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जानिए नक्सलियों को कहां से और कैसे मिलता है घातक हथियार?

झारखंड में नक्सलियों की धमक बरकरार है. हथियार के जोर पर नक्सली लगातार अपनी सरकार चलाने की कोशिश में हैं. ये हथियार नक्सलियों के पास कहां से आते हैं, कैसे आते हैं, कौन देता है, पैसा कहां से आता है? ऐसे तमाम सवालों को खंगालती है ईटीवी भारत की ये विशेष रिपोर्ट...

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झारखंड में हथियार का जखीरा

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Published : Nov 17, 2020, 11:01 PM IST

रांचीः झारखंड में सक्रिय सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादी हो या छोटे नक्सली संगठन टीपीसी, पीएलएफआई या जेजेएमपी. इनकी सबसे बड़ी ताकत हथियार है. हथियार के बल पर ही झारखंड में यह संगठन पिछले 22 सालों से समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं. आखिर इन नक्सली संगठनों के पास अत्याधुनिक हथियार और गोला बारूद आते कहां से हैं? झारखंड पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में सक्रिय नक्सली संगठनों में कई ऐसे संगठन भी हैं जो खुद हथियारों का निर्माण करते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो हथियारों को तस्करी के माध्यम से हासिल करते हैं. जबकि सबसे बड़ा नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के पास सबसे ज्यादा पुलिस के लूटे हुए हथियार हैं.

झारखंड में हथियार का जखीरा
सबसे बड़े नक्सली संगठन के पास सबसे ज्यादा पुलिस के हथियारझारखंड पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड का सबसे बड़ा नक्सली संगठन भाकपा माओवादी सबसे ज्यादा पुलिस के लूटे गए हथियारों का इस्तेमाल करता है. इस संगठन के पास वर्तमान समय में भी पुलिस से लूटे गए ही हथियार बड़े पैमाने पर मौजूद है.
झारखंड में हथियार का जखीरा
एनआईए जांच में खुलासाः नार्थ ईस्ट से भी आते हैं हथियारवहीं राज्य में नक्सली संगठनों की ओर से बड़े पैमाने पर विदेशी हथियार भी खरीदे गए हैं. एनआईए की जांच में नक्सली संगठनों ने नागा हथियार तस्करों के गैंग और बिहार के हथियार तस्करों की मिलीभगत से नक्सली संगठनों तक हथियार पहुंचाने की बात सामने आई है. इन हथियारों का जखीरा बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते बिहार और झारखंड के नक्सलियों तक पहुंचता है.
झारखंड में हथियार का जखीरा
कुछ संगठन खुद बनाते हैं हथियारवहीं झारखंड पुलिस मुख्यालय ये बताते हैं कि झारखंड में सक्रिय नक्सली संगठन पीएलएफआई खुद ही हथियार का निर्माण करता है. यह संगठन छोटे-छोटे आपराधिक गिरोह को भी अपने यहां बने हथियारों की सप्लाई करता है.टीपीसी के पास है सबसे ज्यादा विदेशी हथियारएनआईए की जांच को आधार मानें तो राज्य में नागालैंड के हथियार तस्करों से सर्वाधिक हथियार झारखंड के टीपीसी नक्सलियों ने खरीदी है. हथियार तस्कर संतोष सिंह ने एनआईए को इस बात की जानकारी दी थी कि टीपीसी उग्रवादियों ने 50 से अधिक विदेशी हथियारों की खरीद की है. हथियार तस्करों का गैंग अमेरिकन, इजरायली और जर्मन हथियारों तक की डिलिवरी करता है. हथियार की डिलवरी के बाद हवाला के जरिए पैसों का भुगतान होता है. हथियार तस्कर गैंग का रांची के दो बैंक में खाता होने की बात भी सामने आई है.
झारखंड में हथियार का जखीरा
हथियार के लिए कोड वर्ड का होता है इस्तेमालएनआईए के मुताबिक, नागालैंड से एके-47 जैसे हथियार और 50,000 से ज्यादा गोलियां नक्सलियों तक पहुंचाई जा चुकी है. हथियार तस्करों ने बिहार और झारखंड में हथियार सप्लाई करने के लिए अपना कोड वर्ड बना रखा है. हथियार तस्कर जब आपस में फोन पर संपर्क करते हैं तो वो एके-47 को अम्मा बोलते हैं, जबकि गोलियों को उनके बच्चे. अगर हथियार तस्कर फोन पर यह कहते पाए गए कि अम्मा अपने बच्चों के साथ जा रही है तो इसका मतलब हुआ कि एके-47 और कारतूस की डिलिवरी हो रही है. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड नेता आखान सांगथम झारखंड और बिहार में नक्सलियों तक विदेशी हथियार की तस्करी कराता है. आखान की पैठ नागालैंड में काफी अच्छी है. झारखंड बिहार के कई हाई प्रोफाइल लोगों का आर्म्स लाइसेंस भी उसने नागालैंड से फर्जी कागजात के जरिए बनवाया है. आखान सांगथम नागालैंड के अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड का कप्तान है. दीमापुर में रहने वाले मुकेश और संतोष सांगथम के लिए काम किया करते थे. इन दोनों ने सूरज को हथियार की सप्लाई के लिए रखा था.
झारखंड में हथियार का जखीरा
रांची और लातेहार से हुई थी गिरफ्तारीनक्सलियों तक विदेशी हथियार पहुंचाने वाले मुकेश सिंह को बीते साल रांची के अरगोड़ा इलाके से गिरफ्तार किया गया था. जबकि लातेहार के नेतरहाट से त्रिपुरारी सिंह की गिरफ्तारी हुई थी. इन सभी के खिलाफ एनआईए चार्जशीट कर चुकी है.वर्तमान में हथियारों की भारी कमी नक्सल संगठनों मेंहालांकि झारखंड में कभी आतंक का पर्याय बने नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की ताकत दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है. पुलिस की दबिश की वजह से ये संगठन हथियारों की जबरदस्त कमी से जूझ रहा है. हथियार और गोला बारूद की कमी के कारण नक्सली झारखंड में काफी हद तक खामोश हैं. झारखंड पुलिस पिछले तीन साल के दौरान चलाए अभियान में अब तक पुलिस के लूटे हुए 150 से अधिक हथियार नक्सली संगठनों से वापस बरामद किया है. इसके अलावा नक्सलियों के 500 से अधिक हथियार पुलिस ने जब्त किए हैं.पुलिस के 150 से अधिक हथियार बरामद साल 2018 में पुलिस से लूटे गए 61 हथियार मुठभेड़ के बाद बरामद कर लिए, जबकि साल 2019 में पुलिस से लूटे गए 27 हथियार भी बरामद किए गए. वहीं साल 2020 में अक्टूबर तक पुलिस के लूटे 25 हथियार दोबारा पुलिस ने बरामद कर लिए. 2018 से लेकर 2020 तक नक्सलियों के पास से 22 एके-47, 32 इंसास राइफल, 35 एसएलआर, 25 रेगुलर राइफल, 34 कार्बाइन, 46 पिस्टल, 5 एलएमजी और दो रॉकेट लांचर बरामद किया. यह सभी हथियार नक्सलियों ने पुलिस पिकेट पर हमला कर या फिर जवानों की हत्या कर लूटे गए थे.नक्सलियों के 100 से अधिक हथियार बरामदइसके अलावा पुलिस ने नक्सलियों के पास से उनकी खुद के खरीदे गए अवैध हथियारों को भी बड़े तादाद में बरामद किया है. हथियारों में कई विदेशी हथियार भी शामिल हैं. नक्सलियों के पास से पुलिस ने 5 अमेरिका निर्मित राइफल, 25 डबल बैरेल गन, 34 थ्री नाट थ्री राइफल, 14 पिस्टल, 10 सेमी ऑटोमेटिक राइफल, 12 रिवाल्वर, 65 देसी कट्टा बरामद किया है.

