रायपुर: हमारा राष्ट्रगान जन गण मन... महज छंदों के एक संग्रह में सिमट कर रह सकता था. लेकिन आयरिश महिला मार्गरेट कजिन्स ने इस संग्रह को धुन देकर इसे गीत में परिवर्तीत कर दिया. दरअसल, आंध्र प्रदेश के छोटे से शहर मदनपल्ले में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज परिसर में 99 साल पहले हुई यादगार घटना और भी अधिक संतुष्टिदायक है. यह कविता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने साल 1911 की शुरुआत में लिखी थी. पहली बार उसी साल 27 दिसंबर को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र में एक अलग धुन में इसे गाया गया था. फरवरी 1919 में मदनपल्ले कॉलेज में रवींद्रनाथ टैगोर की यात्रा के दौरान ही इस रचना के लिए एक नई धुन को तैयार किया गया था.
अपने पति के साथ आई भारत: मार्गरेट एलिजाबेथ कजिन्स एक आयरिश-भारतीय शिक्षाविद्, प्रत्ययवादी और थियोसोफिस्ट थीं. इन्होंने 1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की. वह कवि और साहित्यिक समीक्षक जेम्स कजिन्स की पत्नी थीं. जिनके साथ वो 1915 में भारत आई थीं.1916 में वो पूना में भारतीय महिला विश्वविद्यालय की पहली गैर-भारतीय सदस्य बनीं. 1917 में कजिन्स ने एनी बेसेंट और डोरोथी जिनाराजादास के साथ मिलकर महिला भारतीय संघ की स्थापना की. उन्होंने महिला भारतीय संघ की पत्रिका स्त्री धर्म का संपादन किया. 1919-20 में कजिन्स मैंगलोर में नेशनल गर्ल्स स्कूल की पहली प्रमुख बनीं. 1922 में वो भारत की पहली महिला न्यायाध्यक्ष बनीं. 1927 में उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-स्थापना की. 1936 में इसके अध्यक्ष के रूप में काम किया.