रायपुर : छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव से राजपरिवार ने दूरी बनाई है. शायद ऐसा पहली बार हो रहा है जब यहां का राज परिवार विधानसभा चुनाव में सक्रिय नजर नहीं आ रहा है. आखिर इस दूरी के क्या सियासी मायने हैं. क्या इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहेंगे या फिर जातीय समीकरण चुनाव पर प्रभाव डालेगा. यह सवाल लोगों के जेहन में बार-बार कौंध रहा है. आखिर कैसी है खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव की बिसात. आइये डालते हैं एक नजर...
विधानसभा उपचुनाव से राज परिवार की दूरी :इस बार विधानसभा उपचुनाव से राज परिवार ने दूरी बनाई है. इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि खैरागढ़ क्षेत्र में राज परिवार पिछले 30 सालों से राज करता रहा है. यह कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है जब राजनीतिक दलों से इस बार राजपरिवार दूर है. कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से राज परिवार से जुड़े सदस्य को ही उम्मीदवार बनाया है. आज रायगढ़ में ऐसी क्या परिस्थिति है कि सभी दल राज परिवार का ही समर्थन लेने की कोशिश कर रहे हैं. आज भी उस क्षेत्र में राज परिवार का प्रभाव है. राज परिवार जिसको मदद करेगा, परिणाम शायद उसके पक्ष में ही होगा.
कांग्रेस को प्रबुद्ध नागरिकों का समर्थन-सुशील : कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि प्रबुद्ध नागरिकों का समर्थन कांग्रेस पार्टी को प्राप्त है. यदि देवव्रत सिंह जीवित होते और खैरागढ़ में चुनाव होता तो वह कांग्रेस को समर्थन देते. मरवाही चुनाव के समय उन्होंने कहा था कि मेरे डीएनए में कांग्रेस है. शुक्ला ने आगे कहा कि भूपेश सरकार द्वारा की गई कार्य योजनाओं का लाभ इस विधानसभा उपचुनाव में भी मिलेगा. जिस तरह से पिछले विधानसभा उपचुनाव में पार्टी को लाभ मिला है.
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उपचुनाव में फेल रहेगा छत्तीसगढ़ मॉडल-संजय :भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव कहना है कि छत्तीसगढ़ मॉडल को असम और बिहार पहले ही रिजेक्ट कर चुका था. अब हाल ही में हुए चुनाव के बाद यह मॉडल उत्तर प्रदेश सहित जिन राज्यों में चुनाव हुए, वहां भी फेल रहे हैं. यही वजह है कि अब छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी छत्तीसगढ़ मॉडल फेल रहेगा.
12 अप्रैल को होना है उपचुनाव :खैरागढ़ विधानसभा सीट पर 12 अप्रैल को उपचुनाव होगा. इसमें जीत के लिए भाजपा, कांग्रेस सहित जनता कांग्रेस ने भी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस ने सीएम भूपेश बघेल, कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव सहित अन्य स्थानीय नेताओं को स्टार प्रचारक बनाया है. वहीं भाजपा ने एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, पार्टी अध्यक्ष विष्णुदेव साय, संगठन मंत्री शिव प्रकाश, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह व प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी को स्टार प्रचारक बनाया है.
खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण और उम्मीदवार :छत्तीसगढ़ में खैरागढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए बिसात बिछ गई है. 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए तीनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस, बीजेपी और जनता जोगी कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिये हैं. एक ओर कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार पर भरोसा जताया है तो बीजेपी और जनता जोगी कांग्रेस ने पुरुष प्रत्याशियों पर दांव लगाया है.
कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी पर खेला दांव :इस बार कांग्रेस ने लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रही यशोदा वर्मा को चुनाव का टिकट दिया है. हाईस्कूल तक पढ़ी यशोदा वर्मा खैरागढ़ ब्लॉक कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष हैं. वे पूर्व में खैरागढ़ जनपद पंचायत की सदस्य रह चुकी हैं. उनके पति भी कांग्रेस के लिए लंबे समय से काम कर रहे थे.
पिछली बार हारे प्रत्याशी पर फिर से भाजपा आजमा रही किस्मत :भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर कोमल जंघेल पर ही भरोसा जताया है. जंघेल 2018 के चुनाव में भी उम्मीदवार थे, लेकिन जनता जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी देवव्रत सिंह से महज 1000 वोट से हार गए थे. कोमल जंघेल साल 2007 में हुए उपचुनाव के साथ ही 2008 से 2013 तक खैरागढ़ से विधायक और संसदीय सचिव के रह चुके हैं.
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जनता कांग्रेस ने देवव्रत के रिश्तेदार पर जताया भरोसा :जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने पार्टी ने पूर्व विधायक दिवंगत देवव्रत सिंह के बहनोई और पेशे से अधिवक्ता नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा है. नरेंद्र सोनी का विवाह खैरागढ़ की भूतपूर्व विधायक दिवंगत रानी रश्मि देवी की छोटी पुत्री और गीत देवराज सिंह की छोटी बहन से हुई है. सोनी खैरागढ़ महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं.
जातिगत समीकरण का प्रभाव : राजनांदगांव लोकसभा सीट का हिस्सा खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र है. यहां कुल 1,80,404 मतदाता हैं. जातिगत समीकरण की बात करें तो यह क्षेत्र लोधी बाहुल्य क्षेत्र है. कांग्रेस ने साल 2003 में देवव्रत सिंह को चुनाव के मैदान में उतारा था और उन्हें जीत मिली थी. इसके बाद 2008 में बीजेपी के कोमल जंघेल ने जीत हासिल की थी. वहीं 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को मैदान में उतारा था. वे करीब 3000 वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2018 के चुनाव में जनता जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में देवव्रत सिंह फिर से विधायक बने थे. लेकिन इस बार का नतीजा इससे तय होगा कि मतदाता जाति के आधार पर वोट करते हैं या फिर स्थानीय मुद्दों के आधार पर.
सत्ता पक्ष को मिल सकता है फायदा :आम तौर पर विधानसभा उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी को फायदा मिलता है. बीजेपी शासन के दौरान सजारी बालोद में हुए उपचुनाव में पार्टी का उम्मीदवार जीता था. कांग्रेस के राज में मरवाही और दंतेवाड़ा में उपचुनाव हुए तो उसके प्रत्याशियों को जीत मिली. 2018 में हुए चुनाव में जनता जोगी कांग्रेस के देवव्रत सिंह को 61 हजार 516 और बीजेपी के कोमल जंघेल को 60 हजार 646 वोट मिले थे. उस समय कांग्रेस इस क्षेत्र में काफी कमजोर मानी जा रही थी.