रायपुर: छत्तीसगढ़ की नौ सीटों में से सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर और कोंटा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जबकि शेष चार खरसिया, कोरबा, कोटा और जैजैपुर सामान्य निर्वाचन क्षेत्र हैं.
छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद भाजपा ने राज्य में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते. भाजपा ने 50, 50 और 49 सीटें हासिल कीं. 2018 में कांग्रेस ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी की सीटें गिरकर 15 पर आ गईं. बीजेपी ने उन सीटों पर उम्मीदवारों के चयन पर विशेष ध्यान दिया है, जहां वह कभी नहीं जीती है. भाजपा सांसद और पार्टी की चुनाव अभियान समिति के संयोजक संतोष पांडे ने बताया कि सभी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ प्रचार कर रहे हैं और उन्हें लोगों से भारी समर्थन मिल रहा है.
आबकारी मंत्री कवासी लखमा बस्तर क्षेत्र के एक प्रभावशाली कांग्रेस आदिवासी नेता और पांच बार के विधायक हैं. वह नक्सल प्रभावित कोंटा सीट पर 1998 से अजेय हैं. भाजपा ने नए चेहरे सोयम मुक्का को मैदान में उतारा है, जो सलवा जुडूम के पूर्व कार्यकर्ता हैं, जिसे 2011 में भंग कर दिया गया था.
इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस, बीजेपी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है. 2018 के विधानसभा चुनावों में लखमा को 31,933 वोट मिले, जबकि भाजपा के धनीराम बारसे को 25,224 वोट और सीपीआई के मनीष कुंजाम को 24,549 वोट मिले.
सरगुजा संभाग से कांग्रेस के एक और प्रभावशाली आदिवासी नेता और भूपेश बघेल सरकार में मंत्री अमरजीत भगत राज्य गठन के बाद से ही सीतापुर निर्वाचन क्षेत्र से जीतते रहे हैं. भाजपा ने हाल ही में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए राम कुमार टोप्पो (33) को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है.
राम कुमार टोप्पो ने कहा कि ''सीतापुर के लोगों ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया और वह भगत को चुनौती के रूप में नहीं देखते हैं. मैंने कभी राजनेता बनने की कल्पना नहीं की थी. मुझे सीतापुर के लोगों से लगभग 15,000 पत्र मिले, जिसमें उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर मेरी मदद मांगी और मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा. इनमें से एक पत्र यौन शोषण की शिकार एक महिला ने खून से लिखा था.'' उन्होंने कहा, मैं उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सका.
पूर्व सीआरपीएफ कर्मी ने कहा कि वह कांग्रेस उम्मीदवार को चुनौती के रूप में नहीं देखते हैं क्योंकि सीतापुर के लोग ही अमरजीत भगत के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
कांग्रेस सरकार में एक और मंत्री, उमेश पटेल, खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. न केवल राज्य के गठन के बाद से बल्कि 1977 में मध्य प्रदेश के हिस्से के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से यह निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है.
2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में मारे गए तत्कालीन राज्य कांग्रेस प्रमुख उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल इस सीट से पांच बार चुने गए थे. खरसिया से बीजेपी ने नए चेहरे महेश साहू को मैदान में उतारा है.
मरवाही और कोटा सीटें भी कांग्रेस का गढ़ रही हैं. इससे पहले 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीटें जीती थीं. 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद कांग्रेस सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने जोगी ने 2001 में मरवाही से उपचुनाव जीता. बाद में उन्होंने 2003 और 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती.
2013 में, उनके बेटे अमित जोगी ने मरवाही से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा और 2018 में, अजीत जोगी अपने नवगठित संगठन जेसीसी (जे) के टिकट पर यहां से मैदान में उतरे और जीत हासिल की. हालांकि, 2020 में अजीत जोगी की मृत्यु के कारण उपचुनाव हुआ और कांग्रेस ने इस निर्वाचन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया.
अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी ने 2006 में कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला की मृत्यु के बाद कोटा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 2008 और 2013 के चुनावों में सीट जीती और 2018 में जेसीसी (जे) के उम्मीदवार के रूप में चौथी बार सीट जीती.