रायपुर:छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का आतंक कोई आम बात नहीं है. शुरू से ही छत्तीसगढ़ नक्सलियों का गढ़ रहा है. हालांकि इस बीच एक अच्छी खबर आ रही है कि अब छत्तीसगढ़ का एक अति नक्सल प्रभावित जिला इस सूची से बाहर आ गया. वह जिला है कोंडागांव. कोंडागांव को नक्सल प्रभावित सूची से बाहर निकालकर आंशिक नक्सल प्रभावित सूची में डाल दिया गया है.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या प्रदेश में नक्सली घटनाओं में कमी आई है? क्या सरकार की योजनाओं का लाभ दुरस्त नक्सल प्रभावित जिलों तक पहुंच रहा है? जिस वजह से नक्सली कुछ क्षेत्र तक ही सीमित रह गए हैं. या फिर इसके पीछे कोई और वजह है. इन तमाम सवालों के जवाब के लिए हमने भाजपा, कांग्रेस सहित नक्सल एक्सपर्ट से संपर्क किया. आइए जानते हैं कि उन्होंने क्या कहा...
कांग्रेस ने इसे बताया अपनी सरकार की उपलब्धि: इस विषय में कांग्रेस का कहना है कि, पिछले 3 सालों में उनकी सरकार के द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों, नीतियों का ही नतीजा है कि कोंडागांव अति नक्सल प्रभावित जिले से बाहर आ सका है. कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने इसे कांग्रेस सरकार की एक बड़ी सफलता बताया है. उनका कहना है कि कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें यह बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद वारदातों में लगभग 82 फीसद की कमी आई है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार बनने के बाद एक मंत्र दिया था, " विश्वास, विकास और सुरक्षा". इस मंत्र को लेकर ही कांग्रेस सरकार आगे चलेगी. बस्तर में शांति बहाली को लेकर ठोस प्रयास किए जाएंगे. यदि आज बस्तर का एक महत्वपूर्ण जिला कोंडागांव अति नक्सल सूची से बाहर आता है तो यह सरकार की बड़ी सफलता है.
बीजेपी ने ये दावा किया: इस विषय में भाजपा किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के द्वारा किए गए विकास कार्यों की वजह से आज कोंडागांव अति नक्सल प्रभावित जिले की सूची से बाहर आया है. गौरीशंकर ने कहा कि भाजपा शासनकाल में छोटे-छोटे जिलों का निर्माण इसलिए कराया गया था कि वहां पर प्रशासन की मौजूदगी हो. लोगों तक विकास पहुंच सके. नक्सलवाद का सफाया हो सके. आज इसी का परिणाम है कि कोंडागांव अति नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से बाहर आया है. इसका श्रेय पूर्व की भारतीय जनता पार्टी की सरकार को जाता है. इस दौरान गौरीशंकर कांग्रेस सरकार पर यह आरोप लगाते नजर आये कि इस सरकार में मुंगेली, कवर्धा जैसे जिला भी अब नक्सल समस्या से अछूता नहीं है. यहां भी नक्सल धीरे-धीरे पैर पसार रहा है. सरकार के द्वारा नक्सल समस्या से निपटने को कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया है. ऐसे में कांग्रेस किस बात का श्रेय लूट रही है.
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हालांकि इस मामले में नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा का कहना है कि, केंद्र सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार कोंडागांव को अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र की सूची से बाहर किया गया है. इस बात में कई प्रकार की भ्रांतियां भी हैं. माओवादी क्षेत्रों की बात की जाए तो इन्हें माओवादी क्षेत्रों की घटनाओं के आधार पर तीन वर्गों में बांटा गया है. अत्यधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र रेड कॉरिडोर जोन में रखा जाता है. उससे कम को ऑरेंज जोन में रखा जाता है. जो मध्यम नक्सल प्रभावित क्षेत्र होता है और तीसरा आंशिक नक्सल प्रभावित जोन होता है. कोंडागांव को रेड जोन से ऑरेंज जोन में रखा गया है. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि कोंडागांव माओवादी प्रभावित क्षेत्र नहीं है.
वर्णिका ने आगे कहा कि इसे विडंबना कहें या फिर साक्ष्य की कसौटी...हमारे यहां पर किसी भी क्षेत्र में नक्सल की उपस्थिति या अनुपस्थिति इस बात पर आधारित होती है कि उस क्षेत्र में कितनी नक्सली घटनाएं हुई हैं. पिछले कुछ दिनों में कोंडागांव में नक्सली घटनाओं कि या तो रिपोर्टिंग नहीं हुई है, या डीसीआरबी और एनसीआरबी के द्वारा जो आंकड़े एकत्र हुए हैं. उसके आधार पर इन नक्सली वारदातों की उतनी गणना नहीं की गई. जितनी रेड कॉरिडोर जोन की होनी चाहिए थी. उस आधार पर कोंडागांव को ऑरेंज जोन में शिफ्ट किया गया है.
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