्रेस सरकार बनने के बाद बदल दिया गया. कांग्रेस सरकार आने के बाद राज्य सरकार ने नई व्यवस्था बनाई थी. इसके मुताबिक राज्य में जिलों की खनिज संस्थान यानी DMF कमेटी में जिले के प्रभारी मंत्री अध्यक्ष रहेंगे और कलेक्टर को सचिव की जिम्मेदारी दी गई थी. कांग्रेस सरकार ने राज्य के DMF कमेटियों में विधायकों को सदस्य के रूप में शामिल किया था. दरअसल विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने लगातार DMF फंड में गड़बड़ी को लेकर आरोप लगाया था और सरकार में आने के बाद उन्होंने इस व्यवस्था में बदलाव कर दिया. लेकिन अब केंद्र सरकार ने DMF समिति को लेकर नया आदेश जारी कर दिया है. इस आदेश के बाद फिर से बदलाव होने को लेकर राज्य सरकार के अपने अलग सुर हैं.

'DMF की नीति निर्धारण में जनप्रतिनिधि भी रहेंगे तो लोकतंत्र में ज्यादा ताकत होगी'

राज्य सरकार के प्रवक्ता और वरिष्ठ केबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि एग्जिक्यूकेशन का पावर हमेशा से एडमिनिस्ट्रेशन का रहा है. उसको फ्री हेंड देकर अपने नियंत्रण की बातें करके काम किया जाना चाहिए. कलेक्ट्रेट डिस्ट्रिक्ट अथॉरिटी का मुखिया होता है. वर्तमान में कोरोना काल और तमाम निर्णय को लेकर भी देखा गया है कि कलेक्टर को ही डिस्ट्रिक्ट में एडमिनिस्ट्रेशन का अथॉरिटी पावर दिया गया. चौबे ने कहा कि एग्जिक्यूकेशन करने का काम कलेक्टर के ही हाथों होगा लेकिन नीति बनाने के लिए अगर जनप्रतिनिधि उपस्थिति रहेंगे तो लोकतंत्र में इसकी ताकत रहेगी.

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'DMF फंड पर राज्यों का अधिकार'

इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के चेयरमैन शैलेश नितिन त्रिवेदी कहते हैं कि भारतीय संविधान में राज्य संबंधों की अवधारणा के खिलाफ केंद्र इस तरह के नियम ला रही है. उन्होंने कहा कि यह अधिकार राज्यों का है. राज्य बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि DMF राशि का कहां और कैसे उपयोग होना है. केंद्र सरकार दिल्ली में बैठकर DMF के बेतुके कानून बना रही है. छत्तीसगढ में 15 साल भाजपा सरकार ने DMF का दुरुपयोग किया, लूट की. उस दौरान केंद्र सरकार को इसकी याद नहीं आई.

'छत्तीसगढ़ सरकार में DMF की आत्मा मर रही थी'
इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार पर हमला बोला है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह ने कहा कि जब हमारी सरकार थी. किसी मंत्री ने DMF के कामों में हस्तक्षेप नहीं किया. मंत्रियों के हस्तक्षेप से DMF का राजनीतिकरण हो रहा था. बंदरबांट हो रही थी. मंत्री विधायकों को काम दे देते थे. जिससे DMF की आत्मा मर रही थी. अब केंद्र सरकार की ओर से लाई जा रही पॉलिसी से इसमें पारदर्शिता आएगी. वे कहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से DMF को लेकर जारी आदेश के बाद हाय तौबा मचाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि DMF का उद्देश्य यही है कि खनिज के चलते प्रभावित इलाकों की परिवार या गांव, बस्ती का बेहतर तरीके से इंफ्रास्ट्रक्चर हो, रोजगार का सृजन हो लेकिन इस सरकार ने राजनीतिकरण कर दिया था.

DMF की राशि प्रभावित क्षेत्रों में नहीं बल्कि शहरों में हो रही खर्च

DMF के मामले पर छत्तीसगढ़ में शुरू हुई राजनीति पर वरिष्ठ पत्रकार केके शर्मा कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में खनिज से बड़े पैमाने पर राशि आती है और खनिज बाहुल्य राज्य होने के चलते छत्तीसगढ़ में यह राशि काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य है. कोयला, लोहा, बॉक्साइट और लोहा जैसे खनिज छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. DMF की राशि से ही प्रभावित क्षेत्र का विकास होता है. हालांकि इसमें ये बात भी सामने आती रही है कि इस फंड में विधायकों, सांसदों, मंत्री और जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप की बात आती रही है. खनिज प्रभावित इलाकों की बजाए उस राशि का शहरों में और अन्य सौंदर्यीकरण जैसे कार्यों में खर्च किया जा रहा है. अब केंद्र सरकार ने इस पर संज्ञान लिया है. छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि देश के तमाम राज्यों में इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कलेक्टर को DMF का अध्यक्ष बनाया जा रहा है.

राज्य सरकार अब बना सकती है नियम

केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद अब राज्य सरकार भी विषय विशेषज्ञों से परामर्श ले रही है. मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में केंद्र का आदेश आने के बाद अब राज्य सरकार इस पूरे मामले को लेकर नया नियम बना सकती है. इस संबंध में अधिकारियों से विचार-विमर्श किया जा रहा है. ऐसी संभावना है कि राज्य सरकार कमेटी में विधायकों को शामिल करने का नियम ला सकती है.

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कोरोना की तीसरी लहर के लिए DMF फंड से राशि का आवंटन

दरअसल राज्य को प्रभावित जिलों में खनन के अनुपात से राशि मिलती है, वित्त वर्ष 2020 - 2021 में राज्य को यह राशि 6470 करोड़ रुपये मिल सकती है. जिसे राज्य सरकार प्रभावित क्षेत्र में इलाज, शिक्षा व अन्य आवश्यक कार्यों पर खर्च करती है. बीते दिनों दुर्ग में DMF शासी परिषद की बैठक हुई. जिसमें DMF फंड की 3 करोड़ की राशि कोरोना की तीसरी लहर के लिए सुरक्षित रखी गई.

भाजपा सरकार के समय में बनी थी समितियां

राज्य में पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में DMF समितियों का भी गठन किया गया था. इसमें कलेक्टर को अध्यक्ष बनाया गया था. इस समय सांसद और विधायकों को सदस्य के रूप में शामिल किया जा रहा था, लेकिन कांग्रेसी सरकार के बनने के बाद इस नियम में बदलाव कर प्रभारी मंत्री को ही अध्यक्ष और कलेक्टर को सचिव बनाया गया था. अब केंद्र के आदेश के बाद यह व्यवस्था फिर से बदल जाएगी.

DMF फंड के बंदरबांट को लेकर कांग्रेस ने भी उठाया था मामला

DMF फंड के बंदरबांट को लेकर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने जमकर मामला उठाया था. राजधानी रायपुर में भी DMF फंड की राशि से सौंदर्यीकरण के कई काम किए गए हैं. कटोरा तालाब का सौंदर्यीकरण की बात हो या फिर नालंदा परिसर के निर्माण की बात हो, यह सारे निर्माण कार्य DMF की राशि से किए गए हैं. इसके अलावा ऑक्सीजोन का निर्माण भी DMF फंड से ही किया गया था. दंतेवाड़ा में भी निर्माण कार्यों को लेकर कांग्रेस ने तत्कालीन राज्य सरकार पर आरोप लगाया था. यही वजह है कि सत्ता मिलने के बाद कांग्रेस ने DMF को लेकर नए सिरे से समिति का गठन कर दिया था. जिसमें प्रभारी मंत्री को पावरफुल बनाया गया था.

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