रायपुर: देवी दुर्गा की आराधना का यह पर्व दुर्गा उत्सव के नाम से भी जाना जाता है. बंगाली समाज में दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है. प्रमुख रूप से ये पर्व शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि से शुरू होता है.
बंगालियों के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा की खास बातें इस दुर्गा पूजा उत्सव में षष्ठी, सप्तमी, महाअष्टमी, नवमी और विजयादशमी का विशेष महत्व है.
जानिए महालय का महत्व
दुर्गा उत्सव शुरू होने के एक हफ्ता यानी 7 दिन पहले 'महालय' होता है. इस दिन पितृों को तर्पण करने का विधान होता है. इस बार महालय 28 सितंबर को मनाया जाएगा. महालय में बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मां दुर्गा पर्व को दर्शाती है इसलिए दुर्गा पूजा पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर भी जाना जाता है.
सुख समृद्धि के लिए अच्छा भोजन और पहनावा जरूरी
हर वर्ग चाहे वह अमीर हो या गरीब, घर का रंग-रोगन, नए कपड़े, अच्छे पकवान बनाये जाते हैं. अच्छे पकवानों में मांसाहार शामिल रहता है. बंगाली समाज के लोगों का कहना है कि इस दिन को अच्छा खाना-पहनना चाहिए ताकि वर्ष भर यूं ही समृद्धि बनी रहे.
मान्यता ये भी है कि दुर्गा पूजा के समय स्वयं देवी दुर्गा अपने चार बच्चों देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ कैलाश छोड़ धरती पर अवतरित होती हैं. इस दौरान मां अपने भक्तों को धन-समृद्धि-ऐश्वर्य देकर और तकलीफों को लेकर वापस कैलाश जाती हैं.
पढ़ें- रायपुर : सज रहा मां महामाया का दरबार, सेवा में लगे हैं श्रद्धालु
जाने दुर्ग पूजा के 5 तिथियों का महत्व
- कहा जाता है कि देवी दुर्गा षष्ठी तिथि को धरती पर आई थीं. षष्ठी के दिन बिल्व निमंत्रण पूजन, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण की परंपरा है.
- सप्तमी पर नवपत्रिका पूजा की जाती है. महाष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है.
- महाष्टमी पर संधि पूजा होती है. यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है. संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधिक्षण कहते हैं. बस यहीं से मां की कैलाश वापसी का समय नजदीक आता है.
- दशमी के मौके पर दुर्गा विसर्जन, विजयदशमी और सिंदूर उत्सव मनाया जाता है.