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कहीं सूखा, तो कहीं बाढ़, जल्द नहीं उठाए कदम तो बदतर हो सकते हैं हालात

वाटर हार्वेस्टिंग नहीं होने की वजह से प्रदेश के कई जिले सूखे की चपेट में आ रहे हैं.

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Published : Jul 19, 2019, 4:34 PM IST

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रायपुर: ये बात सुनने में अजीब जरूर लगेगी, लेकिन यह सच है कि भारत समेत छत्तीसगढ़ में बारिश के मौसम में एक क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति होती है, जबकि दूसरे क्षेत्रों में भयंकर सूखा होता है. अगर बात करें छत्तीसगढ़ की तो प्रदेश का एक हिस्सा ऐसा है, जहां लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते नजर आते हैं. कई जगह तो संघर्ष तक के हालात बन जाते है.

इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह से कि हम अमृत के समान पानी को इकट्ठा करने या कहें कि, वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर कई ठोस कदम नहीं उठाते हैं. बता दें कि छत्तीसगढ़ के गिरते जल स्तर को लेकर केंद्रीय भूजल सर्वेक्षण विभाग ने भी चिंता जताई है. छत्तीसगढ़ देशभर में 21 ब्लॉक क्रिटिकल जोन में आता है.

तेजी से नीचे जा रहा जलस्तर
जिस तरह से गर्मी के दिनों में सूखे की वजह से पेयजल की किल्लत होती है, वहीं बारिश के मौसम में बाढ़ से लोग हलाकान रहते हैं. केंद्रीय भूजल विभाग के साथ ही नीति आयोग की रिपोर्ट में जल प्रबंधन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारी निकलकर आयी है. रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के जल प्रबंधन पर चिंता जताई गई है. छत्तीसगढ़ को 50 से भी कम नंबर मिले हैं. छत्तीसगढ़ राज्य में भूजल स्तर हर साल औसत 2 मीटर नीचे जा रहा है, शहरी इलाकों में हालात और खराब हैं.

रेन वॉटर हार्वेटिंग है बेहद कारकर
केंद्रीय भू जल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार रायपुर में पिछले 10 सालों में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिरा है. वहीं बारिश में बेवजह बहने वाले पानी को सहेजने के लिए भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों को भी सेंट्रल ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने बेहद कारगर बताया है.

कागजों पर चल रहा काम
लगातार हो रहे पानी के अंधाधुंध दोहन के बाद बारिश के पानी को सुरक्षित करने और इस्तेमाल करने के लिए राज्य सरकार की और से भवन और घरों में वॉटर हार्वेस्टिंग बनाने के लिए तमाम आदेश पारित किए गए हैं. इसके अलावा नए भवन और मकानों के नक्शे में वॉटर हार्वेस्टिंग निर्माण के लिए अनुमति अनिवार्य तो कर दी गई है, लेकिन इसका पालन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी केवल कागजों में ही कर रहें हैं.

नगर निगम का आदेश बेअसर
आलम यह है कि वाटर लेबल अब डेंजर जोन के नजदीक पहुंच चुका हैं. जिसकी वजह से नगरवासियों की धड़कन बढ़ी हुई है. इसके लिए हाल ही में नगरीय प्रशासन विकास विभाग की विशेष सचिव ने सभी जिलों के कलेक्टर, आयुक्त, नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत को पत्र लिखकर सभी शासकीय, अर्धशासकीय और निजी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग का काम अनिवार्य रूप से किए जाने के संबंध में आदेश दिया था. लेकिन इसका असर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.

नगर निगम ने जारी किया टेंडर
अकेले रायपुर शहर में पिछले पांच साल में बने हजारों मकानों से निगम ने इस मद में 12 करोड़ लिए हैं, लेकिन पड़ताल में यह बात सामने आई है कि 'ज्यादातर लोगों ने अपने यहां सिस्टम नहीं लगवाया. इसलिए निगम अफसरों ने फैसला लिया है कि जमा की गई रकम से नगर निगम की टीम ने लोगों के घर पहुंचकर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का टेंडर जारी किया गया है.

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए उठाए कदम
ऐसा नहीं है कि पूरे शहर में लोगों ने इस ओर कदम नहीं उठाया है. शहर के कई इलाकों में रहने वाले लोगों ने सरकारी इमारतों में रेन वॉटर हार्वेटिंग को कदम जरूर उठाए गए हैं. ETV भारत की टीम ने ऐसे ही घरों का जायजा लिया.

तेजी से बिगड़ रहा संतुलन
हलांकि कुछ सरकारी इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर कदम जरूर उठाए गए हैं. लेकिन कनेक्टिविटी की वजह से वो नाकाफी लगते हैं. हमने प्रकृति के अनमोल तोहफे के तौर पर मिलने वाले पानी का जमकर मिसयूज किया और इसे संग्रहित करने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए, इसका नतीजा यह हुआ कि प्रकृति का संतुलन बड़ी तेजी से बिगड़ रहा है.

भयानक हो सकते हैं हालात
अगर जल्द इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में इसके परिणाम कितने भयानक होंगे इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.

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