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क्या खत्म हो गई JCC (J) में राजनीतिक कलह ? पार्टी विखंडन पर जानें एक्सपर्ट की राय

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधायक देवव्रत सिंह और विधायक प्रमोद शर्मा ने पूर्व सीएम अजीत जोगी के कार्यकाल में पार्टी ज्वॉइन की थी. अजीत जोगी के निधन के बाद पार्टी के कामकाज के तरीके और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी से दोनों विधायक नाराज थे. दोनों ने पार्टी से अलग होने की घोषणा की थी. जेसीसी (जे) में चल रही इस राजनीतिक कलह पर एक्सपर्ट क्या कहते हैं, जानिए.

JCC (J)
राजनीतिक कलह

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Published : Jul 20, 2021, 12:17 PM IST

Updated : Jul 20, 2021, 1:47 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के विधायक देवव्रत सिंह और विधायक प्रमोद शर्मा ने कुछ दिन पहले पार्टी से अलग होने की घोषणा की थी. जिस पर पार्टी सुप्रीमो रेणु जोगी ने कहा था कि उन्होंने विधायकों से बात की है और दोनों ने उन्हें पार्टी में बने रहने का आश्वासन दिया है. जेसीसी (जे) में चल रही इस राजनीतिक कलह को लेकर छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व सचिव देवेंद्र वर्मा ने ईटीवी भारत से बात की है. ये जानने की कोशिश की है कि अगर विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा पार्टी छोड़ते हैं तो नियम और कानून क्या कहता है.

देवेंद्र वर्मा

देवेंद्र वर्मा ने कहा कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ में केवल चार विधायक हैं. उनमें दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने विखंडन कर अलग दल बनाने की बात कही है. जब तक दो तिहाई सदस्य अलग न हों, तब तक पार्टी का विखंडन नहीं किया जा सकता. यहां पार्टी के 2 सदस्य ही विखंडन चाहते हैं, ऐसे में यह 50% होता है. अगर इन्हें अलग पार्टी बनानी है, तो 3 सदस्यों को अपने पक्ष में लाना अनिवार्य होगा.

विधानसभा के पूर्व सचिव वर्मा ने बताया कि यदि यह विधानसभा अध्यक्ष से अलग बैठने की मांग करते हैं, तो अध्यक्ष उन्हें अनुमति नहीं दे सकते. उन्होंने बताया कि जो जिस पार्टी के चुनाव चिन्ह से चुनाव जीतकर आता है, विधानसभा में वह उसी पार्टी का सदस्य रहेगा. जब तक कि उसकी सदस्यता समाप्त नहीं हो जाती. यह विधानसभा में जेसीसीजे के ही विधायक माने जाएंगे. उन्होंने कहा कि अगर यह दल परिवर्तन करते हैं तो दल परिवर्तन करने के लिए भी दो तिहाई होना आवश्यक है. अगर यह दल बदल करते हैं तो उनकी सदस्यता समाप्ति के लिए भी विधानसभा अध्यक्ष को आवेदन देना होगा.

देवेंद्र वर्मा ने कहा कि कई बार देखा गया है कि पार्टी के सदस्य द्वारा दल बदलने पर भी मामले पर 3-4 साल तक कोई फैसला नहीं होता. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की मेघालय में दल परिवर्तन के बाद भी एक सदस्य मंत्री परिषद में गए, लेकिन दल परिवर्तन के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने निर्णय नहीं लिया. मामला सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद कोर्ट ने अध्यक्ष को इस पर जल्द निर्णय लेने के लिए कहा, लेकिन प्रकिया इतनी लंबी थी कि उनका कार्यकाल पूरा हो गया.

क्या है पूरा मामला ?

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के इन दोनों विधायकों ने पूर्व सीएम अजीत जोगी के कार्यकाल में पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी के कामकाज के तरीके और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी से दोनों विधायक नाराज थे. जिसके बाद दोनों विधायकों ने पार्टी छोड़कर एक अलग पार्टी बनाने की बात कही थी. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पास राज्य की विधानसभा में 4 सीटें हैं. ऐसे में पार्टी इन विधायकों को गंवाना नहीं चाहती. वहीं, दूसरी तरफ अगर यह विधायक पार्टी छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में जाते हैं या नई पार्टी बनाते हैं तो उनकी दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा में सदस्या रद्द हो सकती है. कोरोना संक्रमण के कारण चुनाव आयोग इस वक्त देश में उपचुनाव कराने को लेकर परहेज कर रहा है और यदि जेसीसी (जे) के विधायक पार्टी छोड़ते हैं तो वह उनके लिए भारी पड़ सकता है.

क्या है दल-बदल विरोधी कानून ?

साल 1967 में हरियाणा के एक विधायक गयालाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली. इस प्रकार की राजनीतिक उठापटक को रोकने के लिए 1985 में 52वां संविधान संशोधन किया गया. इस अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून को शामिल किया गया.

यह हैं नियम के प्रावधान

दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान के तहत जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है.

  • कोई निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है तो उसकी भी सदस्यता रद्द हो सकती है.
  • किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट दिया जाता है या क्रॉस वोटिंग की जाती है.
  • कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है, यानी वॉक आउट करता है.
  • 6 महीने खत्म होने के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.

इस कानून के तहत सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार करने की शक्ति है. अगर सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत मिलती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.

Last Updated : Jul 20, 2021, 1:47 PM IST

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