रायपुर:छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल 1.35 लाख वर्ग किलोमीटर है. इसमें से तकरीबन 44 परसेंट हिस्सा जंगल है. पहाड़ और घने जंगलों के बीच आदिवासियों की एक बड़ी आबादी अभी भी रहती हैं. सेना की दखल के बाद सड़कें बनी. स्कूल, बाजार, अस्पताल भी बने तो लोग विकास से जुड़े. संचार साधनों ने समाज की मुख्य धारा से जोड़ा. लेकिन अभी भी कुछ ऐसे इलाके बचे हैं, जहां तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं हैं. हम आपको ऐसे ही तीन जगहों को बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मोटर गाड़ियां तो नहीं पहुंच पातीं लेकिन पोलिंग पार्टियां पहुंचती हैं और वोटिंग भी कराती हैं.
112 पोलिंग बूथ पर वोटिंग कराना है कड़ी चुनौती:छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में वोटिंग कराना जोखिम भरा तो है, लेकिन सेना और अर्द्ध सैनिक बलों की मौजूदगी इसे आसना बना देते है. लेकिन प्रदेश के 112 पोलिंग बूथ डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर से इतनी दूर और दुर्गम जगहों पर हैं कि वहां पहुंचना ही सबसे मुश्किल काम होता है, क्योंकि यहां गाड़ियां नहीं जा सकतीं. पोलिंग पार्टिंया दुर्गम पहाड़ी चढ़ते, नदी नले पार करते और घने जंगलों के बीच से मीलों पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं. इन्हीं में तीन पोलिंग बूथ हैं, पीएस-139 कंटो, पीएस-143 शेरादंड और पीएस-162 रेवाला. तीनों ही कोरिया जिले के भरतपुर सोनहत विधानसभा क्षेत्र में आते हैं.
पीएस 139 कंटो (12 वोटर):पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच पोलिंग स्टेशन कंटों कोरिया जिला मुख्यालय के डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर से 80 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां कुल 12 वोटर हैं. इन मतदाताओं के लिए बाकायदा पोलिंग पार्टियां पहुंचती हैं. वोटिंग का समय खत्म होने तक टीम यहां मौजूद रहती है.