रायपुर: नोटा यानि कि 'None Of The Above'.(NOTA) ये एक अधिकार है, जो निवार्चन आयोग मतदाताओं को देता है कि, वो चुनाव में खड़े किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में वोट दें या नहीं दे. इस अधिकार का छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में मतदाता जमकर उपयोग करते हैं. इस समय रायपुर में तमाम संगठन प्रदर्शन भी कर रहे हैं. कई संगठन कह रहे हैं मांगे नहीं मांनी गई तो नोटा के तहत वोट पड़ेंगे. वहीं पार्टियों ने माहौल और नोटा को मिलाकर अपने फायदे नुकसान का गणित लगाना शुरू कर दिया है. नोटा इतना महत्त्वपूर्ण क्यों हैं ? सबसे पहले इसको समझते हैं.
केस 01 धमतरी सीट: विधानसभा चुनाव 2018 के परिणामों में धमतरी का नाम बहुत लिया गया. अब तो शायद मतदाताओं को भी याद नहीं होगा कि ऐसा क्यों हुआ था ? कारण जान लीजिए. यहां पर हार-जीत का फैसला केवल 464 वोटों के अंतर से हुआ था. धमतरी विधानसभा सीट पर कुल वोटर थे, 2 लाख 09 हजार 369. इनमें से एक लाख 71 हजार 931 ने वोट डाला था. इसके अलावा यहां नोटा वोट 551 पड़े थे. यानि इतने मतदाताओं ने किसी को मत के लायक नहीं समझा था. यानि हार-जीत के अंतर से ज्यादा यहां नोटा वोट था.
केस 02 खैरागढ़ सीट:यहां पर कुल मतदाता दो लाख 01 हजार 701 थे. इसमें कुल मतदान हुआ एक लाख 67 हजार 441 . नोटा के तहत वोट डाले गए तीन हजार 68. हार जीत का अंतर रहा 870 वोटों से. यानि यहां पर भी हार-जीत के अंतर से ज्यादा नोटा वोट डाला गया था. अगर बड़े रूप में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव में 15 सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच हजार वोटों से भी कम का था. वहीं दूसरी तरफ नोटा वोट कई विधानसभा में पांच हजार से भी ज्यादा था. इस वजह से पूरा चुनाव परिणाम बहुत रोचक हो गया था.
छत्तीसगढ में नोटा कब से शुरू हुआ ?:साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटा की व्यवस्था लागू करने की बात पहली बार की थी. इसके बाद याचिका लगाई गई. इस पर 2013 में इसका विकल्प मतदान के समय दिया गया. ईवीएम में लिखा गया ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी नोटा. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि नोटा के वोटों को गिना जरूर जाएगा, पर किसी भी पार्टी में जोड़ा नहीं जाएगा. यानि कुल मिलाकर, जब 2013 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब पहली बार नोटा का उपयोग करने का अधिकार मतदाताओं को मिला था.
नोटा कब शुरू और कहां शुरू हुआ ? :नोटा का पहला उपयोग अमेरिकी लोकतंत्र में हुआ था. कैलीफोर्निया में 1976 में इस्ला विस्टा म्युनिसिपल एडवाइजरी कैंसिंल के चुनाव हुए थे. वहां नोटा का इस्तेमाल किया गया था. फिर ये दुनियाभर के देशों में लागू हुआ. इसमें यूरोप के कई देश भी शामिल हैं. इसके लिए अलग-अलग नामों का इस्तेमाल होता है. कुछ देश में ये व्यवस्था 'नन ऑफ दीज कैंडिडेट के नाम से भी इस्तेमाल होती है.
छत्तीसगढ़ में कितने नोटा वोट पड़े ?:छत्तीसगढ़ में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में नोटा को लेकर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है. इसी वजह से पिछले चुनावों के नोटा वोट का डेटा फिर से देखा जाने लगा है. डेटा के अनुसार, 2013 में करीब चार लाख एक हजार 058 वोट नोटा के तहत डाले गए थे. जो कि कुल वोट का 3.07 फीसदी थे. वहीं 2018 में जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जगह कांग्रेस की सरकार आई,तब करीब दो लाख 82 हजार 738 वोट नोटा के तहत डाले गए थे. जो कुल वोट के 1.98 फीसदी थे.
इस बार भी क्या नोटा होगा ज्यादा इस्तेमाल ?:इस सवाल का जवाब पक्के से नहीं दिया जा सकता है.पर जो परिस्थितियां सामने हैं उनसे इनकार भी नहीं किया जा सकता है. सरकार के खिलाफ कई संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं. इनमें सरकारी कर्मचारी सबसे ज्यादा हैं. जो सरकार द्वारा की गई घोषणाओं पर अमल नहीं होने की वजह से नाराज हैं.
"पहले की सरकार हो या वर्तमान, कर्मचारियों की मांगों को सुना नहीं गया है. जिस प्रकार से कर्मचारियों ने बीजेपी को सत्ता से बाहर किया था, इस कांग्रेस को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. यही स्थिति रही तो कर्मचारियों का वोट नोटा में भी जा सकता है"- अजय तिवारी, प्रांतीय संरक्षक, छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ
राज्य में 20 लाख वोट बिगाड़ सकते हैं समीकरण: सरकार से नाराज कर्मचारियों और उनके परिवार के वोट करीब 20 लाख बताए जाते हैं. छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रांतीय प्रवक्ता विजय कुमार डागा ने बताया" 6 लाख शासकीय कर्मचारी हैं, यदि उनके परिवारों को जोड़ा जाए तो 20 लाख वोट चुनाव में शासकीय कर्मचारियों और उनके परिवार के पड़ते हैं. सरकार हमारी मांगों को पूरा नहीं कर रही है. हमारे पास नोटा का विकल्प है.यह विकल्प भी इसीलिए बनाया गया है कि आपको यदि कोई पसंद नहीं है तो आर इस पर वोट कर सकते हैं. यदि मांगे पूरी नहीं हुई तो लगभग 20 लाख से ज्यादा वोट नोटा में जाएंगे"