रायपुर: या देवी सर्वभूतेषु कात्यायनी माता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःइस महामंत्र के द्वारा माता कात्यायनी (Mata Katyayani) का अनुग्रह प्राप्त किया जाता है. शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri) की षष्ठी तिथि को माता कात्यायनी की पूजा का विधान है और स्कंद षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है. जेष्ठा और मूल नक्षत्र में सौभाग्य योग पदमा योग और वृश्चिक उपरांत धनु राशि में षष्ठी का पर्व मनाया जाएगा.
कात्यायनी माता कत ऋषि की वंशज मानी गई है. कात्यायन ऋषि के कन्या के रूप में देवी जानी जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा विष्णु और महेश के उज्जवल तेज से कात्यायनी मां का जन्म हुआ है. कात्यायनी माता 4 हाथों वाली हैं. लाल वस्त्र पहन कर माता की पूजा की जाती है. माता की आराधना करने से भय रोग और शत्रुओं का विनाश होता है. माता के हाथ में कमल पुष्प तलवार अभय मुद्रा विद्यमान हैं.
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राक्षसों का संहार करने के कारण माता को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है. कुंवारी कन्याएं विशेष रूप से कात्यायनी माता को पूजती है तो उनके विवाह में आने वाले अवरोध समाप्त होते हैं. आज के दिन स्नान ध्यान से निवृत्त होकर कुंवारी कन्याएं माता के लिए संकल्पधारी होकर उपवास करें तो उनकी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती है. जिन जातकों का विवाह हो चुका है और वैवाहिक संबंधों में कुछ अड़चनें आ रही हैं. ऐसे लोगों को भी कात्यायनी माता की साधना उपासना करने से शांति और स्थिरता मिलती है.