रायपुर:मरवाही ने अजीत जोगी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में अपना नेता चुन लिया है. बस वोटों की गिनती के बाद यह पता चल जाएगा कि यहां के लोगों ने किसको अपने दिल में बिठाया है. जोगी परिवार को जाति मामले ने ये उपचुनाव लड़ने नहीं दिया और जेसीसी (जे) का समर्थन मिला भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर सिंह को. डॉक्टर गंभीर सिंह के सामने हैं कांग्रेस के डॉक्टर के के ध्रुव. जहां एक तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि जल्द ही विधानसभा में कांग्रेस के 70 विधायक हो जाएंगे. वहीं भाजपा के अपने जीत के दावे हैं. पूर्व सीएम रमन कह चुके हैं कि बीजेपी की जीत की रिपोर्ट पॉजिटिव है.
मरवाही में किसकी होगी जीत ? अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुई सीट
अजीत जोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी. बिलासपुर से अलग होकर 10 फरवरी 2020 को अलग जिला बने गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही का मरवाही विधानसभा सीट राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण सीट है. छत्तीसगढ़ की मरवाही विधानसभा सीट से 2013 में अमित जोगी ने जीत दर्ज की थी. 2018 में उन्होंने ये सीट अपने पिता और छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत होगी के लिए छोड़ दी थी. पिछले 20 सालों से ये सीट जोगी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती थी.
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डॉक्टर केके ध्रुव का करियर
- डॉक्टर कृष्ण कुमार ध्रुव ने राजनीति में कदम रखने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया है.
- वे मरवाही विकासखंड में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के रूप में पदस्थ थे.
- कृष्ण कुमार ध्रुव बलौदाबाजार जिले के नटूवा गांव के रहने वाले हैं.
- जिनकी प्रारंभिक शिक्षा बालको कोरबा में हुई.
- बाद में जबलपुर के मेडिकल कॉलेज से उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की.
- इनके पिता स्वर्गीय देव सिंह एसईसीएल कोरबा में कर्मचारी थे. वहीं मां पीला बाई हाउस वाइफ थीं.
- केके ध्रुव के 3 बच्चे हैं, जिसमे मंझला बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है. छोटा बेटा बीएससी सेकंड ईयर का छात्र है
- वहीं बड़ी बेटी मरवाही ब्लॉक में ही शिक्षाकर्मी हैं.
- डॉ. ध्रुव साल 2001 से लगातार मरवाही में ही कार्यरत रहे.
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डॉक्टर गंभीर सिंह का करियर
- मरवाही विकासखंड के लटकोनी खुर्द गांव के रहने वाले गंभीर सिंह 11 जून 1968 में गौड़ परिवार में जन्मे और प्राथमिक शिक्षा गांव में ही पूरी करने के बाद 1999 में भारतीय रेलवे के जनरल सर्जन बने.
- वे ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में भी सेवा दे चुके हैं.
- 2005 में रायपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में विभागाध्यक्ष के रूप में भी सेवा दी.
- गंभीर सिंह की पत्नी मंजू सिंह जानी-मानी डॉक्टर हैं.
- गंभीर सिंह के पिता प्रेम सिंह गोंडवाना आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले चुके हैं.
- साल 2013 के चुनाव में भी गंभीर सिंह का नाम बीजेपी की ओर से प्रमुखता से था लेकिन बाद में समीरा पैकरा को प्रत्याशी बनाया गया.
2020 में बिन जोगी के चुनाव
मरवाही विधानसभा सीट को जोगी का गढ़ माना जाता है. साल 2001 के बाद से यह विधानसभा जोगी की होकर रह गई है. साल 2003, 2008 में अजीत जोगी लगातार यहां से विधायक रहे. 2013 में अजीत जोगी ने अमित जोगी के लिए यह सीट छोड़ दी थी. हालांकि 2018 में अमित जोगी ने अपने पिता स्व. अजीत जोगी के लिए सीट छोड़ दी थी. बहरहाल राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां से भले ही दो बार बीजेपी के विधायक बने हैं, लेकिन मरवाही सीट की तासीर कांग्रेसी ही है. जोगी के गढ़ के रूप ख्यात मरवाही की जनता मूल रूप से जोगी और कांग्रेस पार्टी को अबतक चुनती आ रही है. अब देखना होगा कि इस बार मरवाही की जनता किसे अपना नेता चुनती है.