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जोगी मॉडल ऑफ मेडिकल एजुकेशन की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने की थी तारीफ, वह शिक्षा आज क्यों है बंद ?

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और सुदूर इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तत्कालीन जोगी सरकार ने 'जोगी मॉडल' (Jogi model of medical education) शुरू किया था. इस जोगी मॉडल के तहत 12वीं पास छात्रों को 'प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न होलिस्टिक मेडिसिन' (practitioner in modern medicine holostik) की डिग्री दी गई. डिग्री लेने के बाद ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इनकी ड्यूटी लगाई गई. हालांकि रमन सरकार के आने बाद जोगी मॉडल को बंद कर दिया गया. अब कोरोना महामारी के बीच एक बार फिर इस 'जोगी मॉडल' (Jogi model) को शुरू करने की चर्चा होने लगी है.

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जोगी मॉडल

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Published : Jun 6, 2021, 3:39 PM IST

Updated : Jun 6, 2021, 7:37 PM IST

रायपुर:कोरोना काल में जब छत्तीसगढ़ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है तो एक बार फिर 'जोगी मॉडल ऑफ मेडिकल एजुकेशन' (Jogi model of medical education) की चर्चा होने लगी है. तत्कालीन अजीत जोगी सरकार में शुरू हुए 'जोगी मॉडल' (Jogi model) का विरोध उनकी खुद की पत्नी और वर्तमान में JCCJ की अध्यक्ष रेणु जोगी ने भी किया था, लेकिन अब रेणु जोगी इसे ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं के नजरिए से काफी कारगर बता रही है. बीते दिनों इस मॉडल को पूरे देश में लागू करने के लिए उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन (Union Health Minister Dr Harsh Vardhan) को पत्र भी लिखा था. जिस पर केंद्रीय मंत्री ने भी प्रतिक्रिया दी थी. आखिर क्या है 'जोगी मॉडल ऑफ मेडिकल एजुकेशन' (Jogi model of medical education) और इसे क्यों बंद कर दिया गया ? ये जानने की कोशिश ETV भारत ने की.

क्या है मेडिकल एजुकेशन का जोगी मॉडल

साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण (Formation of Chhattisgarh State) हुआ, उस वक्त प्राकृतिक रूप से अमीर इस राज्य में विकास और अधोसंरचना के मामले में बहुत ज्यादा पिछड़ापन था. पूरे प्रदेश में सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज रायपुर (Medical College Raipur) में स्थित था. जाहिर सी बात है कि छोटे शहरों, ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की बहुत ज्यादा कमी थी. आज जब सड़कें और कनेक्टिविटी के तमाम संसाधन उपलब्ध है. तब भी ज्यादातर डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवा देने से कतराते हैं. बीते दिनों भी इसी तरह का मामला सामने आया तब स्वास्थ्य विभाग की तरफ से उन्हें ग्रामीण इलाकों में जल्द से जल्द ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने पर ऐसे डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन खत्म करने की चेतावनी दी गई. जब आज ये स्थिति है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि 20 साल पहले छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के समय क्या स्थिति रही होगी.

जोगी मॉडल: 3 साल का मेडिकल पाठ्यक्रम

प्रदेश में इसी कमी को दूर करने के लिए तत्कालीन अजीत जोगी सरकार (Ajit Jogi government) ने एक अनूठा फैसला करते हुए 3 साल का मेडिकल पाठ्यक्रम (3 years medical course) बनाया और इसके लिए प्रदेश में जगदलपुर, अंबिकापुर, कटघोरा, कवर्धा, कांकेर, पेंड्रा रोड में मिनी मेडिकल कॉलेज (mini medical college in chhattisgarh) खोले.

12वीं पास छात्रों के लिए3 साल का मेडिकल कोर्स

12वीं पास स्टूडेंट को 'जोगी मॉडल' के 3 साल के मेडिकल कोर्स के लिए काउंसलिंग कर चयन किया जाता था. उस समय इस कोर्स को लेकर काफी चर्चा देशभर में हुई थी. इस त्रिवर्षीय मेडिकल कोर्स में प्रदेश भर से 2400 छात्रों ने एडमिशन लिया था. हालांकि सत्ता बदलने के बाद इस कोर्स का शुरू से विरोध कर रही भाजपा ने इसे बंद कर दिया. कई छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया था. डॉक्टर बनने का ख्वाब पाले सैकड़ों युवा खुद को ठगा महसूस कर रहे थे. इनमे से कई छात्रों ने पढ़ाई पूरी कर एक साल का इंटर्नशिप भी जिला अस्पताल में किया था. लेकिन बाद में डॉ रमन सिंह की सरकार ने इन्हें स्वास्थ्य सेवा में शामिल कराया. जोगी मॉडल के जरिए 3 साल का मेडिकल कोर्स करने वाले 1350 युवाओं को ग्रामीण चिकित्सा सहायक के रूप में पदस्थ किया.

