रायपुर/हैदराबाद: शिवपुराण के अनुसार "एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया. इसका फैसला महादेव को करना था. तभी वहां एक विराट ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ. इस पर भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा और विष्णु में से जो भी इस ज्योतिर्लिंग का आदि या अंत बता देगा, वो ही श्रेष्ठ कहलाएगा. ब्रह्माजी ज्योतिर्लिंग का आरंभ खोजने नीचे की ओर गए और विष्णु भगवान ऊपर की ओर चल पड़े. नीचे जाते समय ब्रह्माजी ने देखा कि एक केतकी फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है. ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को पक्ष में कर लिया और महादेव के पास पहुंच गए."
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भगवान विष्णु ने जताई असमर्थता:शिवपुराण के मुताबिक"भगवान विष्णु ने लौटकर महादेव से कहा कि वे इस शिवलिंग का अंत ढूंढ पाने में असमर्थ रहे हैं. ब्रह्मा जी ने कहा कि उन्होंने पता लगा लिया है कि ज्योतिर्लिंग कहां से उत्पन्न हुआ. उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया. लेकिन महादेव तो अंतर्यामी हैं. वे सच जानते थे. इसलिए उन्हें झूठ पर बहुत क्रोध आया. उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप देते हुए अपनी पूजा में वर्जित कर दिया." इसके से नियम बन गया कि जब भी महादेव की पूजा होती है, उसमें उन्हें केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता.
ब्रह्मा जी को अपनी भूल का हुआ अहसास:शिवपुराण में है कि"इसके बाद शिव जी ने कहा कि मैं ही आदि हूं और मैं ही अंत हूं. मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं. मुझ से ही आप दोनों की उत्पत्ति हुई है. ये ज्योतिर्लिंग भी मेरा ही स्वरूप है. इस पर बाद ब्रह्मा जी को अपनी भूल का अहसास हुआ. फिर ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने मिलकर ज्योतिर्लिंग की आराधना की."