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तीन साल में 76 लाख रुपया भी बरामद
अभियान के दौरान पुलिस ने नक्सलियों को आर्थिक चोट भी दी है. नोटबंदी के बाद से ही नक्सली उससे उबर नहीं पाए. साल 2018 में पुलिस ने नक्सलियों के पास से 39 लाख, साल 2019 में 18 लाख और साल 2020 में अब तक 20 लाख रुपया जब्त किया है. नक्सली इन पैसों का प्रयोग हथियार खरीदने के लिए करने वाले थे लेकिन समय रहते पुलिस ने पैसे जब्त कर लिए.

कब-कब मिले विदेशी हथियार
- चतरा में भाकपा माओवादी अजय यादव के पास से मेड इन इंग्लैंड स्प्रिंग राइफल मिले थे.
- 2015 में लातेहार में आठ अमेरिकी राइफल मिले थे.
- 2011 में रांची में बूटी मोड़ के पास से पुलिस ने अमेरिकी रॉकेट लॉन्चर के साथ दो लोगों के गिरफ्तार किया था. यह हथियार अमेरिकी व पाकिस्तानी सेना इस्तेमाल करती थी. पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप को इसकी सप्लाई होनी थी.
- सिमडेगा और हजारीबाग में पाकिस्तानी कारतूस और अमेरिकी राइफल की बरामदगी हुई थी, इन मामलों की भी जांच एनआईए ने शुरू की थी.

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