रायपुर : छत्तीसगढ़ में कुछ महीनों के बाद चुनाव होने हैं. इसलिए कांग्रेस और बीजेपी प्रदेश में खेमेबंदी करने में जुट गई हैं. दोनों ही पार्टियां इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटर्स को साधने में लगी हैं, जिसके लिए कई तरह की तैयारी की जा रही है. एक तरफ जहां सरकार आरक्षण और योजनाएं लाकर ओबीसी को साध रही है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी पार्टी के बड़े पदों पर ओबीसी कैटगेरी के जनप्रतिनिधियों को बिठाकर संदेश देने की कोशिश कर रही है.
राहुल पर कार्रवाई को लेकर बीजेपी का रुख :राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने को लेकर कांग्रेस हंगामा खड़ा किए है. वहीं दूसरी ओर बीजेपी का मानना है कि राहुल गांधी ने ओबीसी वर्ग का अपमान किया था. इसलिए कोर्ट ने उन्हें सजा दी है. इसके लिए बीजेपी हर उस माध्यम का इस्तेमाल कर रही है, जहां जनता मौजूद रहती है.
आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस का दांव :एक तरफ बीजेपी है जो राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद इसे ओबीसी से जुड़ा मामला बता रही है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस है जो आरक्षण संशोधन विधेयक लागू नहीं होने का कारण बीजेपी को बता रही है. कांग्रेस ने 27 परसेंट ओबीसी आरक्षण का प्रावधान किया है, लेकिन बिल राजभवन में अटका है, जिसे लेकर कई बार कांग्रेस ने इसे बीजेपी की साजिश करार दिया.
क्यों महत्वपूर्ण है पिछड़ा वर्ग :छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या में पिछड़ा वर्ग की आबादी 42 प्रतिशत है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या लगभग 1 करोड़ 26 लाख है. प्रदेश के कई विधानसभा सीटों पर ओबीसी वर्ग निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में चुनाव के नजरिए से ओबीसी वर्ग महत्वपूर्ण स्थान रखता है. छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों में 22 विधायक अन्य पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं. मौजूदा सरकार में कांग्रेस के 18 विधायक ओबीसी वर्ग से हैं.
एसटी-एससी आरक्षित सीटों पर भी ओबीसी वोटर का प्रभाव:छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों में कुल 39 सीटें एसटी-एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. अनुसूचित जनजाति के लिए 29 सीटें और अनुसूचित जाति के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं. प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या ज्यादा होने के कारण इन सीटों पर भी ओबीसी वर्ग का प्रभाव है. इसलिए दोनों ही पार्टियां इस बार ओबीसी वर्ग को साधकर जीत सुनिश्चित करना चाह रही हैं.