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सरकार की बेरुखी से तंगहाली में बीता नत्थू दादा का अंतिम वक्त ! - नत्थू दादा रायपुर

बौने कद काठी को अपना हथियार बनाकर मायानगरी में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाले नत्थू दादा भले दुनिया से बहुत दूर चले गए हों. लेकिन उन्होंने जाते जाते कई बड़े सवाल छोड़ दिए हैं. कला की आकाश में चमचमाते उन सितारों को शायद नत्थू दादा आज याद भी न हो जिनके साथ उन्होंने काम किया था. लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी की कसौटी पर कसा जाए तो वो बड़े नाम भी इस बौने कलाकार के सामने आज छोटे दिलवाले साबित हो रहे हैं.

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कई सवाल छोड़ गए नत्थू दादा

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Published : Dec 29, 2019, 2:44 PM IST

Updated : Dec 29, 2019, 3:08 PM IST

रायपुर: अपनी अदाकारी से दुनिया को हंसाने वाले नत्थू दादा बेहद खामोशी से दुनिया से विदा हो गए. करीब 150 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके इस सिने कलाकार का अंतिम वक्त बेहद संघर्ष और अभाव में बीता. राजनांदगांव के रामपुर गांव के रहने वाले रामटेके ऊर्फ नत्थू दादा ने राजकपूर की चर्चित फिल्म मेरा नाम जोकर से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में कई बड़े सितारों के साथ काम किया.

कई सवाल छोड़ गए नत्थू दादा

150 से ज्यादा फिल्मों में नत्थू दादा ने किया था काम

150 से ज्यादा हिंदी फिल्मों में काम कर चुके इस कलाकार के पास मुंबई से लौटने के बाद जो दौलत थी वो थी राजकपूर से सीखी अभिनय की बारीकी , दारासिंह के अभिनय की ताकत, धर्मेंद्र और राजकुमार से अभिनेताओं के साथ बिताए पल उनकी लाइफ स्टाइल के किस्से थे. इन बातों को समेटे नत्थू दादा अपने गांव लौट आए यहां उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मों के अलावा उड़िया, भोजपुरी सिनेमा में भी काम किया

अंतिम वक्त में नत्थू दादा को नहीं मिली कोई मदद

छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई कलाकार इतनी संख्या में हिंदी फिल्मों में काम किया हो और इतने बड़े सितारों के साथ रुपहले पर्दे पर अदाकारी के रंग बिखेरा हो..फिर भी हमारी सरकार और हमारे सिस्टम ने उन्हें भुला दिया.कुछ साल पहले तक नत्थू दादा ने राजनांदगांव नगर निगम की चौपाटी में दैनिक वेतन भोगी के तौर पर काम किया और महज 1500 रुपए के वेतन वाले इस काम को करने के लिए नत्थू दादा रोज लगभग 20 किलोमीटर साइकिल चलाते थे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी बॉलीवुड की चकाचौंध देख चुके नत्थूदादा की माली हालत कितनी खराब हो चुकी थी. उन्होंने कई बार ETV भारत के जरिए सरकार से मदद की दरकार जताई. लेकिन शासन और सत्ता ने उनकी आवाज को अनसुना कर दिया.

जाते जाते नत्थू दादा छोड़ गए कई सवाल

नत्थू दादा की इस तरह गरीबी में मौत, सरकार की उन तमाम योजनाओं पर भी सवाल खड़े करते हैं जो कि कलाकारों के हित में चलाए जाने का दंभ भरती है. नत्थू दादा इस दुनिया से रुखसत हो गए लेकिन उन्होंने जाते जाते ऐसे कलाकरों को लेकर सरकार और सिस्टम के सामने कई बड़े सवाल छोड़ गए जिनका जवाब तलाशना जरूरी है. ताकि कला के कद्रदानो की इस दुनिया में कोई भी कलाकार ऐसी मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर न हो सके.

Last Updated : Dec 29, 2019, 3:08 PM IST

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