रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण विधेयक सर्व सम्मति से पारित हो गया है. अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, ओबीसी वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. आरक्षण विधेयक में संशोधन कर सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन जानकारों का कहना है कि इसकी राह आसान नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि "सरकार ने जो विधेयक पारित कराया है, उसके साथ कई तकनीकी अड़चने हैं. जो इसे कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं."
नये कानूनों के साथ कानूनी अड़चने भी जुड़ी:संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है "सरकार ने जो विधेयक पारित कराया है, उसके साथ कई तकनीकी अड़चने हैं. जो इसे कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं. अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण तय किया गया है. यह 1992 में आए मंडल फैसले और 2022 में ही आए पीएमके (तमिलनाडु) बनाम माईलेरुमपेरुमाल फैसले का उल्लंघन है. OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला 42 साल पुरानी मंडल आयोग की केंद्र शासन अधीन सेवाओं पर दी गई सिफारिश पर आधारित है. यह भी 2021 में आए मराठा आरक्षण फैसले का उल्लंघन है."
आगे बताया "कुल आरक्षण का 50 प्रतिशत की सीमा से बहुत अधिक होना भी एक बड़ी पेचीदगी है. अनुसूचित क्षेत्र को इस बार विशिष्ट परिस्थिति के तौर पर पेश किया गया लेकिन वर्ग एक और दो की नौकरियों में अनुसूचित क्षेत्रों की कोई अलग हिस्सेदारी ही नहीं है. यह 1992 के मंडल फैसले का उल्लंघन है. प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकड़े विभाग-श्रेणीवार जमा किए गए हैं न कि काडरवार. यह भी मंडल फैसले और 2022 के जरनैल सिंह फैसले का उल्लंघन है."
छत्तीसगढ़ विधानसभा में नया आरक्षण विधेयक सर्वसम्मति से पास, राज्यपाल को भेजा गया बिल