रायपुर : एक पिता के लिए अपनी कन्या का पानीग्रहण करना या कन्यादान करने का सौभाग्य प्राप्त करना बहुत ही सुखद अनुभव होता है. इस पुण्य के आगे बहुत सारे पुण्य कार्य पीछे रह जाते हैं. कन्यादान का सौभाग्य मिलने पर कई जन्मों के पाप कट जाते हैं. ऐसी मान्यता है, लेकिन जब किसी कन्या के विवाह में अड़चनें और तकलीफें आती हैं तो उसी पिता का मन दुखी हो जाता है. ऐसे समय में कुमारी कन्या को अपने सुयोग्य पति की प्राप्ति के लिए महाशिवरात्रि व्रत का पालन करने में शिव की प्रसन्नता की प्राप्ति होती है. इसके फलस्वरूप कुंवारी कन्या को अच्छे वर की प्राप्ति हो जाती है. इस वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चौदस तिथि को शुभ महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाएगा.
विवाह की अड़चनें दूर करते हैं बाबा भोलेनाथ अनादि शंकर भगवान भोलेनाथ की पूजा-उपवास का है विधान
आज के दिन अनादि शंकर भोलेनाथ जी की पूजा-पाठ और व्रत-उपवास का विधान है. आज के शुभ दिन भवानी शंकर जी का भरपूर श्रृंगार किया जाता है. नए-नए वस्त्र, बर्फ की सिल्लियां, आम के पत्ते और केले के पत्ते आदि से मंदिर भवन को सजाया जाता है. आज के शुभ दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाना, गंगा जल चढ़ाना, दूध, पंचामृत और गन्ने के रस से अभिषेक करना बहुत शुभ माना गया है. इस पवित्र मौके पर कुंवारी कन्याएं शिव के लिए जब उपवास, व्रत और योग साधना करती हैं तो माता पार्वती और भोलेनाथ जी संयुक्त रूप से कुंवारी कन्या के विवाह की अड़चनों को निश्चित ही दूर कर देते हैं.
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एकाशना निराहार या फलाहार रहकर किया जाता है उपवास
आज के शुभ दिन एकाशना निराहार या फलाहार रहकर उपवास करने का विधान है. प्रातः काल में सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान से निवृत्त होकर भगवान भोलेनाथ जी को तिलक, चंदन, अक्षत, बेलपत्र, शमी पत्र, आक का फूल-धतूरा आदि अर्पित किया जाता है. महामृत्युंजय मंत्र का पाठ माता पार्वती के विशिष्ट मंत्रों का पाठ ओम नमो भगवते वासुदेवाय और गायत्री मंत्र से शिवलिंग का अभिषेक करने पर शिव शंकर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि सती रूप में शिव जी ने जब माता सती को खो दिया था, उसके बाद अगले जन्म में माता पार्वती ने हजारों वर्ष की तपस्या उपवास और साधना की, तब जाकर भगवान शिव उन्हें प्राप्त हुए. महाशिवरात्रि के शुभ दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था.
रुद्र ने माता पार्वती को दिया था अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद
ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती शिव को प्राप्त करने के लिए वन-वन तप करने लगीं और कंदमूल वृक्षों के पत्ते आदि खाकर अपनी साधना को निरंतर करती रहीं. एक समय ऐसा भी आया जब माता पार्वती ने अन्न-जल सहित सभी चीजों को पूर्णतया त्याग दिया. हजारों वर्षों की इस महानतम तपस्या को देखते हुए रुद्र ने माता पार्वती को अखंड सौभाग्यवती होने का और अपने साथ विवाह करने का आशीर्वाद प्रदान किया.
महाशिवरात्रि के व्रत में निशीथ काल का खास महत्व
महाशिवरात्रि के व्रत में निशीथ काल का बहुत महत्व है. 1 मार्च को निशीथ काल मध्य रात्रि 11:51 से लेकर मध्य रात्रि 3:55 तक रहेगा. यह तंत्र सिद्धि मंत्र सिद्धि आदि के लिए विशेष माना गया है. यदि कोई जातक इस निशीथ काल में शिव की पूजा-अर्चना करता है तो उसके कार्य सिद्ध हो जाते हैं. वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पड़ती है और हर महीने कृष्ण पक्ष की चौदस तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है. कुंवारी कन्या को शीघ्र विवाह के लिए प्रत्येक मास की शिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा-अर्चना और उपवास करना चाहिए.
इसके साथ ही प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए. श्रद्धापूर्वक आस्था के साथ यह कार्य करने पर कुंवारी कन्या को निश्चित तौर पर शिव के समान दुर्लभ गुणों से युक्त अच्छे वर की प्राप्ति होती. अनादि काल से यह प्रयोग किया जाता रहा है. शिवरात्रि पर्व में रात्रि जागरण, निशीथ काल में पूजा-उपवास, ध्यान और योग का विशेष महत्व है. योग के आदि गुरु भगवान शिव ही माने जाते हैं.