ग्रामीण स्वास्थ्य सहायकों ने गांवों की सेहत सुधारी

छत्तीसगढ़ के सुदूर ग्रामीण इलाकों में आज स्वास्थ्य सेवा की बागडोर सही मायनों में इन्हीं ग्रामीण स्वास्थ्य सहायकों ने संभाली है. इसका सीधा असर भी अब दिखने लगा है. इनकी नियुक्ति से पहले जहां 1000 हजार में 80 नवजातों की मृत्यु हो जाती थी, वहीं अब इसमें 50 फीसदी का सुधार देखा जा रहा है. इसी तरह संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी, मृत्युदर में कमी कराने में इनकी बेहद अहम भूमिका है. आज कोरोना काल में भी इन्होंने मोर्चा संभाल रखा है. इस तरह से कह सकते हैं कि मेडिकल का ये जोगी मॉडल काफी सफल रहा है, लेकिन कई तकनीकी कारणों से ये आगे नहीं बढ़ पाया.

कोरोना काल में ग्रामीण चिकित्सा सहायक दे रहे सेवा

3 साल का मेडिकल कोर्स कर गांवों में अपनी सेवा दे रहे ग्रामीण चिकित्सा सहायक (rural medical assistant) सुरेंद्र साहू का कहना है कि उन्होंने भी 'प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न होलिस्टिक मेडिसिन' का कोर्स किया. सुरेंद्र बताते हैं कि इस कोर्स में वे सभी सब्जेक्ट थे जो MBBS के कोर्स में है. सिर्फ फॉरेंसिक साइंस इस कोर्स में नहीं थी. इन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से इसकी परीक्षा दिलाई. कोर्स के बाद एक साल तक छात्रों ने सरकारी अस्पतालों में निशुल्क सेवाएं दी. साल 2008 में इनकी पदस्थापना हुई.

सुरेंद्र साहू का कहना है कि इनकी पदस्थापना बस्तर संभाग के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में की गई. वे बताते हैं कि इनकी पदस्थापना के बाद कई बंद पड़े प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को शुरू किया गया. उन्होंने बताया कि वर्तमान में 1350 ग्रामीण चिकित्सा सहायक (rural medical assistant) कार्यरत हैं. जिनमें से 650 नियमित और 700 संविदा के जरिए इस कोरोना काल में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. समय-समय पर स्किल बढ़ाने के लिए अपग्रेड कोर्स कराने की भी तैयारी थी, लेकिन ये नहीं हो पाया. जो युवा सुदूर इलाकों में तैनात हैं उन्हें ग्रामीण अंचलों में काफी सम्मान भी मिल रहा है.

'प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न होलिस्टिक मेडिसिन' गांवों के लिए उपयुक्त: अमित जोगी

JCCJ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जोगी मॉडल को शुरू किया गया. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों के स्टूडेंट्स को 'प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न होलिस्टिक मेडिसिन' (Practitioner in Modern Holistic Medicine) की डिग्री दी जाती थी. इस डिग्री के बाद वे भी एक तरह के डॉक्टर थे. अजीत जोगी की सरकार जाने के बाद रमन सिंह की सरकार आई और इस जोगी मॉडल को बंद करवा दिया गया. अमित जोगी ने बताया कि इस कोर्स को बंद करने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में इसे चुनौती भी दी गई. जिसमें हाईकोर्ट ने भी माना कि 'प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न होलिस्टिक मेडिसिन' (Practitioner in Modern Holistic Medicine) ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उपयुक्त है.

'प्रदेश में डॉक्टरों की कमी नहीं'

मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि 20 साल पहले की परिस्थिति में इस तरह के कोर्स को जायज ठहराया जा सकता था. छतीसगढ़ मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ राकेश गुप्ता बताते है कि उस दौर में प्रदेश में एक ही मेडिकल कॉलेज था. लेकिन आज इनकी संख्या 7 है. जिससे अब MBBS डॉक्टरों की कमी नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में बीते दिनों 700 डॉक्टरों की वैकेंसी के लिए 4 हजार से ज्यादा आवेदन आए थे. जिससे ये बात साफ हो गई है कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी नहीं है. हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार को PG सीट को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम NMC गाइडलाइन में नहीं आता है. इसी वजह से कानूनन रूप में केंद्र और राज्य सरकार इसको मान्यता नहीं दे सकती.

शुरू में रेणु जोगी ने भी किया था विरोध !

अजीत जोगी ने अपनी आत्मकथा 'सपनों के सौदागर' में इस बात का जिक्र किया था कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए वे जब इस तरह का कोर्स शुरू करने पर विचार कर रहे थे तो ज्यादातर अधिकारी यहां तक उनकी पत्नी रेणु जोगी ने भी इस पर आपत्ति जताई थी. लेकिन आज जब यहीं युवा रेणु जोगी के कोटा विधानसभा, जो कि एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. वहां अपनी सेवा दे रहे हैं तो रेणु जोगी भी अब इसकी तारीफ करती है.

शायद इसी वजह से रेणु जोगी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर 20 साल पुराने जोगी मॉडल को फिर से शुरू करवाने का आग्रह किया है. खैर देखने वाली बात होगी कि गांवों में एक स्वास्थ्य सेवक तैनात करने के अजीत जोगी के फॉर्मूले पर केंद्र सरकार क्या विचार करती है या फिर 'जोगी मॉडल' एक इतिहास बनकर रह जाएगा.

Last Updated : Jun 6, 2021, 7:37 PM IST

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