रायपुर: राजधानी के टाटीबंध में दूसरे राज्यों से आए मजदूर इकट्ठा हो रहे हैं. इन मजदूरों को शासन-प्रशासन बसों के जरिए छत्तीसगढ़ की सीमा तक भेज रहा है, लेकिन जिन बसों से श्रमिकों को दूसरे शहर या राज्य के बॉर्डर तक भेजा जा रहा है, उन बसों के ड्राइवर और कंडक्टर को क्वॉरेंटाइन करने या स्वास्थ्य परीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है.
मामले में ETV भारत ने कुछ बस ड्राइवर्स से बात की. मजदूरों को छत्तीसगढ़ की सीमा तक छोड़ने वाले इन ड्राइवरों ने बताया कि मजदूरों को छत्तीसगढ़ सीमा या किसी गंतव्य तक छोड़ने के लिए उन्हें हर दिन 500 रुपए दिया जाता है. इसके साथ ही प्रशासन ने ड्राइवर और कंडक्टर के खाने-पीने की व्यवस्था भी की है, लेकिन उनके स्वास्थ्य को लेकर जांच की कोई व्यवस्था नहीं है.
ड्राइवर्स को गांव में एंट्री नहीं
ड्राइवर्स ने बताया कि वे रोज सैकड़ों मजदूरों को लेकर रायपुर के टाटीबंध से निकलते हैं और वापस कुछ मजदूरों को लेकर रायपुर आ जाते हैं. अगले दिन फिर वही काम करते हैं, लेकिन इन सबके बाद भी प्रशासन ने उनके क्वॉरेंटाइन में रहने के लिए किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की है. इधर जब ड्राइवर या कंडक्टर अपने गांव जाते हैं, तो वे भी उन्हें वहां रहने देने से मना करते हैं. इसके कारण वे अपने गांव भी नहीं जा पा रहे हैं.
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रोजाना 50 बसें होती हैं रवाना
आंकड़ों की बात की जाए, तो रायपुर टाटीबंध से रोज 50 बसें राजनांदगांव, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा तक श्रमिकों को लेकर जाती हैं. जिसमें से हर एक बस में 40 मजदूर रहते हैं. इनमें से ज्यादातर मजदूर ओडिशा और झारखंड के रहने वाले हैं. रोजाना लगभग 2 हजार से ढाई हजार मजदूरों को रायपुर से दूसरे शहर या राज्य की सीमा भेजा जाता है.