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Reservation amendment in Chhattisgarh: राज्यपाल के जवाब के बाद क्या करेगा हाईकोर्ट, जानिए कानून विशेषज्ञ की राय

आरक्षण के मुद्दे को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राजभवन को नोटिस जारी किया था.जिसके बाद राजभवन ने नोटिस का जवाब देने से साफ इनकार कर दिया.राजभवन ने साफ कर दिया कि वह हाईकोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं देगा. क्योंकि हाईकोर्ट को राज्यपाल को नोटिस भेजने का अधिकार नहीं है.इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा से बात की.

Reservation amendment case in Chhattisgarh
राज्यपाल के जवाब के बाद क्या करेगा हाईकोर्ट

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Published : Feb 8, 2023, 4:02 PM IST

Updated : Feb 8, 2023, 7:55 PM IST

राज्यपाल के जवाब के बाद क्या करेगा हाईकोर्ट

रायपुर :छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 में राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने पर राजनीति गरमाई हुई है. राज्य शासन ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.जिस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बिलासपुर हाईकोर्ट में आकर अपनी दलील पेश की थी. हाईकोर्ट में वकीलों का दलील सुनने के बाद जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब मांगा गया था.लेकिन इस हाईकोर्ट के नोटिस पर राजभवन ने जवाब नहीं दिया है.ऐसे में क्या मामले में आगे क्या कुछ हो सकता है.ये जानने की कोशिश की है ईटीवी भारत की टीम ने सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा से.

सवाल : बिलासपुर हाईकोर्ट ने राज्यपाल को क्या नोटिस भेजा था ?
जवाब : हाईकोर्ट के सामने जो प्रकरण लंबित था उसमें शासन ने आरक्षण का परसेंटेज जो तय किया था.उसको लेकर यह पूरा मामला था. उसमें एक आवश्यक पक्षकार के रूप में राज्यपाल भी थी. इसलिए हाईकोर्ट ने एक नोटिस जारी किया था. मैं स्पष्ट कर दूं कि '' हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया था. क्योंकि जो विधेयक पारित हुआ था. वह राज्यपाल के पास लंबित है इसी बात के लिए यह पूरा मामला था.उनके पक्ष को जानने के लिए हाईकोर्ट ने राज्यपाल के सेक्रेटरी को नोटिस जारी किया था.''

सवाल : अब राजभवन से जवाब गया है कि हाईकोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति को नोटिस जारी नहीं कर सकता ?
जवाब : ऐसा कोई कानून नहीं है. कलकत्ता हाईकोर्ट के मामले में जो मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. उसका एक निर्णय है उसमें बहुत स्पष्ट है कि आप इनसे शपथ पत्र नहीं मांग सकते. राज्यपाल या राष्ट्रपति से शपथ पूर्वक बयान नहीं मांग सकते.लेकिन नोटिस करने के लिए ऐसा उसमें कोई बंधन कारी नहीं था . वह एक केस का जजमेंट था. वह बंधन कारी नहीं होता है. जिसके ऊपर जज का विवेकाधिकार होता है कि वह एक रूलिंग है.उसके विपक्ष में भी बहुत सारे निर्णय रहते हैं, पक्ष में भी निर्णय रहते हैं, और जो कानून बनाया जाता है. उसकी अलग से प्रक्रिया होती है तब बंधन कारी होता है. वह जो सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश था वह बंधन कारी नहीं था. वह मात्र एक दिशा निर्देश था.आप चाहे तो फॉलो करें यदि आप नहीं चाहते हैं तो ना फॉलो करें.

सवाल : अभी हाईकोर्ट ने जो नोटिस जारी किया है वह न तो कोई फैसला है और ना ही कोई शपथ पत्र की मांग की है, सिर्फ सूचना और जानकारी की मांग की है, क्योंकि आरक्षण का मुद्दा पहले से ही कोर्ट में चल रहा है?
जवाब : यह सही बात है कि कोर्ट ने सिर्फ नोटिस भेजकर जानकारी मांगी है.यह भी बताते चलें कि संवैधानिक रूप से राज्यपाल को किसी विधेयक को डील करने के लिए कुछ सीमाएं बनाई गई है. ऐसा नहीं है कि बिना संवैधानिक के राज्यपाल भी कुछ भी कर सकते हैं या राष्ट्रपति भी. उनके लिए भी कई चीजें बंधनकारी होती है. इस मामले में दो-चार ही स्थिति है. विधेयक आने पर राज्यपाल चाहे तो उसे अस्वीकार कर दें. चाहे तो स्वीकार कर ले या पुनः विचार के लिए वापस सरकार को भेज दे या फिर राष्ट्रपति को भेज दें. लेकिन अभी हमारे स्टेट में यह स्थिति है कि इन चारों में से राज्यपाल के द्वारा कुछ नहीं किया गया. पेंडिंग पड़ा हुआ है.पेंडिंग की स्थिति नहीं होनी चाहिए. इस बात के लिए शासन हाईकोर्ट गए हैं.

सवाल : कानून के तहत शपथ पत्र नहीं ले सकता लेकिन किसी मामले में यदि राज्यपाल शामिल है या पक्षकार है तो उनसे जानकारी तो ले सकता है?
जवाब : बिल्कुल जानकारी ले सकता है. क्योंकि जो प्रकरण हाईकोर्ट के सामने लंबित है और उसमें राज्यपाल भी एक महत्वपूर्ण पक्षकार है.तो बिना उनको जानकारी दिए या बिना उनको सुने उसका जजमेंट अधूरा हो जाएगा इसलिए हाईकोर्ट ने नोटिस दिया है.

सवाल : राजभवन से जवाब चला गया है ऐसे में अगली पेशी पर क्या हो सकता है ?
जवाब : वह तो हाईकोर्ट के ऊपर है क्या निर्णय लेगी.हो सकता है कि राजभवन से जो जवाब दिया गया है उसी जवाब के आधार पर आगे का निर्णय लें या फिर हाईकोर्ट पुनः इस मामले पर कुछ विशेष टिप्पणी करते हुए राज्यपाल को नोटिस दे सकती है.

सवाल : विधानसभा में कोई भी बिल पास होता है वह राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए जाता है तो उसके बाद की क्या प्रक्रिया होती है?
जवाब : विधानसभा से बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास जाता. उसमें राज्यपाल तीन-चार चीजें ही कर सकती है या तो उस विधेयक को पारित कर दें या फिर उसको राज्य सरकार को पुनर्विचार के लिए वापस कर दे या फिर अस्वीकार कर दें या फिर जो आखिरी स्थिति है राष्ट्रपति को भेज दें कि इस पर आप दिशा निर्देश दें.क्योंकि राज्यपाल का उच्च अधिकारी राष्ट्रपति ही होता है.दिशा निर्देश के लिए राज्यपाल राष्ट्रपति को बिल दे सकती है यही चार स्थिति है.

ये भी पढ़ें -छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर बवाल, फिर सीएम के निशाने पर राज्यपाल


सवाल : क्या कहा जाए. इन दिनों राज्य सरकार और राजभवन राजनीति का अखाड़ा बन गया है?
जवाब : बिल्कुल कह सकते हैं कि यह राजनीति का अखाड़ा बन गया है. मेरी व्यक्तिगत राय है कि इसको जल्द से जल्द निराकरण होना चाहिए. क्योंकि छत्तीसगढ़ की बहुत सी जनता इससे प्रभावित हो रही है.

Last Updated : Feb 8, 2023, 7:55 PM IST

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