रायपुर:छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के विधायक देवव्रत सिंह और विधायक प्रमोद शर्मा ने कुछ दिन पहले पार्टी से अलग होने की घोषणा की थी. जिस पर पार्टी सुप्रीमो रेणु जोगी ने कहा था कि उन्होंने विधायकों से बात की है और दोनों ने उन्हें पार्टी में बने रहने का आश्वासन दिया है. जेसीसी (जे) में चल रही इस राजनीतिक कलह को लेकर छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व सचिव देवेंद्र वर्मा ने ईटीवी भारत से बात की है. ये जानने की कोशिश की है कि अगर विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा पार्टी छोड़ते हैं तो नियम और कानून क्या कहता है.
देवेंद्र वर्मा ने कहा कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ में केवल चार विधायक हैं. उनमें दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने विखंडन कर अलग दल बनाने की बात कही है. जब तक दो तिहाई सदस्य अलग न हों, तब तक पार्टी का विखंडन नहीं किया जा सकता. यहां पार्टी के 2 सदस्य ही विखंडन चाहते हैं, ऐसे में यह 50% होता है. अगर इन्हें अलग पार्टी बनानी है, तो 3 सदस्यों को अपने पक्ष में लाना अनिवार्य होगा.
विधानसभा के पूर्व सचिव वर्मा ने बताया कि यदि यह विधानसभा अध्यक्ष से अलग बैठने की मांग करते हैं, तो अध्यक्ष उन्हें अनुमति नहीं दे सकते. उन्होंने बताया कि जो जिस पार्टी के चुनाव चिन्ह से चुनाव जीतकर आता है, विधानसभा में वह उसी पार्टी का सदस्य रहेगा. जब तक कि उसकी सदस्यता समाप्त नहीं हो जाती. यह विधानसभा में जेसीसीजे के ही विधायक माने जाएंगे. उन्होंने कहा कि अगर यह दल परिवर्तन करते हैं तो दल परिवर्तन करने के लिए भी दो तिहाई होना आवश्यक है. अगर यह दल बदल करते हैं तो उनकी सदस्यता समाप्ति के लिए भी विधानसभा अध्यक्ष को आवेदन देना होगा.
देवेंद्र वर्मा ने कहा कि कई बार देखा गया है कि पार्टी के सदस्य द्वारा दल बदलने पर भी मामले पर 3-4 साल तक कोई फैसला नहीं होता. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की मेघालय में दल परिवर्तन के बाद भी एक सदस्य मंत्री परिषद में गए, लेकिन दल परिवर्तन के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने निर्णय नहीं लिया. मामला सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद कोर्ट ने अध्यक्ष को इस पर जल्द निर्णय लेने के लिए कहा, लेकिन प्रकिया इतनी लंबी थी कि उनका कार्यकाल पूरा हो गया.
क्या है पूरा मामला ?