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आखिर क्यों केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपनी नुमाइंदगी बढ़ाने में नाकाम रहता है छत्तीसगढ़ ?

केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार हुआ है. मंत्रिमंडल में कई राज्यों से नए चेहरों को मौका दिया गया है. लेकिन बीजेपी का गढ़ होने के बावजूद छत्तीसगढ़ से किसी सांसद को कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. ETV भारत परत दर परत सियासी पहेली को समझाने की कोशिश कर रहा है. आखिर क्यों छत्तीसगढ़ ,केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपनी नुमाइंदगी नहीं बढ़ा पा रहा है.

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केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार

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Published : Jul 7, 2021, 10:37 PM IST

रायपुर: हमारी खबर की हेडिंग छत्तीसगढ़ की सियासत की अबूझ पहेली बनती जा रही है. आज वाकई एक सवाल बन प्रदेश में कई लोगों की जुबान पर है. आज मौका कांग्रेस के हाथ था. उसने छत्तीसगढ़ बीजेपी के बहाने मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार पर बीजेपी को घेरा. कांग्रेस ने सवाल दागे कि आखिर क्यों छत्तीसगढ़ को इस मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई.

लगातार जीत के बावजूद छत्तीसगढ़ के नेताओं को कैबिनेट में जगह नहीं

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही हर लोकसभा चुनाव में भाजपा को बंपर सीट मिलती रही है. साल 2000 में राज्य बनने के बाद ये पहली बार था जब 2019 में कांग्रेस को एक साथ दो सीट जीतने में काबयाबी मिली. 2004, 2009 और 2014 के चुनावों में यहां से कांग्रेस को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा. वो कभी महासमुंद तो कभी कोरबा तो कभी दुर्ग की सीट रहती थी. लेकिन इस बार पार्टी ने बस्तर और कोरबा दो लोकसभा सीट में जीत हासिल की है. यानी कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनावों के मामले में भाजपा का मजबूत गढ़ है. लेकिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की बात करें तो मोदी सरकार की पिछली पारी में विष्णुदेव साय के रूप में एक नाम शामिल था. वो भी राज्यमंत्री के पद पर थे. इस पारी में भी रेणुका सिंह राज्यमंत्री का नाम शामिल है. एक भी कैबिनेट मंत्री पद पर छत्तीसगढ़ से शामिल नहीं हैं.

दिल्ली में नहीं गल रही दाल

इस चुनाव में भाजपा ने अपने सभी पुराने चेहरों को बदलकर चुनाव लड़ा था. इसलिए भी इन नए नामों का कैबिनेट में जाने की उम्मीद कम ही थी. फिर भी राज्यमंत्री के तौर पर शामिल कराए जाने की उम्मीद थी. वहीं सरोज पांडेय और रामविचार नेताम जैसे वरिष्ठ नेता जो राज्यसभा से नुमाइंदगी कर रहे हैं. उन पर भी दांव लगाया जा सकता था. इनके पास संगठन और सत्ता की सियासत का खासा तजुर्बा भी है, लेकिन वे भी दिल्ली में अपनी दाल गलाने में नाकाम रहे.

मनमोहन सरकार में नहीं मिला था पर्याप्त प्रतिनिधित्व

भले ही आज कांग्रेस मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़िया चेहरा तलाश रही है, लेकिन कुछ यही हाल मनमोहन सिंह की सरकार में भी था. जब तमाम दिग्गजों की मौजूदगी के बावजूद 10 साल में प्रदेश से सिर्फ एक नाम मंत्री बन सका वो था नाम था डॉ चरणदास महंत का. जबकि 2004 से 2009 तक अजीत जोगी भी सांसद थे. मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, समेत कई ऐसे नेता थे जिनके पास पहले भी केंद्रीय मंत्री और बड़े पदों पर रहने का अनुभव था. लेकिन मनमोहन सिंह इन्हें अपने सिपहसालार के तौर पर नहीं देख पाए थे. ऐसे में हमारा सवाल वहीं ठहरा हुआ है कि आखिर इसकी वजह क्या है. क्यों छत्तीसगढ़ से केंद्रीय मंत्रिमंडल में ज्यादा नेताओं को जगह नहीं मिल पाती.

इन समीकरणों में तलाशते हैं उत्तर

छत्तीसगढ़ के निर्माण के वक्त प्रदेश से तीन मंत्री अटल सरकार में शामिल थे. इनमें डॉ रमन सिंह, रमेश बैस और दिलीप सिंह जूदेव का नाम शामिल था. लेकिन 2004 में जब चुनाव हुआ तो एनडीए की सरकार की विदाई हो गई. दिल्ली की कुर्सी पर डॉ मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए की सरकार बन गई. लेकिन प्रदेश से सांसद 11 में से 10 भाजपा के चुने गए. एकमात्र लोकसभा सीट जीतने वाले अजीत जोगी भी सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

इसी तरह 2009 में एक बार फिर यूपीए की सरकार गठित हुई. लेकिन चुनाव सिर्फ चरणदास महंत ही जीत पाए थे. और उन्हें ही मंत्री बनाया गया. लेकिन कुछ और बड़े नेता उस वक्त मौजूद थे उन्हें कांग्रेस आलाकमान ने तरजीह नहीं दी. शायद इसकी वजह राज्य में लगातार कांग्रेस को मिल रही हार भी हो सकती है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत रही थी. इसके अलावा भले ही केंद्र में यूपीए सरकार बना रही थी. लेकिन छत्तीसगढ़ में सांसद ज्यादा भाजपा के चुने गए.

चुनाव हो सकता है बड़ा फैक्टर

क्यों भाजपा आलाकमान ने अपने इस गढ़ के किसी नेता को केंद्रीय मंत्रिमंडल से दूर रख रहा है. इसका जवाब अभी भी नहीं मिल पा रहा है. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि आजकल मंत्रिमंडल गठन में खास ध्यान दिया जा रहा है कि किस राज्य में चुनाव होने वाले हैं. छत्तीसगढ़ में चुनाव लोकसभा चुनाव के ठीक पहले होता है. इसलिए भी हो सकता है कि भाजपा अभी इसकी चिंता नहीं कर रही हो.

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