रायपुर: छत्तीसगढ़ में मातर मनाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के बाद के दिन मातर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व में गाय की पूजा (Cow Worship) की जाती है. छत्तीसगढ़ में यह पर्व मुख्य रूप से यदुवंशी (राउत, ठेठवार, पहटिया) समाज के लोगों की ओर से यह पर्व बड़े मनाया जाता है.
छत्तीसगढ़ में क्यों है खास मातर पर्व? 100 साल से मनाया जा रहा है मातर
शनिवार को पुरानी बस्ती में राज ठेठवार परिवार की तरफ से मातर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया. डॉ. रेवाराम यदु ने बताया मातर पूर्वजों की ओर से जंगल में जाकर इस कार्य को किया जाता था. जंगल में कोई नहीं होने के कारण 1 देवी देवता की जरूरत होती थी. इस कार्य को पूरा करने के लिए फूडहर देवता की पूजा की जाती है. यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही. इस दिन गाय के बछड़े की पूजा की जाती है.
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नवीन कुमार यदु ने बताया हर साल मातर उल्लास के साथ मनाया जाता है. मुख्यता गौवंश के संवर्धन और पालन को जोड़ते हैं. यह पर्व कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति से संबंध रखता है. इस दिन गौवंश के संवर्धन पर ज्यादा जोर दिया जाता है.
वहीं गजेश यदु ने बताया कि दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है. जिसमें अन्नकूट के साथ गायों की पूजा होती है. भाई दूज के दिन ठेठवार समाज के लोगों की तरफ से मातर का उत्सव मनाया जाता है. मातर का पर्व आज से शुरू होता है. इस दौरान सभी स्वजाति बंधु एक दूसरे के घरों पर जाते हैं और देवता धामी में भी पूजा-अर्चना होती है. साथ ही गाजे बाजे के साथ दोहा पढ़ते हुए यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.