सूरत:म्यूकोरमायकोसिस के केस बढ़ते जा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है. सूरत में नेत्र-विशेषज्ञों की चिंता भी बढ़ गई है. क्योंकि, अब तक वे अपने मरीजों को रोशनी देने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, लेकिन इस बीमारी ने उन्हें अपने मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर कर दिया है.
ईटीवी भारत ने सूरत में इस तरह की सर्जरी करने वाले डॉक्टर से मौजूदा स्थिति के बारे में बात की. सर्जन, डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरीन गांधी और डॉ. दिशांत शाह म्यूकोरमायकोसिस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए दिन-रात उनके इलाज में लगे हुए हैं. सूरत में ये केवल तीन डॉक्टर हैं, जिन्होंने ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजो की सर्जरी की है.
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अपने मरीज की जान बचाने के लिए ये डॉक्टर्स अब तक 34 मरीजों की आंखें निकाल चुके हैं. डॉ. प्रियता सेठ कहती है कि मस्तिष्क से फंगस को बाहर निकालने की उम्मीद में मरीज अंतिम चरण में उनके पास आते हैं. ऐसे में मरीजों और उनके रिश्तेदारों को यह बताना हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है कि उन्हें अपनी आंखें निकालनी होंगी.इस बीमारी की दवाएं सर्जरी से कहीं ज्यादा महंगी हैं. हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि दवाओं का किडनी या अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव न हो. इतना ही नहीं आखिरी स्टेज में चेहरे की त्वचा काली हो जाती है या फंगस आंख के अंदर पहुंच जाता है. इसलिए मरीजों की जान बचाने के लिए मजबूरी में भी हमें सर्जरी करनी पड़ती है.