रायपुर/हैदराबाद:सोमवार का दिन हिन्दू धर्म परंपराओं में भगवान शिव (Lord Shiv Puja) की भक्ति को समर्पित है. वैसे तो शिव भक्ति हर रोज, हर पल ही शुभ होती है, लेकिन सोमवार के दिन ही शिव पूजा का विशेष महत्व माना गया है. हर व्रत के जैसे ही शिव व्रत के भी कुछ नियम होते हैं. अगर इनका पालन पूरे मनोयोग से करें तो कहा जाता है कि मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए. अगर संभव हो तो व्रत वाले दिन शिव भगवान के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल व दूध चढ़ाकर व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए और हां शाम को कथा जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए.
सोमवार को भगवान भोलेनाथ की व्रत विधि और नियम: सोमवार के व्रत तीन प्रकार के है- साधारण प्रति सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार - विधि तीनों की एक जैसी होती है. सोमवार का व्रत साधारणत: दिन के तीसरे पहर तक होता है. व्रत मे फलाहार या पारण का कोई विशेष नियम नहीं है. दिन रात में केवल एक समय भोजन करें. इस व्रत मे शिवजी पार्वती का पूजन करना चाहिए. शिव पूजन के बाद कथा (Shiv katha significance) अवश्य सुननी चाहिए. क्योंकि इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है. शाम को पूजा के बाद व्रत खोल लें. वहीं शास्त्रों के अनुसार सावन सोमवार व्रत में तीन पहर तक उपवास रखकर उसके बाद व्रत खोलना चाहिए, मतलब एक समय ही भोजन करना चाहिए.
इस तरह करें शिवजी की पूजा-अर्चना:
- सोमवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं
- फिर पूजा घर में जाए या फिर मंदिर जाएं
- शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चंदन, चावल अर्पित करें
- फिर शिवजी को घी, शक्कर या प्रसाद का भोग लगाएं
- शिवजी को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं
- भगवान शिव के पूजन के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें:भगवान शिव को महामृत्युंजय मंत्र सबसे ज्यादा प्रिय है. सोमवार को पूजा के दौरान 108 बार महामृत्युंजय मंत्र के जाप से समस्त कष्ट कट जाते हैं. कहा जाता है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने वाले पर कभी कोई मुसीबत नहीं आती है. इसके अलावा भगवान शंकर खुद उसकी रक्षा करते हैं.
भूल कर न चढ़ाएं ये चीजें:भगवान शंकर की पूजा के दौरान कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना होता है. जिस तरह सभी भगवान के अलग-अलग पुष्प और प्रसाद प्रिय हैं, ठीक उसी तरह शिव की पूजा के दौरान भी इस बात का ध्यान रखना होता है. मान्यता है कि भगवान शिव को तुलसी के पत्ते और शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है. तिलक के लिए हमेशा चंदन का इस्तेमाल करें, हल्दी या कुमकुम शिवलिंग पर न चढ़ाएं.
शिव कथा:एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन कोई संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था. संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था. उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया. पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति देखकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की. माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन उन्होंने बताया कि यह बालक 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा.
माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था, इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख. वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा. कुछ समय के बाद साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया. साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ.
तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना. दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े. इस दौरान रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया.
साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात सही नहीं लगी इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है. मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं.’ जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई. दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया.
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जिस दिन लड़का 12 साल का हुआ उस दिन भी यज्ञ का आयोजन था लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो. शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए. मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा, आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें.